अगली सुबह जब मेरी नींद खुली तो मैंने देखा की दादाजी मेरे साथ नहीं हैं, मैंने टॉयलेट की तरफ देखा तो वहां का दरवाजा बंद था, यानी वो अन्दर थे. ऋतू और मम्मी एक दुसरे के साथ ऊपर पलंग पर सो रही थी, मम्मी तिरछी होकर सो रही थी जिसकी वजह से उनकी फूली हुई गांड ऊपर की तरफ निकल कर बड़ी आकर्षक लग रही थी,
वैसे भी उन्होंने सिर्फ एक थोंग ही पहना हुआ था, पीछे का हिस्सा उनकी गांड की दरार में घुस कर गायब हो चूका था, इसलिए गांड का हर पहलु साफ़-२ दिखाई दे रहा था. उनकी पीठ मेरी तरफ थी , मतलब अगर दादाजी टॉयलेट से बाहर निकले तो उनके नजर सबसे पहले सामने लेटी मम्मी की तरफ ही जायेगी. मैं दादाजी का एक्सप्रेशन देखना चाहता था, इसलिए मैं भी टॉयलेट की तरफ मुंह करके सो गया, अपनी ऑंखें मैंने ऐसे बंद करी की मुझे थोडा बहुत दिखाई देता रहे.
थोड़ी ही देर में दादाजी बाहर निकले, उन्होंने कोने में लगी हुई टंकी से हाथ धोये और जैसे ही वो घुमे, उनकी नजर मम्मी की नंगी गांड पर गयी, मम्मी की पेंटी का धागा तो उनकी गांड पहले ही खा कर निगल चुकी थी, उन्हें एक बार तो लगा की मम्मी नंगी है नीचे से, ऊपर भी सिर्फ ब्रा के स्ट्रेप थे, ऊपर से नीचे तक देखने में उनकी संगमरमर जैसी कमर बड़ी ही दिलकश लग रही थी, दादाजी तो उन्हें देखते ही रह गए, वो थोडा आगे आये, मेरी तरफ देखा, मैंने झट से अपनी आँखें मूंद ली और हलकी सी स्नोरिंग करने लगा, जिससे उन्हें लगे की मैं गहरी नींद में हूँ.
मेरी तरफ से निश्चिन्त होकर उन्होंने फिर से मम्मी के शरीर को अपनी पारखी नजरों से चोदना शुरू कर दिया, वो उन्हें ऐसे देख रहे थे मानो अपनी आँखों से उन्हें चाट रहे हो, हर एक हिस्से को बड़े गौर से देख रहे थे,
वो बिलकुल मेरे आगे खड़े थे और मैंने जब ऊपर देखा तो उनके धारीदार कच्छे के अन्दर से उठता हुआ उनका काला लंड किसी लम्बे सांप जैसा दिखा, मैं उसे पूरी तरह तो नहीं देख पा रहा था, पर ये अंदाजा तो हो ही चूका था की वो मेरे और पापा से भी लम्बा है.
दादाजी खड़े हुए मम्मी के शरीर का रसपान कर रहे थे, यानी वो भी वही चाहते थे जो हम उनसे करवाना चाहते हैं, अब मेरे लिए रास्ता काफी आसान हो गया था.. पर तभी दादाजी को ना जाने क्या हुआ, उन्होंने एकदम से अपना सर घुमा लिया और दूसरी तरफ देखकर धीरे धीरे राम राम राम राम…करने लगे….
शायद उन्हें अपनी सोच पर आत्मग्लानी हो रही थी..पर वो बेचारे कर भी क्या सकते थे, जब किसी के सामने अर्धनग्न स्त्री लेटी हो तो अच्छे-२ का लंड खड़ा हो जाता है…फिर लंड ये नहीं देखता की सामने लेटी हुई उसकी बहु है या बेटी..
मैंने मन ही मन सोचा, बुढऊ का मन कुछ और कह रहा है और लंड कुछ और…अब देखना है की मन और लंड की लडाई में कोन जीतता है. वो सीधे टंकी के पास गए और वो ऊपर से नलका खोलकर नीचे बैठकर ठन्डे पानी से नहाने लगे,
अभी इतनी गर्मी नहीं आई थी की सीधा ठंडा पानी अपने सर पर डाल लिया जाए, हम तो घर पर अभी भी हल्का गर्म पानी मिलाकर नहाते हैं, पर यहाँ तो शायद ठन्डे पानी से ही नहाना होगा, ये तो मैंने सोचा भी नहीं था…पर कोई बात नहीं, दो-चार दिन की ही बात है…देखी जायेगी.
ठन्डे पानी में उनकी कंपकपी छूट रही थी, पर फिर भी वो बैठे रहे, शायद अपने आप को सजा दे रहे थे..
थोड़ी देर बाद ही वो मुड़े , अब उनका खड़ा हुआ लंड बैठ चूका था..और वो भी शांत से लग रहे थे, और अब वो मम्मी की तरफ देख भी नहीं रहे थे.
उन्होंने कोने में लटका हुआ टॉवेल उठाया और अपना शरीर सुखाने लगे.
पानी की आवाज सुनकर मम्मी भी जाग चुकी थी..वो एक मादक सी अंगडाई लेती हुई उठी..और फिर उन्होंने अपनी गांड में फंसी अपनी पेंटी को बाहर निकाला, अपनी ब्रा को ठीक किया और पीछे मुड़ी,
दादाजी नहा कर एक कोने में बैठे हुए, दूसरी तरफ मुंह करके, जाप कर रहे थे, उनकी आँखें बंद थी, मम्मी ने मेरी तरफ देखा, मैंने अपनी आँखें खोली और उन्हें गुड मोर्निंग कहा..और मैं भी खड़ा हो गया.
मम्मी झट से उठकर टॉयलेट की तरफ भागी, उन्हें शायद प्रेशर आया था. मैं भी उठा, मेरा लंड मेरे से पहले ही उठा हुआ था, शुक्र है की दादाजी का चेहरा दूसरी तरफ था, वर्ना वो मेरे अंडरवीअर में खड़े लंड को देखकर जरुर मुझे डांटते..
मैंने ऋतू की तरफ देखा, और मेरे होश उड़ गए, उसकी ब्रा निकल चुकी थी और वो ऊपर से नंगी थी..और उसके तने हुए बूब्स ऊपर की तरफ मुंह करे जैसे खाने की दावत दे रहे थे..
