जिम्मेदारी (कुछ नयी कुछ पुरानी) – Incest Story | Update 59

जिम्मेदारी (कुछ नयी कुछ पुरानी) – Incest Story Written by ‘Chutiyadr’
अध्याय 59

किशन की शादी की शॉपिंग करने पूरा परिवार शहर गया हुआ था,शहर के उसी माल में जहा कभी सुमन उन्हें मिली थी आज वो माल ठाकुरो का था,तिवारी परिवार की तरफ से गए थे खुसबू और नितिन ,आरती स्वाभाविक था की शॉपिंग दिन भर चलनी थी ,वहां के कई दुकान भी अजय ने ही खरीद लिए थे,कुछ को महेंद्र ने ,कुछ बाकियों के भी थे…माल में चहलकदमी सुबह से जोरो पर थी ,जब खुद मालिक का परिवार आ रहा हो तो ये होना स्वाभाविक भी था,

सुमन आज उसी दुकान में बैठी थी जंहा कभी वो काम किया करती थी,वो अपने सभी साथियों को देखकर भावुक हो गई,सभी उससे ऐसे मिल रहे थे जिसे की कोई नई दुल्हन पहली बार मायके आयी हो,लेकिन सभी को पता था की अब ये यहां की कर्मचारी नही बल्कि मालकिन है, अपने आंखों में आंसू और दिल में विनय का भाव लिए वो वहां बैठी थी ,उसे तो अपनी किश्मत पर कभी कभी यकीन भी नही होता था,क्या ये एक सपना था,लोग उसे किसी महारानी की तरह से ट्रीट कर रहे थे,लेकिन उसके आंखों में बहुत ही विनम्रता उन लोगो के लिए थी होती भी क्यो ना कभी वो भी उन्ही में से एक हुआ करती थी,

सुमन का साथ निधि ने कभी नही छोड़ा,सभी उसको देख कर ही पहचान गए की यही वो लड़की है जिससे हुई लड़ाई ने सुमन की पूरी जिंदगी ही बदल कर रख दी,वक़्त भी कैसे कैसे खेल खेलता है,जिस चीज के लिए सुमन को अपनी नॉकरी से भी हाथ धोना पड़ा था वही चीज उसे नॉकर से मालकिन बना दिया…

इधर

कुछ जवा दिलो के लिए ये ट्रिप किसी पिकनिक से कम नही था ये वो मौका था जहा वो एक दुसरे को निहार सकते थे,खुसबू नितिन और सोनल तो यहां आये ही इसी लिए थे की वो अपने सनम की कुछ झलक देख पाए,

विजय ने भी उन्हें थोड़ा स्पेस देने की सोची और किशन को लेकर लड़कियों के साथ बैठ गया ,जिसे कभी लड़कियों के साथ शॉपिंग करना पसंद नही था वो दोनो लवंडे आज शादी की शॉपिंग में सबका हाथ बटा रहे थे,ऐसे वो सचमे लड़को को बोझिल करने वाला होता है,पर आज दोनो ही उसे इंजॉय कर रहे थे,किशन के पास तो इसका वाजिब कारण भी था लेकिन विजय के पास क्या कारण था???सिर्फ सोनल और नितिन को स्पेस देना या खुसबू को अजय से बात करने का कोई मौका देना…??

इसके अलावा भी एक कारण उसके सामने था,वो थी सफेद साड़ी में लिपटी हुई एक अधेड़ उम्र की विधवा महिला ,जो की अपने सौंदर्य और पहनावे के तरीके से ना तो अधेड़ लग रही थी ना नही विधवा,आरती की कमाल की खूबसूरती ने विजय को सोचने पर मजबूर कर दिया था,वो ऐसे तो उसकी मामी थी और उसे किसी गंदे नजर से देखने का उसका कोई मूड भी नही था लेकिन आरती के वो इशारे जो अक्सर कोई महिला किसी को आकर्षित करने को करती है ,विजय को अंदर से तोड़ रही थी ,वो लड़कियों के मामले में हरामी लड़का था और उसे हर बात साफ समझ आ रही थी की क्यो विजय के देखने पर ही आरती अपने पल्लू को सम्हालती है जिससे कुछ छिपता तो नही बल्कि कुछ दिख ही जाता है और क्यो वो विजय के नजर पड़ते ही अपने कमर की साड़ी को थोड़ा हटा लेती है,जिससे उसकी पतली कमर का वो भाग सामने आ जाता है….

