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Update 15
“खट ” की आवाज से ताला खुल गया , मैं इतना हैरान हुआ की साला ये हो क्या रहा है मुझे अमानत के रूप में इस बियाबान पंप हाउस के ताले की चाबी दी गयी थी .किस्मत गधे के लंड से लिखा जाना क्या होता है मैंने तब समझा था . धुल की वजह से खांसते हुए मैंने कमरे का दरवाजा खोला और अन्दर दाखिल हुआ. अन्दर का नजारा देख कर मुझे समझ नहीं आया की माजरा क्या है, कमरे में एक प्लास्टिक की पल्ली बिछी हुई थी, मिटटी जमा होने के बाद भी मैंने समझ लिया था की खून बिखरा था उस पर .
गाढ़ा खून जो न जाने कब बिखरा था पर आज भी निशान छोड़े हुए था , दीवारों पर भी कुछ उंगलियों के निशान थे खून से सने पर हैरानी की बात ये थी की दरवाजे या उसके आसपास खून का एक भी कतरा नहीं था .उस पल्ली के सिवाय और ज्यादा कुछ था नहीं , एक कोने में घास का गट्ठर था जो नाम मात्र का ही रह गया था . कमरे में अजीब सी बदबू थी शायद सीलन की वजह पर ये कमरा इतना महत्वपूर्ण कैसे था की इसकी चाबी मुझे दी गयी . और चाबी देने वालो को क्या वो उद्देश्य मालूम था की मुझे चाबी क्यों दी गयी .
पैरो को इधर उधर पटक रहा था की मेरे पैर में घास के तिनको के बीच कुछ अटका, मैंने उठा कर देखा एक गुलाबी रंग की ब्रा थी . ब्रा, मैं गारंटी से कह सकता था की ये ब्रा हवेली की ही किसी औरत की रही होगी. क्योंकि आमतौर पर गाँवो की औरते ब्रा का इस्तेमाल नहीं करती दूसरी बात ये बहुत महंगी रही होगी क्योंकि इस पर अंग्रेजी का मार्का था.ब्रा से मैं चुचियो के साइज का अनुमान लगाने लगा की वो कितनी बड़ी रही होंगी.
मैंने कमरे में और गहराई से निरिक्षण चालु किया मुझे एक किताब मिली जिसके पीले पड़ गए पन्ने जर्जर अवस्था में थे, कुछ पन्ने सलामत थे उन्हें देख कर समझा की वो चुदाई की किताब थी और मुझे यकीन था की वो किताब कुलदीप ठाकुर की थी क्योंकि किताब अंग्रेजी में थी , कुलदीप जरुर विलायत से ये लाया होगा. तीनो ठाकुरों का एक साथ मर जाना सामान्य तो बिलकुल नहीं था पर मारे जाने की वजह एक रही होगी. हवेली में कुछ तो ऐसा चल रहा था जो समझ से परे था. रुपाली और कामिनी दो महत्वपूर्ण कडिया गायब थी .
मैंने कमरे के दरवाजे को खुला ही छोड़ दिया , जानबूझ कर खेल के छिपे हुए खिलाडी को संदेसा देने के लिए की मेरी भी नजर है उस पर. कुलदीप बहुत चोदु टाइप का इन्सान था ये चंदा ने मुझे बताया था , और जिस तरह से उसने बात घुमाई थी मैं जानता था की चंदा को भी पेला था उसने. हो सकता था की कुलदीप घुमने के बहाने यही पर आता हो और गाँव की औरतो को चोदता हो. ज़िन्दगी ने अजीब झमेले को मेरे गले में डाल दिया था .
चंदा के पास वापिस जाने का मन नही था तो मैं अपने गान वापिस लौट आया , घर पर न लखन था न निर्मला . मैंने गेट खोला और अन्दर आ गया. मरते हुए बापू ने बस एक शब्द कहा था हवेली, मतलब बापू हवेली से जुड़ा था पर कैसे. जितना उसका रुतबा था उस हिसाब से ये तो हो नहीं सकता था की वो ठाकुर के लिए काम करता हो. कहीं वो ठाकुर के किसी धंधे में साथी तो नहीं था , वो मुझे क्यों लेकर आया.एक अनाथ को अपने घर में क्यों रखेगा जब तक की उस नन्ही जान से लगाव न हो. मात्र दया तो कारण नहीं हो सकता था .
बापू वो कड़ी था जो मेरे और हवेली के बीच था , मैंने बापू के अतीत को तलाशने की सोची. मैंने फिर से बापू के सामान की तलाशी ली , एक बहुत पुरानी डायरी में मुझे एक फ़ोन नम्बर मिला. डायरी लगभग सत्रह साल पुराणी थी . सत्रह साल पहले भला कितने लोगो के घर पर फ़ोन होंगे. दूसरी बात इस घर में तो क्या पुरे गाँव में किसी के पास भी फ़ोन नहीं था . मैंने वो नम्बर याद कर लिया. पूरी डायरी में बस एक फ़ोन नम्बर जिसे इतनी हिफाजत से संभल कर रखा गया था . कोई तो खास रहा होगा.
मैं एक एसटीडी बूथ पर गया वो नम्बर मिलाया, पर वो मिला नहीं दूसरी बात कोशिश की , तीसरी बार घंटी चली गयी . घंटी जाती रही , जाती रही और जब लगा की कोई नहीं उठाएगा ठीक उसी समय फोन उठा लिया गया .
“हेल्लो ” जो आवाज मेरे कानो में गूंजी दिल तक उतर गयी .
“हेल्लो, बोलो भी ”दूसरी तरफ से फिर आवाज आई .
मैं- चांदनी ठकुराइन
“बोल रही हु, कहिये ” उसने कहा
मैं बस फ़ोन रखने को ही था की उधर से आई आवाज ने मुझे रोक लिया
“अर्जुन ये तुम हो न ” उसका ये कहना सीधा दिल में ही तो उतर गया था .
“अर्जुन तुम ही हो न ” उसने फिर कहा
मैं- और कौन होगा मेरे सिवाय
वो- तुमको किसने दिया नम्बर मेरा और कहाँ से बोल रहे हो तुम
मैं- ढूंढने वाले खुदा को तलाश लेते है ये तो मेरी जान का नम्बर है
वो- अच्छा जी . ये भी न सोचा की फ़ोन जय भैया भी उठा सकते थे
मैं- मैं क्या डरता हूँ उससे
वो- मैंने कब कहा
मैं- याद आ रही थी तुम्हारी
वो- भैया आ गये रखती हूँ .
तुरंत ही फ़ोन कट गया . पर मेरे लिए बहुत सवाल खड़े हो गए थे चांदनी के घर का फोन नम्बर बापू की डायरी में सम्भाल कर रखा गया था . बात साफ़ थी बापू का ताल्लुक जरुर था वहां से पर कैसे वो अब मैं मालूम करके ही रहूँगा.