मैं तो घबरा गया, मम्मी के पीछे सोने की वजह से शायद दादाजी उसके नंगे बूब्स नहीं देख पाए होंगे..अगर देख लेते तो ग़जब हो जाता, वैसे भी उनकी नजर अपनी बहु से आगे बड़ी ही नहीं थी. उसी में ही उनका बुरा हाल हो गया था.
दादाजी पूजा पाठ कर रहे थे..अगर उन्होंने इस तरफ देखा तो क्या होगा..हम दादाजी को उत्तेजित तो करना चाहते थे, पर धीरे-२, इस तरह से एकदम से नंगा करके नहीं, ऐसे तो वो भड़क जायेंगे, जैसा अभी थोड़ी देर पहले हुआ जब उन्होंने मम्मी के नंगे चुतड देखकर अपने आप पर काबू पाया, ऐसे तो हमारा सारा खेल खराब हो जाएगा, सब कुछ प्राकृतिक तरीके से होना चाहिए, ताकि उन्हें हमारी चालाकी समझ ना आये.,
हम ये भी चाहते थे की वो खुद अपनी तरफ से पहल करे ना की हम.. मैं जल्दी से ऋतू के पास गया और उसे हिलाकर उठाया..
धीरे से उसके कान में कहा “…ऋतू….ओ..ऋतू..उठ..”
मेरे हिलाने से उसके दोनों पर्वत मेरी आँखों के सामने ऐसे हिल रहे थे जैसे उनकी सतह में भूकंप आया हो..और उनकी चोटियाँ , जो पिंक कलर की थी, एकदम से तन कर खड़ी हुई थी..इस नज़ारे को एकदम पास से देखकर मेरा लंड जोक्की से बाहर झाँकने लगा. मेरी आवाज सुनकर ऋतू ने बड़े सेक्सी स्टाईल में अपनी आँखें खोली..मुझे अपनी आँखों के सामने पाकर वो मुस्कुरायी और मेरे गले में अपनी बाहें डालकर मुझे अपनी तरफ खींच लिया…
पगली, शायद वो भूल गयी थी की हम अपने बेड पर नहीं है..बल्कि यहाँ एक बंद कमरे में है, और हमारा अपहरण हुआ है…और दादाजी भी वहीँ है.. मैंने भगवान् का फिर से शुक्र मनाया की दादाजी का चेहरा दूसरी तरफ था, वर्ना इस ऋतू की बच्ची ने तो आज मरवा ही दिया था..
मैंने उसकी बाहें अपनी गर्दन से निकाली और उसे कहा “ऋतू…होश में आओ…याद नहीं हम कहाँ है…और ये अपनी ब्रा पहनो…खुल गयी है…” वो सारी स्थिति समझी और जल्दी से सॉरी बोलते हुए अपनी ब्रा को उठाया और अपने मुम्मो को उनमे वापिस ठूंस दिया.. मैंने कैमरे की तरफ नजर घुमाई, मुझे मालुम था की सन्नी और विशाल सुबह-२ ऋतू के मुम्मो के दर्शन करके अपनी मुठ मार रहे होंगे.
थोड़ी ही देर में दादाजी की पूजा ख़त्म हुई और वो हमारी तरफ मुड़े, मैंने और ऋतू ने दादाजी को गुड मोर्निंग कहा, उन्होंने अनमने मन से हमारी विश का जवाब दिया, वो काफी व्याकुल से लग रहे थे.
तभी मम्मी भी टॉयलेट से बाहर आ गयी, वो झुककर नीचे लगी टूटी से हाथ धो रही थी, जिसकी वजह से उनकी गांड हमारी तरफ निशाना बनाकर, अपने हुस्न के गोले दाग रही थी, मैं तो उनकी फैली हुई गांड का हमेशा से दीवाना रहा हूँ, मैंने दादाजी की तरफ देखा, वो चोरी-२ अपनी नजरें इधर-उधर से घुमा फिर कर मम्मी को ही देख रहे थे…
फिर उसके बाद मैं और ऋतू भी फ्रेश होकर आ गए, थोड़ी देर में ही ऊपर के रोशनदान से एक थैला आया, वो हमारा नाश्ता था, जिसमे आलू के परांठे और दही थी, साथ में पानी की बोतल और प्लेट्स..
मैं परांठा खाते ही समझ गया की ये तो अन्नू के हाथ के बनाये हुए परांठे है. बेचारी को सुबह-२ इतनी दूर आना पड़ा होगा, या शायद रात की चुदाई के बाद दोनों वापिस भी गयी होंगी या नहीं ?
हम खाना खा कर बैठे तो दादाजी ने फिर से ऊपर मुंह करके (कैमरे की तरफ) जोर से कहा : “तुम अपनी मंशा में कभी कामयाब नहीं हो पाओगे…जो तुम चाहते हो वो होने वाला नहीं है, हमें छोड़ दो,
हम वादा करते हैं की हम किसी को कुछ नहीं बताएँगे…और अगर तुम चाहो तो हम तुम्हे मुंह मांगे पैसे भी दे सकते हैं..”
आवाज : “हा हा .हा…बुड्ढ़े, तू क्या सोचता है, मैं सुबह सो रहा था, मैंने सब देखा जब तू अपनी बहु के नंगे बदन को घूर -२ कर देख रहा था…और तेरा लम्बा लंड अपनी बेटी जैसी बहु ने नंगे चुतड देखकर काबू में नहीं रहा था..तेरा शरीर कुछ और कह रहा है और तेरी जबान कुछ और.. हा हा …बढ़िया है…”
दादाजी उसकी बात सुनकर सन्न से रह गए, उन्होंने सोचा भी नहीं था की उनकी हरकत दुसरे कमरे में बैठा वो शैतान भी देख रहा था, उन्हें अपने आप पर बड़ी शर्मिंदगी हुई, खासकर तब, जब उनका भांडा सबके सामने साईको यानी विशाल ने फोड़ दिया था..
दादाजी (हडबडाते हुए) : “ये क्या बकवास कर रहे हो…मैं तो बहु को उठाने की सोच रहा था, पर उसे गहरी नींद में सोता देखकर मैं चला गया..ऐसा कुछ नहीं है, जो तुम कह रहे हो..”
उनकी आवाज से साफ़ पता चल रहा था की वो गुस्से में नहीं, बल्कि अपनी सफाई देने वाले लहजे में बात कर रहे हैं..”