विजय पका हुआ खिलाड़ी था वो हर इशारे अच्छे से समझ रहा था और वो उसे और भी अच्छे से समझने के लिए वहां बैठा हुआ था ,दोनो में एक खेल चल रहा था जिसे बस दोनो ही जानते थे,और किसी को भी इसकी भनक तक नही लग रही थी होती भी कैसे सभी अपने कामो में इतने मसरूफ थे की उन्हें इनपर ध्यान देने की फुरसत ही नही थी,विजय ने आखिर मर्यादाओ के बंधन को तोड़कर आगे बढ़ने की सोची जब खुद लड़की तैयार है तो ट्राय करने में क्या जाता है,ऐसे भी हवस में रिस्ते नही देखा करते ,

विजय जाकर आरती के पास बैठ गया,दोनो की नजर मिली और एक मुस्कान दोनो के होठो में खिल गया,

विजय ने एक अंगड़ाई ली और उसका हाथ सीधे जाकर आरती के स्तन से टकराया,वो ऐसे था की आरती भी इसकी फिक्र ना करती अगर उसे पता नही होता की विजय का असली मकसद क्या था,विजय ने फिर से रिएक्शन देखा उसकी इस हरकत ने आरती के होठो की मुस्कान को और भी चौड़ी कर दि थी,जिससे विजय का लिंग एक जोरदार झटका लगा दिया,

उसके बालो से आने वाली खुसबू ने ऐसे भी उसे पागल बना दिया था ,और उसकी तरफ से आ रहे इस इशारे से वो झूम सा गया,उसने एक कदम आगे बढ़ाने की सोची और अपना हाथ आरती के पीछे से ले जाकर उसके खुले हुए कमर पर रख दिया ,आरती को इतनी हिम्मत की उमीद नही थी उसे लगा था की ये भी किसी आम ठरकी की तरह होगा उसे क्या पता था की ये सभी ठरकीयो का बाप निकले गा उसे इसकी बिल्कुल भी उमीद नही थी फिर भी वो कोई रिएक्शन नही दिखाई ,इससे विजय को समझ आ चुका था की वो पूरी तरह से तैयार है उसे बस मौका चाहिए था आगे बढ़ने का,

“मामी ये सब कितना बोरिंग है ना “

विजय ने आरती से पहली बार बात की थी

“हा है तो ,ऐसे हमारा रहना भी जरूरी नही है”विजय की आंखे चौड़ी हो गई ये तो बहुत ज्यादा चालू है ,इसे खुद इतनी जल्दी पड़ी है,वो सोच में लग गया की आखिर क्या किया जाय की उसे यहां से बाहर निकाला जाय…….

इधर

सोनल खुसबू नितिन और अजय बाहर ही खड़े थे …

“तुम लोगो को नही देखना कपड़ा “

अजय ने सोनल से पूछा

“अरे भैया आप अकेले हो जाओगे ना इसलिए हम रुक गए “

“अरे जाओ मेरे साथ नितिन है ना “

नितिन ने ऐसे देखा जैसे की वो ही फस गया हो ,

“असल में मुझे भी शॉपिंग पसन्द नही “

खुसबू ने हल्के से कहा जिसे सोनल समझ गई ,

“ह्म्म्म एक काम करते है मैं और नितिन अंदर जाते है आप खुसबू का ख्याल रखो…”इससे पहले की अजय कुछ कह पता सोनल नितिन का हाथ पकड़कर वहां से अंदर चली गई,जब अजय ने खुसबू को देखा तो वो हल्के हल्के मुस्कुरा रही थी ,वो लोग नीचे के फ्लोर में बैठे हुए थे,विजय अभी अभी ऊपर गया था…..