आवाज : “मैंने तुम्हे कहा था,ये तुम्हारे ऊपर है, तुम कब तक यहाँ रहना चाहते हो, जो मैंने कहा, वही करना होगा, वर्ना पूरी जिन्दगी यही पड़े रहो और सड़ते रहो…हा हा हा…”
विशाल की खुँखार हंसी की आवाज सुनकर तो कोई भी सहम जाए, ये तो हमें ही मालुम था की असली माजरा क्या था, इसलिए हम ऊपर से डरने का नाटक कर रहे थे और अंदर से इस पुरे खेल का मजा ले रहे थे. वर्ना अगर सच में ऐसी हालत असल में होती तो सभी की फट रही होती..जैसी इस समय दादाजी की फट रही थी.
दादाजी बुदबुदाते हुए उस साईको को गन्दी-२ गालियाँ निकाल रहे थे..तभी उनका बुदबुदाना बंद सा हो गया..
मैंने उनकी नजरों का पीछा किया तो पता चला की उनकी नजरें अब ऋतू के मोटे-२ लटकते हुए रसीले आम पर हैं, और वो भी इसलिए की उसकी ब्रा में से उसका एक निप्पल बाहर झाँक रहा था..
जो शायद उसे भी नहीं मालुम था , शायद ब्रा पहनते हुए उसने ध्यान नहीं दिया की उसका कुछ सामान बहार ही रह गया है …या फिर उसने जान बुझकर दादाजी को उत्तेजित करने के लिए ऐसा किया था..पर वो अनजान बनने का नाटक करती हुई मम्मी से धीरे-२ कुछ बात कर रही थी..
दादाजी भी अपनी सुध बुध भूले उसके गुलाबी रंग के दाने को देखने में लगे थे, जैसे अपने ख्यालों में उसमे से दूध पी रहे हो.. उन्होंने अपने सूखे होंठों पर जीभ घुमाई..और फिर मेरी तरफ देखा, मुझे अपनी तरफ देखता पाकर वो एकदम से घूम कर दूसरी तरफ देखने लगे, और फिर पुरे कमरे में घूम -घूमकर किसी जासूस की तरह, ये देखने लगे की कहीं से कोई भाग निकलने का रास्ता मिल जाए शायद..पर सब बेकार, वो कमरा था ही ऐसा की कोई दरवाजे के अलावा बाहर निकल ही ना पाए.
फिर उन्होंने ऊपर रोशनदान की तरफ देखा..वो काफी ऊपर था, लगभग 12 फीट के आस पास..उन्होंने मेरी तरफ देखा और मुझे अपने पास बुलाया, और मुझे ऊपर चड़ने को कहा, पर कैसे?
उन्होंने कहा की मैं उनके कंधे पर चढ़ जाऊ ..मैंने कोशिश की, वो नीचे बैठे और मैंने उनके कंधे पर अपने पैर रखकर ऊपर चढ़ने की कोशिश की पर मेरा वजन संभल पाने में उन्हें परेशानी हो रही थी..
तभी ऋतू ने कहा : “दादाजी, आप मुझे ऊपर उठाओ..मैं देखती हूँ, मेरा वजन भैय्या से काफी कम है..”
बात भी सही थी, कहाँ मैं 80 किलो का हट्टा कट्टा सांढ़ और कहाँ वो 50 किलो की हलकी-फुलकी सी बकरी..सो उन्होंने उस बकरी को यानी ऋतू को अपने कंधे के ऊपर चढ़ने को कहा.
दादाजी दीवार की तरफ पीठ करे खड़े थे, ऋतू उनके सामने आई और उनके एक कंधे पर पैर रखकर ऊपर चड़ी, पीछे से मैंने उसे सपोर्ट किया, उसकी गद्देदार गांड पर अपने हाथ रखकर, और उसने अपना दूसरा पैर भी दादाजी के दुसरे कंधे पर रख दिया और आगे से अपने हाथ दिवार पर टिका दिए, दादाजी ने ऊपर उठाना शुरू किया, अब वो उठ पा रहे थे, ऋतू के कम वजन की वजह से..
दादाजी अब पुरे खड़े हो गए, और नीचे से उनका लंड भी ..जिसे सिर्फ मैंने ही नोट किया..वो अपने लंड को सही भी नहीं कर सकते थे, क्योंकि उन्होंने अपने हाथों से ऋतू के दोनों पैर पकडे हुए थे, ऋतू ऊपर तक गयी, पर फिर भी वो रोशनदान तक नहीं पहुँच पायी, दादाजी ने अपने पंजो के बल पर उसे थोडा और ऊपर किया, तब कहीं जाकर उसका हाथ रोशनदान तक पहुंचा…और वो एक तरह से उसे पकड़कर लटक सी गयी, पर उसकी पकड़ जंगले पर ज्यादा देर तक बनी ना रह सकी और अगले ही पल उसने उसे छोड़ दिया…
उसके पैर फिर से नीचे आये पर एक दम से नीचे आने की वजह से उसका बेलेंस बिगड़ा और उसके पैर दादाजी के कंधो से नीचे की तरफ फिसल गए और वो चीखती हुई नीचे की और आने लगी.. आआआआअ ……. आआआआआह्ह्ह्ह दादाजी……बचाओ…
दादाजी ने अपने दोनों हाथों से उसके नीचे गिरते शरीर को सँभालने की कोशिश की, ऋतू का पूरा जिस्म, दादाजी के मुंह से रगड़ खाता हुआ नीचे आने लगा, ऋतू की जांघे , चूत, पेट और अंत में जैसे ही उसके मुम्मे दादाजी के मुंह से रगड़ खाए, उसके शरीर को एक झटका सा लगा, दादाजी ने अपने हाथ ऋतू के पीछे जमा दिए और उसकी मोटी गांड दादाजी के मजबूत हाथों में फंस गयी, और वो वहीँ रुक गयी. पर तब तक जो होना था, वो हो चूका था, दादाजी के मुंह से झटका खाकर ऋतू की ब्रा आगे से फट गयी और उसके दोनों कप एक दुसरे से जुदा होकर दोनों तरफ लटक गए..और अब दादाजी की आँखों के सामने ऋतू के हसीन पर्वत थे जो लहरा कर अपनी घाटियों की सुन्दरता चारों तरफ बिखेर रहे थे..
किसी को कुछ समझ नहीं आया की क्या हुआ, ऋतू तो डर के मारे कांप रही थी, उसे लगा था की वो नीचे जमीन पर गिर जायेगी और उसे चोट लग जायेगी.. पर दादाजी ने उसे बचा लिया..वो ये देखकर बड़ी खुश हुई और दादाजी के गले लग गयी और उन्हें थेंक यू बोलने लगी…ये जाने बिना की उसकी ब्रा ने उसके शरीर का साथ छोड़ दिया है..हमेशा के लिए. और उस बूढ़े व्यक्ति की हालत तो आप समझ ही सकते हैं, उसने अपनी जवान पोती को गिरने से तो बचा लिया था पर इस एक्स्सिडेंट की वजह से वो अब उनकी गोद में, ऊपर से नंगी होकर, उनके गले से लिपटी हुई थी…और ऊपर से आलम ये था की नीचे उनका लंड भी खड़ा होकर ऋतू की गांड को चूम रहा था. दादाजी की हालत देखकर मेरा हंसने का मन कर रहा था..पर माहोल ऐसा नहीं था.
पर जो हुआ, अच्छा हुआ, अब देखते हैं की दादाजी क्या करते हैं.
ऋतू नीचे उतरी, और तब उसे पता चला की उसकी ब्रा बीच में से फट चुकी है, और अब वो एक तरह से बेकार ही है, मम्मी ने उसे दादाजी की नजरों से दूसरी तरफ घुमाया..एक अच्छी बहु की तरह और ऋतू की ब्रा को वापिस जोड़कर देखने लगी…पर कुछ फायदा नहीं..वो ऐसी जगह से फटी थी या ये कहो की अलग हुई थी की अब उसका जुड़ना मुश्किल था..कोई दरजी ही उसे सिलाई करके ठीक कर सकता था.
दादाजी हक्के-बक्के से उन माँ-बेटी को देखे जा रहे थे..
ऋतू नीचे उतरी, और तब उसे पता चला की उसकी ब्रा बीच में से फट चुकी है, और अब वो एक तरह से बेकार ही है, मम्मी ने उसे दादाजी की नजरों से दूसरी तरफ घुमाया..एक अच्छी बहु की तरह और ऋतू की ब्रा को वापिस जोड़कर देखने लगी…पर कुछ फायदा नहीं..वो ऐसी जगह से फटी थी या ये कहो की अलग हुई थी की अब उसका जुड़ना मुश्किल था..कोई दरजी ही उसे सिलाई करके ठीक कर सकता था.
दादाजी हक्के-बक्के से उन माँ-बेटी को देखे जा रहे थे..
ऋतू : “अरे..रहने दो माँ…अब ये बेकार है..मैं पूरा दिन इसे हाथ से पकड़ कर नहीं रह सकती…वैसे भी ये पहनना या ना पहनना एक ही बात थी, और यहाँ तो सब अपने ही हैं, दादाजी और भैय्या…रहने दो आप, मैं ऐसे ही रहूंगी..मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता..” और ये कहते हुए उसने अपनी बाँहों से ब्रा को निकाला और उसे एक कोने में फेंक दिया..और फिर वो मेरे और दादाजी की तरफ घूम गयी..
उसके दोनों तने हुए चुचे अपने पुरे शबाब पर थे, मोटे-ताजे, हिलते हुए, और उनपर चमकते उसके गुलाबी निप्पल… उन्हें मैं कई बार चूस चूका था..पर आज भी उन्हें देखकर मेरे लंड का बुरा हाल हो रहा था..और दादाजी के लिए तो ये पहली बार था…तो आप समझ ही सकते हैं की उनका क्या हाल हो रहा होगा..
वो कुछ बोल ही नहीं पा रहे थे..बस अपनी बड़ी-२ आँखों से उसकी छाती से लटके आम देखकर कुछ सोच रहे थे..
ऋतू : “दादाजी…आप प्लीस बुरा मत मानना , पर अब हालात ही कुछ ऐसे हैं…मुझसे वो ब्रा नहीं पहनी जायेगी अब..आप समझ रहे हैं न…”
दादाजी : “हूँ….हां….हम्म…”
और फिर वो अचानक पलटे और टॉयलेट में घुस गए..मैं जानता था की उनके लंड की क्या हालत हो रही होगी, जिसे छुपाने के लिए वो अंदर घुस गए थे…
ऋतू ये देखकर धीरे से हंसती हुई मेरे पास आई और उछल कर मेरी गोद में चढ़ गयी ..और उसके रसीले आम मेरी नंगी छाती से टकराकर अपना रस टपकाने लगे वहां…और उसने अपनी बाहें मेरे गले में डालकर मुझे किस करना शुरू कर दिया…
वो भी शायद जानती थी की दादाजी अब दस मिनट तक तो अंदर से निकलने वाले हैं नहीं…इसलिए उसने भी मौके का फायदा उठाया और मुझसे आ लिपटी… तभी पीछे से मम्मी भी आई और बीच में अपना मुंह डालकर वो उस जगह पर जीभ डालने लगी जहाँ मेरा और ऋतू का मुंह मिल रहा था, हमने मम्मी को भी थोड़ी सी जगह दी और अब मम्मी और ऋतू को मैं एक साथ किस कर रहा था,
तीनो की जीभ एक दुसरे से लडाई कर रही थी, जिसके मुंह में जिसके होंठ आ रहे थे, वो उसे ही चूस रहा था…मेरे मुंह में तो एक बार मम्मी और ऋतू दोनों के होंठ आ गए जिन्हें मैंने चूस चूसकर उनका रस पीना शुरू कर दिया…
ये सीन देखकर दुसरे कमरे में सभी की क्या हालत हो रही होगी…ये तो मैं जानता ही था.
मन तो कर रहा था की वहीँ अपना लंड निकाल कर दोनों को पेलना शुरू कर दूं..पर अभी ऐसा संभव नहीं था, दादाजी कभी भी बाहर आ सकते थे..
मैंने उन्हें अपने से अलग किया..और उन्हें एक कोने में ले जाकर आगे का प्लान समझाया…
तब तक दादाजी भी बाहर आ गए..उनका चेहरा एकदम लाल था, जिसे देखकर साफ़ पता चल रहा था की उन्होंने मुठ मारकर ही अपने नाग को सुलाया है…
अब हमारे प्लान का अगला चरण शुरू होने वाला था..
दादाजी अब अपनी आडी तिरछी नजरों से ही ऋतू को देख रहे थे, पर उनकी हर हरकत को मैं नोटिस कर रहा था, ऋतू को मैंने पहले से ही बेफिक्र वाले अंदाज में रहने को कह दिया था, वो भी जान बुझकर अपने शरीर को कुछ इस तरह से झटके दे रही थी की उसके पके हुए आम जैसे मुम्मे शरीर नुमा डालियों से टपकने को तैयार लग रहे थे, और उसके स्तनों पर आई हर थिरकन को दादाजी बड़े गौर से देख रहे थे..मानो उस थिरकन को अपने होंठों से रोकना चाहते हो.