अजय को कुछ अजीब सा महसूस हो रहा था उसे पता था की उसे खुसबू के साथ अकेले क्यो छोड़ा गया है पर वो रिश्तों के बंधन को तोडना नही चाहता था….

“तुम्हे कुछ चाहिए बहन “

अजय ने खुसबू को देखते हुए जानबूझ कर कहा ,जिससे उसका मुह उतर सा गया

“नही और आप मुझे बहन ना कहा कीजिये “

खुसबू ने पहली बार अजय का विरोध किया था उसके आवाज में सचमे एक गुस्सा था उसे भी पता था की अजय भी ये जानता है की उसके दिल में अजय के लिए क्या है पर फिर भी वो उससे दूर जाने की कोसीसे करता है ,

“बहन को बहन ही तो कहते है ना “

“मैं आपकी बहन नही हु ये आप समझ लीजिये “

अजय ने उसके मासूम से चहरे पर वो गुस्सा देखा जिसमे गुस्सा कम और दुख ज्यादा था,अजय ने कुछ नही कहा लेकिन कुछ ही देर की ये खामोशी एक अजीब सी बेचैनी लेके आ गया ,

“चलिए काफी पीते है,”खुसबू ने कहा

“जाओ सोनल को ले जाओ मूझे मन नही है “

खुसबू का पारा चढ़ गया और वो अजय का हाथ पकड़कर उसे माल से बाहर ले जाने लगी .

“ये क्या कर रही हो “

“आप मुझे बहन कहते है तो ठीक है हु मैं आपकी बहन अब चलिए जहा मैं ले जा रही हु “

अजय बस उसके साथ खिंचता चला गया….

माल से ही लगा एक गार्डन था जिसमे प्रेमी युगलो का जमावड़ा हुआ करता था,खुसबू और सोनल यहां अक्सर अपने दोस्तो जिनमे नितिन भी शामिल था उनके साथ आया करते थे,वो उसे खिंचते हुए ले जाती गई ,बड़ा गार्डन था,और दोपहर का वक़्त जिसमे वो गार्डन बंद हुआ करता था,बस ट्रिक ये था की उसके केयरटेकर को कुछ पैसे देने होते थे,और खुसबू को ये पता था उसने उसे 100 का एक नोट दिया और उसने उसे एक छोटे से गेट से अंदर घुसने को कहा ,वहां आकर कुछ जोड़े तो सेक्स भी कर लिया करते थे,लेकिन उन्हें इतने एकांत की जरूरत नही थी ,अजय को भी सब समझ आ रहा था लेकिन वो भी उसके साथ चलने में कोई भी एतराज नही जताया कयोकि उसे भी खुसबू से बात करनी थी वो भी हर चीज क्लियर करना चाहता था,

“आराम से करना थोड़ा देख कर कोई देख ना ले “

केयरटेकर की गंदी सी हँसी निकली जिसमे उसके रंगे हुए दांत दिखने लगे,वो एक 40-45 साल का मोटा से आदमी था जिसकी सूरत से ही कमीनेपन झलक रहा था, दोनो ही उसका मतलब समझ चुके थे,खुसबू को इससे कोई फर्क नही पड़ा लेकिन अजय का दिमाग सरक गया,अजय ने एक झापड़ खीचकर उसके गालो में लगा दिया ,आवाज इतनी शानदार थी की आसपास में आते जाते लोग भी रुककर उन्हें देखने लगे ,और ताकत इतनी लगाई थी वो वहां से दूर जा गिरा ,उसके मुह से खून आ रहा था,और पास ही उसका एक दांत गिरा पड़ा था,वो बौखलाई आंखों से अजय को देख रहा था,आजतक ना जाने कितने लोगो को उसने ये कमेंट किया था ये पहला शख्स था जिसने इसका विरोध ही नही किया बल्कि उसे इतने जोरो का चांटा भी रसीद कर दिया…अक्सर लोग उसकी बात सुनकर हँसकर टाल दिया करते थे क्योकि सबको पता था की वो वंहा क्या करने जा रहे है…

खुसबू के मुह से एक हँसी निकल गई और वो अजय का हाथ पकड़कर सीधे छोटे गेट से अंदर चली गई ,वो शख्स बस ठगा सा उन्हें देखता रहा …………..