मम्मी भी अपनी नजरें इधर उधर कर लेती , जब भी दादाजी उनकी तरफ देखते, ताकि दादाजी खुल कर अपनी नजरों से ऋतू के आमों का रसपान कर पाए .
नाश्ता तो हम कर ही चुके थे, ऋतू के मन में ना जाने क्या आया ?
वो बोली : ” मम्मी मेरा तो नहाने को मन कर रहा है, पता नहीं इस गंदे से कमरे में कब तक रहना पड़ेगा, मुझसे तो बिना नहाए रहा नहीं जाएगा तब तक..”
मम्मी ने अपनी स्वीकृति देते हुए हाँ में सर हिलाया.
वो जा कर शावर के नीचे खड़ी हो गयी और उसे चला दिया..
मैं, दादाजी और मम्मी तीनो गोर से उसे उस “खुले” हुए बाथरूम में नहाते हुए देख रहे थे.
ऋतू का मुंह दिवार की तरफ था, और पीठ हमारी तरफ..मैं मम्मी के साथ बेड पर बैठा था और दादाजी दूसरी तरफ नीचे जमीन पर, पर मेरी नजरें ऋतू से ज्यादा दादाजी पर थी, वो रह रहकर अपने कच्छे में उठ रहे तूफ़ान को सहलाकर उसे सुलाने की कोशिश कर रहे थे…करे भी क्यों न, उनके सामने एक 18 साल की लड़की ऊपर से नंगी, नीचे कच्छी पहने जो नहा रही थी, जिसे देखकर अच्छे-२ का लंड पसीने से नहा जाए.
वहां कोने में एक साबुन का टुकड़ा भी रखा था, उसने उसे उठाया और अपने बदन पर रगड़ना शुरू कर दिया, जैसे -२ उसके शरीर पर साबुन लगता जा रहा था, उसका शरीर झाग से ढकता जा रहा था, ऊपर का हिस्सा जब पूरा साबुन से ढक गया तो अचानक उसने ऐसा काम किया जिसके लिए उसे मैंने कहा भी नहीं था….
ऋतू ने अपनी उँगलियाँ पेंटी में घुसाई और उसे नीचे उतार दिया..
मेरा तो उसकी नंगी गांड देखकर बुरा हाल हो गया.पर यहाँ सवाल मेरा नहीं था, दादाजी का था, जो अपना मुंह फाड़े अपनी पोती के पुरे नंगे शरीर को देखकर आँखें झपकाना भी भूल गए थे..
मैंने मम्मी को देखा और उन्हें आँखों से इशारा किया..मम्मी ने थोडा गुस्से वाले लहजे में ऋतू को डांटना शुरू किया
मम्मी : “ऋतू…ये क्या बचपना है…तुने अपनी पेंटी भी उतार दी…कुछ तो शर्म कर, यहाँ दादाजी और आशु भी है..”
ऋतू (बिना अपना सर घुमाये, साबुन को नीचे टांगों पर मलते हुए और अपनी चूत वाले हिस्से पर रगड़ते हुए बोली) : “मम्मी…अब छुपाने को रह ही क्या गया है यहाँ…
मैं वैसे भी आज तक ब्रा पेंटी पहन कर नहीं नहाई…आप तो जानती ही है..आप भी तो ऐसे ही नहाती हो..और मैंने पहले भी कहा है, यहाँ आप घर वालों के सिवा है ही कोन, मुझे कोई फरक नहीं पड़ता..” और ये कहकर वो फिर से अपने शरीर को साफ़ करने में व्यस्त हो गयी..
मम्मी भी एक गहरी सांस लेकर, लाचार नजरों से मुझे और दादाजी को देखने लगी, जैसे वो कह रही हो…ठीक ही तो कह रही है बेचारी…
वो आज अपने बदन के हर हिस्से को साबुन से रगड़ रही थी, चाहे ऐसा वो रोज ना करती हो, पर दादाजी को अपने नंगे शरीर का रसपान करवाने के लिए, वो नहाने में ज्यादा समय ले रही थी..
उसने अपने मुंह पर साबुन लगाया, और तभी वो साबुन की टिकिया उसके हाथ से निकल कर दूर जा गिरी..
उसकी आँखों में साबुन था, इसलिए वो देख नहीं पा रही थी की साबुन कहाँ गिरा. वो नीचे पंजों के बल बैठ गयी और अपने हाथों से साबुन को ढूंढने लगी.. उसके इस तरह से बैठने से उसकी चौडी गांड फैलकर हमारी आँखों के सामने आ गयी, जिसे देखकर कोई भी पागल हो जाता..
उसकी टांगों के बीच में से ताजमहल की भाँती उसकी चूत चमक रही थी, फेले हुए चूत के होंठ चिपक कर एक दुसरे के ऊपर चढ़े हुए थे, वो पूरी तरह से गीली थी, पता नहीं अपने ही रस से या पानी से.
दादाजी इतनी गहरी सांस ले रहे थे मानो उन्हें हार्ट अटेक आने वाला हो…मुझे उनकी चिंता होने लगी, बेचारे एक बुड्ढे इंसान को हम कितना तडपा रहे हैं… पर ये नौबत ही ना आती अगर वो अपना रोब बिना वजह न दिखाते…उन्हें सीधा करने के लिए ही तो हम ये सब कर रहे हैं..पर सच कहूँ, इस खेल में मजा भी आ रहा था सभी को,
चाहे वो ऋतू हो, या मम्मी, या फिर दुसरे कमरे में बैठे पापा के साथ वो दोनों सन्नी और विशाल, और साथ में उन तीनो के लंड से चुदती सोनी और अन्नू.. सभी मजे ले रहे थे.
वो कुछ देर तक नीचे बैठी हुई साबुन ढूँढती रही, और फिर वो हमारी तरफ घूम गयी, घुटनों और हाथो के बल बैठी हुई वो कुतिया वाले पोस में जैसे वो चुदवाने को तैयार हो…अब उसके लटकते हुए पपीते सभी के सामने थे, जिनपर साबुन के बुलबुले लगे हुए थे, और फिर जब ऋतू को साबुन नहीं मिला तो वो उठ खड़ी हुई और अपने शरीर पर जो साबुन लगा था उसी को रगड़ने लगी..
वो शायद ये भूल चुकी थी की उसका चेहरा अब हमारी तरफ है, साबुन लगते हुए उसका हाथ जब अपनी चूत पर पहुंचा तो वो उस जगह को कुछ ख़ास तरीके से मसलने लगी..
ऋतू पूरी तरह से नंगी होकर, हमसे कुछ ही कदम की दुरी पर, साबुन लगाकर नहा रही थी, सभी दम साधे उसकी दिलेरी देख रहे थे, पर अब कोई कुछ बोल नहीं रहा था…
उसने अपनी एक ऊँगली अपनी चूत की फांकों के बीच रखी और अगले ही पल वहां मोजूद साबुन की फिसलन ने उस ऊँगली को अन्दर की और खींच लिया…ऋतू के मुंह से हलकी सी सिसकारी निकली…”आआअह्ह्ह्हsssssssssssssssss”
पर हम तीनो ने ऐसे दर्शाया जैसे हमने उसकी सिसकारी सुनी ही न हो…सभी जानते थे की वो क्या कर रही है..कमीनी अपने दादाजी, भाई और मम्मी के सामने मास्टर बेट कर रही है, नहाते हुए. मैं जानता था की ये तो वो रोज करती है, नहाते हुए…पर ये काम वो सब के सामने करेगी, मुझे इसका अंदाजा भी नहीं था.
उसके होंठ गोल होकर O की आकृति बना रहे थे, उसकी आँखें तो पहले से बंद थी, फिर उसने एक और ऊँगली अन्दर डाल दी चूत में…फिर तीसरी और फिर चोथी भी….अब सिर्फ उसका अंगूठा ही बाहर था चूत के..कहीं दादाजी को शक न हो जाए की ऋतू की चूत इतनी खुली कैसे है जिसमे वो चार-२ उँगलियाँ ले पा रही है…
उसका पूरा हाथ साबुन से सना हुआ था, वो अपनी उँगलियों से चूत के अन्दर का हिस्सा बड़ी मेहनत से साफ़ कर रही थी..जिसे हम सभी दर्शक बने बड़े गौर से देख रहे थे.. फिर उसने टटोल कर शावर को ओन किया और उसके बदन से झाग साफ़ होने लगी, पर उसकी उंगलिया अपनी चूत के अन्दर ही थी, उसने शायद शावर इसलिए चलाया था की उसकी सिस्कारियां उसमे दब जाए.. पर शावर की आवाज के साथ-२ मेरे तेज कान उसकी लम्बी सिस्कारियां सुन पा रहे थे..अह्ह्ह्हह्ह्ह्हह्ह अह्ह्ह्हह्ह म्मम्मम्म म्मम्मम ऊऊओ गोद्द्द्दद ……..अह्ह्ह्हह्ह फिर उसका रस चूत में से निकल कर पानी के साथ-२ नीचे गिरने लगा, इतना बहुमूल्य रस कैसे नीचे बहे जा रहा था, अगर दादाजी न होते तो उसे वेस्ट नहीं जाने देता…मैं सारा पी लेता.
अपने शरीर को पानी से पूरी तरह से साफ़ करने के बाद उसने शावर बंद किया..और फिर उसने नीचे पड़ी पेंटी को उठाया और उसे धोने लगी, फिर उसे निचोड़ कर सारा पानी निकाल दिया…पर पेंटी अभी भी पहनने लायक नहीं थी..
ऋतू : “मम्मी, ये पेंटी तो काफी गीली है, मैंने इसे अभी पहना तो रेशेस हो जायेंगे..इसे सूखने के बाद पहनूंगी ..”
और ये कहते हुए उसने उसे एक कोने में सूखने को डाल दिया, वहां टावल तो था नहीं, इसलिए वो ऐसी ही मम्मी की तरफ चलती चली आई, उसके नंगे बदन से पानी की बुँदे ढलक कर नीचे गिरती चली जा रही थी.
उसने आकर मम्मी को देखा और एक आँख मारकर उनसे कहा : “मम्मी…अब आप भी नहा लो..”
पर मम्मी को शायद अभी भी अपने ससुर के सामने शर्म आ रही थी, उन्होंने कहा वो बाद में नहा लेंगी, और मुझे देखकर बोली “बेटा ..तू नहा ले.”
मैंने बिना किसी की परवाह किये बिना, अपना जोकी वहीँ उतरा, और नहाने चल दिया, मेरे आगे-२ मेरा खड़ा लंड चला जा रहा था और उसके पीछे मैं.
मैंने जाकर शावर ओन किया और नहाने लगा…मैं जानता था की जैसे ऋतू को सब देख रहे थे, वैसे ही अब सभी मुझे देख रहे होंगे..खासकर मम्मी और ऋतू..
मैंने अपना अन्डरवेअर इसलिए उतारा था की दादाजी की भी शर्म खुल जाए और दादाजी भी शायद इसलिए मेरी तरफ देख रहे होंगे की शायद उनमे भी मुझे देखकर नंगे नहाने की हिम्मत आ जाए..
नहाकर मैं भी मम्मी के दूसरी तरफ आकर बैठ गया..बेड पर अब बीच में मम्मी थी, जिन्होंने ब्रा और पेंटी पहनी हुई थी और उनके दोनों तरफ उनके दोनों बच्चे…पुरे नंगे.
दादाजी ये नजारा देखकर क्या सोच रहे होंगे…ये तो भगवान् ही जानता था.
मैं भी ऋतू की तरह अपने शरीर के सूखने का इन्तजार करने लगा…उसकी नजरें तो रह रहकर मेरे खड़े हुए लंड के ऊपर आ जमती थी…
दादाजी भी शायद जानते थे की छोटे से कमरे में नंगी लड़की को देखकर लंड तो खड़ा होगा ही, क्योंकि वो भी लगभग उसी अवस्था से गुजर रहे थे..इसलिए शायद वो मुझे कुछ बोल नहीं पा रहे थे.. कुल मिलकर मैंने और ऋतू ने, कमरे में ऐसा माहोल पैदा कर दिया था की एक दुसरे के सामने नंगे रहने में किसी को भी शर्म महसूस नहीं हो रही थी..अब बारी मम्मी की थी.
वो भी धीरे से उठी और बिना ब्रा और पेंटी उतारे शावर के नीचे जाकर खड़ी हो गयी..वो अभी भी अपने ससुर से पर्दा कर रही थी. पर उनके ससुर की हालत तब और भी बेहाल हो गयी जब मम्मी की पतली सी ब्रा पेंटी पर पानी गिरा, और वो ट्रांसपेरेंट हो गयी..