इधर

विजय को आरती का इशारा तो मिल गया था पर उसे समझ नहीं आ रहा था कि आगे क्या करें, उसने सोनल को इशारा किया जो अभी लहंगा देखने में व्यस्त थी,

विजय बाहर आय साथ में सोनल भी,

“यार तुम लोग को इतना अच्छा मौका मिला है और तुम यहाँ बैठे हो,”

“हा यार बट सुमन के साथ रहना भी तो जरूरी हैं ना,”

“हा वो तो हैं, लेकिन आस पास कोई गार्डन नहीं है क्या,”

सोनल कुछ सोचती है,

“अरे यहां बाजू में तो एक गार्डन हैं जो शाम में खुलता है लेकिन अगर गार्ड को पैसा दो तो वो दोपहर में भी खोल देता है,”

“परफेक्ट”

“लेकिन यार सब लोगों को क्या बोलूंगी “

“अरे कुछ मत बोल ,भाई की शादी है और अपनी होने वाली बहु के लिए अच्छे से कपड़े सलेक्ट कर”

सोनल उसे अजीब निगाहों से देखती हैं, दोनो फिर से आकर बैठ जाते हैं, कुछ ही देर में आरती उठती हैं और कुछ बहाना बनाकर निकल जाती हैं, फिर विजय उठकर निकल जाता हैं, सोनल उसे धयन से देखने लगती हैं वो उसे आंख मारकर निकल जाता हैं, सोनल को जैसे कुछ समझ आया और उसकी आंखें चौड़ी हो गई,वो उसे रोकना चाहती थी पर कैसे???

इधर विजय और आरती भी गार्डन पहुच चुके थे,

वहां वो गार्ड अभी अभी मार खाकर अपने जख्मो पर दवाई लगाए बैठा था,खून तो रुक चुका था लेकिन दर्द नही गया था,

“बॉस अंदर जाना है “

विजय ने कुछ नोट आगे बढ़ते हुए कहा ,जिससे वो गार्ड थोड़ा झल्ला गया,

“अभी बंद शाम को आना “

“अरे ये रखो ना “

उसने वो नोट उसके पॉकेट में डाल दिए

“बोला ना बंद है समझ नही आता “

गार्ड ने चिल्लाने की गुस्ताखी कर दी,विजय ने अंदर नजर डाली,गार्डन ऐसे तो बड़ा था लेकिन उसे कुछ कपल वहां दिख गए ,

“वो अंदर जो लोग है वो कैसे चले गए “

“चलो बहस मत करो जाओ यहां से ,साले पता नही कहा से चले आते है”

विजय का माथा खनका और एक जोर का तमाचा उसने खिंच दिया,

चटाक ….

ये तमाचा उसे दूसरे गाल पर पड़ा था,गार्ड फिर से जमीन पर था और उसका एक दांत भी बाहर निकल गया ,वो बेचारा रोनी सूरत बनाये विजय को देखने लगा ,आरती जंहा हस पड़ी वही विजय भी मुस्कुरा दिया ,उसका गुस्सा थोड़ा कम हो चुका था,

उसने हाथ आगे बढ़ाकर उसे खड़ा किया और उसके जेब में पैसा रखे ,

“चल गेट खोल “

“दादा गिरी है क्या “

वो रोनी सूरत बनाये कह रहा था,विजय ने अपने जीन्स के पीछे रखी पिस्तौल निकली और उसके माथे में टिका दिया

“हा दादागिरी है”

गार्ड की हालत सांप सूंघने जैसी थी और उस बेचारे के मुह से कोई भी शब्द नही फुट रहे थे,आखिर उसने छोटी गेट की तरफ इशारा किया ,दोनो वहां से गार्डन के अंदर चले गए …

गार्ड अपनी कुर्सी पर बैठा बस यही सोच रहा था की आज किसका मुह देखकर उठा था….

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