अब उन्होंने क्या पहना है और क्या नहीं…उससे कुछ फरक नहीं पड़ रहा था..उनके शरीर का हर हिस्सा, हर उभार साफ़-२ देखा जा सकता था..
वो घूमकर जब हमारी तरफ हुई तो उनके चुचे देखकर दादाजी का तो पता नहीं, पर मेरा बुरा हाल हो गया, और नीचे उनकी पेंटी से झांकती बिना बालों वाली चूत…
पहले ऋतू नंगी और अब मम्मी भी लगभग नंगी होकर दस फुट की दुरी से अपने बदन के हर हिस्से को हमें दिखाकर तडपा रही थी…दादाजी की साँसे फिर से धोक्नी की तरह चलने लगी..उनकी नजर हट ही नहीं रही थी अपनी बहु के शरीर से.
अचानक ऋतू का हाथ मेरे लंड पर आ लगा..
मैं तो सहम सा गया..मैंने अचरज वाले भाव से उसे देखा और फिर दूसरी तरफ बैठे दादाजी को, वो हमसे थोड़ी दुरी पर थे, और उनकी नजरें मम्मी को घूरे जा रही थी.. पर अगर उन्होंने हमारी तरफ देख लिया तो अनर्थ हो जाएगा..मैंने उसे इशारे से अपना हाथ हटाने को कहा…पर वो सेक्सी स्माईल देती हुई मेरे लंड को पकड़ कर उसे ऊपर नीचे करने लगी…मेरी आँखें बंद सी होने लगी..
पर उन्हें मैं बंद भी नहीं कर सकता था, दादाजी को भी तो देखना था न..ऋतू की नजरें भी दादाजी की तरफ ही थी, उसने मुझे आश्वस्त किया की जैसे ही दादाजी उस तरफ देखेंगे, वो हाथ हटा लेगी..मैं भी माहोल का मजा लेकर अपने लंड को मसलवाने लगा.
मम्मी ने भी साबुन उठा कर अपने बदन पर लगाना शुरू कर दिया था..
दादाजी की नजरें तो चिपक सी गयी थी अपनी बहु के ऊपर. उनका पथराया शरीर देखकर मुझे लगा कहीं बुड्ढा टपक तो नहीं गया….
पर जब मैंने उन्हें अपना लंड कच्छे के ऊपर से मसलते देखा तब पता चला की ये भी माहोल के मजे ले रहे हैं… मैंने ऋतू को देखा, वो मुझसे चिपकी बैठी थी और उसके हिलते हुए मुम्मे मेरी बाजू से रगड़ खा रहे थे, उसके निप्पल इतने कठोर हो चुके थे की मुझे किसी शूल की तरह से चुभ रहे थे…
उसने अपनी स्पीड थोड़ी बड़ा दी..मेरा तो अब निकलने ही वाला था…मैंने ऋतू की तरफ तेज साँसों से देखा तो वो भी समझ गयी… पर यहाँ अगर मेरा रस निकलने लगा तो उसे साफ़ कैसे करूँगा…मैं सोचता रह गया और ऋतू ने अपना मुंह झुका कर मेरे लंड को चुसना शुरू कर दिया,
मैं उसकी इस हरकत से भोचक्का सा रह गया, मेरे लंड से रस निकल कर उसके पेट में जाने लगा, मैं फैली हुई आँखों से कभी ऋतू को और कभी दादाजी को देख रहा था, जो कभी भी हमारी तरफ मुंह कर सकते थे…
मम्मी ने भी जब देखा की ऋतू ने मेरे लंड को दादाजी की पीठ पीछे चुसना शुरू कर दिया है तो उनकी हालत भी खस्ता हो गयी…वो भी शायद मेरी तरह मन ही मन सोच रही थी की ये ऋतू तो मरवाएगी…
उसकी बचकानी हरकतों की वजह से दादाजी को कहीं हम सभी के बारे में पहले से ही पता न चल जाए, यही सोचकर उन्होंने एक बलिदान सा दिया….अपनी ब्रा को उतार दिया उन्होंने नहाते हुए. वो जानती थी की दादाजी कभी भी दूसरी तरफ घूमकर ऋतू और मुझे देख सकते थे, अभी तो उनकी नजरें उनके बदन पर टिकी हुई हैं, पर वो कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी, इसलिए उन्होंने अपनी ब्रा उतार कर नीचे रख दी.. ताकि दादाजी उन्हें और गौर से या फिर कह लो, बिना अपनी नजरें उन पर से हटाये, देखते रहे.
और वो ऋतू को मेरा लंड चूसते हुए ना देख पाए. मैं मम्मी के इस साहस और बलिदान से गदगद हो उठा. और जैसा मम्मी ने सोचा था, वैसा ही हुआ, जिन्दगी में पहली बार दादाजी ने आज अपनी सबसे सुन्दर बहु के मोटे, गद्देदार, रसीले मुम्मे देखे, जिनपर सुन्दर से निप्पल लगे हुए थे जो उनकी सुन्दरता में दो चाँद लगा रहे थे. मम्मी ने अपनी कातिल मुस्कान से मुझे इशारा करके मुझे मजे लेते रहने को कहा..
मेरे लंड से निकलती रस की बोछारें ऋतू पीती जा रही थी…और अंत में जब कुछ न बचा तो उसने मेरा गन्ना छोड़ दिया..और मेरी तरफ सेक्सी हंसी से मुस्कुराते हुए, मेरे होंठों को चूसने लगी..उसके मुंह से अभी भी मेरे रस की महक आ रही थी. तभी मुझे लगा की दादाजी शायद अपना सर हमारी तरफ घुमा रहे हैं…मम्मी का भी पूरा ध्यान दादाजी पर ही था..उन्होंने भी जब ये नोट किया की दादाजी हमारी तरफ घूम रहे हैं, तो उन्होंने एक ही झटके में अपनी पेंटी भी नीचे उतार दी..
अब तो दादाजी का चेहरा देखने लायक था, पहले जवान पोती को और अब बहु को नंगा देखकर उनके कच्छे से उठता हुआ उफान देखकर एक बार तो मैं भी घबरा गया..
अब मम्मी एक तरह से अपने शरीर की नुमाईश कर रही थी अपने ससुर के सामने, ऋतू तो जैसे दुनिया से बेखबर होकर मेरे होंठों को चूस रही थी.. और अपनी जाँघों को एक दुसरे पर चढ़ाकर अपनी चूत को रगड़ रही थी…और जल्दी ही उसकी चूत ने फिर से रस छोड़ना शुरू कर दिया, जिसे मैंने उसके होंठों के नम होने से जाना.
मैंने और मम्मी ने ये देखकर राहत की सांस ली की ऋतू मुझसे अलग हो गयी है…उसका शरीर निढाल सा हो गया था, बीस मिनट में ही दो बार झड़ने की वजह से. वो बेड अपने शरीर से उठती तरंगो का मजा लेती हुई आँखें बंद करे लेट गयी. मम्मी भी अब नहा चुकी थी, उन्होंने अपनी ब्रा पेंटी को उठाया और उन्हें सुखाने के लिए डाल कर वो भी बेड पर आ कर बैठ गयी..
अब नहाने की बारी दादाजी की थी.
मैंने उनसे कहा : “दादाजी, आप भी नहा लो, सभी तो नहा चुके हैं…”
वो कल भी नहाये थे, पर बिना अपना कच्छा उतारे, आज देखना है की हम सभी को पूरा नंगा नहाते देखकर वो भी उसे उतारते है या नहीं. वो कुछ इस तरह से धीरे-२ शावर की तरफ जा रहे थे, जैसे कोई छोटा बच्चा पहली बार स्टेज पर पोयम सुनाने जा रहा हो.
वो वहां पहुंचे और पीछे मुढ़कर उन्होंने मेरी तरफ देखा, और फिर मम्मी को, ऋतू तो आँखें बंद करे लेटी हुई थी..
और फिर उन्होंने अपने कच्छे का नाड़ा खोला और उसे उतार दिया. हम दोनों की साँसे रुक सी गयी…खासकर मम्मी की. उनकी बेक हमारी तरफ थी, जिस वजह से मम्मी और मैं सिर्फ उनके काले चूतड ही देख पा रहे थे. और उनकी टांगो के बीच से उनका लटकता हुआ लंड दिखाई ही नहीं दे रहा था…दिखता भी कैसे, वो तो खड़ा होकर उनके पेट से ठोकरे मार रहा था. मम्मी सांस रोके, नंगी होकर, अपने ससुर को नहाते देख रही थी, उन्हें अंदाजा तो हो चूका था की उनका लंड काफी बड़ा है पर अपनी नंगी आँखों से देखने का लालच उन्हें उनपर नजरें गडाए रखने को मजबूर कर रहा था, वो बेशरम सी होकर उन्हें नहाते हुए देख रही थी..और मैंने नोट किया की ये पहला मौका था , इस कमरे में , जब हम सभी नंगे थे .और फिर थोड़ी देर नहाने के बाद दादाजी शर्माते हुए से घुमे और वापिस चलकर अपनी सीट, जहाँ वो पहले से बैठे हुए थे, जाने लगे.
उनके घूमते ही, मैं और मम्मी, दोनों के मुंह और आँखें खुली रह गयी…
उनके लंड जैसा मोंस्टर हमने आज तक नहीं देखा था..वो लगभग 9 इंच लम्बा और मोटे गन्ने जैसा काले रंग का था.. वो सच में मेरे बाप के बाप कहलाने लायक थे…मम्मी के तो मुंह और चूत में उनके लम्बे और मोटे लंड को देखकर पानी आ गया…और वो बेशर्मी से उसे देखती हुई अपनी चूत को मसलने लगी, पर दादाजी का ध्यान उनकी तरफ नहीं था, वो जाकर अपनी जगह पर बैठ गये और अपने बदन के सूखने का इन्तजार करने लगे..ताकि वो अपना कच्छा पहन सके. पर एक बात तो है, उन्होंने हम सभी की देखा देखी नंगे होकर नहा लिया था, कल की तरह नहीं , जब वो बिना कच्छा उतारे नहा लिए थे और लगभग एक घंटे तक उसी गीले कपडे को लपेटे बैठे रहे थे… यानी कुछ बात बन रही थी.मुझे इन हालात को कुछ और रोचक बनाना था..और जैसा मैंने मम्मी और ऋतू को सुबह समझाया था, वो सब अगर सही तरीके से हो जाए तो सभी को चुदाई में एक अलग ही मजा आने वाला था. ऋतू तो सो चुकी थी, मम्मी मटकती हुई अपनी ब्रा पेंटी तक गयी और उसे देखकर चेक करने लगी की वो सुख गयी है या नहीं…
दादाजी भी उनकी मटकती हुई गांड देखकर अपने लंड के उफान को छुपाने की कोशिश कर रहे थे..और मैं भी.
अचानक गीले फर्श पर मम्मी का पैर फिसल गया और वो लड़खड़ा कर नीचे गिर गयी…
“अह्ह्हह्ह्ह्ह मर गयी रे…..अह्ह्ह्हह्ह आशु….जल्दी आ…”
मैं और दादाजी भागकर उनके पास गए, लंड हिलाते हुए. मम्मी दर्द से कराह रही थी, उन्होंने अपना पैर पकड़ा हुआ था, वो बोली “शायद यहाँ मोच आ गयी है…आआह्ह्ह्ह मुझसे तो खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा….”
और अब आपको मैं बता दूँ की ये मेरी ही योजना का नतीजा था, मम्मी को मोच का बहाना बनाना था और फिर उनकी मालिश करवानी थी मुझे, दादाजी के हाथों से..
पर मैंने उस समय ये नहीं सोचा था की मम्मी नंगी होंगी मालिश करवाते हुए..पर जो हुआ.. अच्छा हुआ. मैंने मम्मी के नंगे शरीर को थामा और उन्हें उठाने की कोशिश करने लगा…पर वो उठ नहीं पा रही थी..दादाजी खड़े हुए थे, वो मम्मी के नंगे शरीर को हाथ लगाने से हिचकिचा रहे थे…
मैं मम्मी के पीछे गया और उनकी बगलों में हाथ डालकर, उन्हें उठाने की नाकाम कोशिश करने लगा..मेरे हाथ उनके उभरे हुए चुचों पर थे…जो नहाने के बाद ठन्डे तरबूज जैसे लग रहे थे… मैं उन्हें आसानी से उठा सकता था, पर उठा नहीं रहा था, मैं चाहता था की दादाजी आगे आये और अपनी शर्म को ताक पर रखकर अपनी बहु के नंगे जिस्म को छुए… और हुआ भी ऐसा ही…उन्होंने जब देखा की मम्मी तो मेरे से उठ नहीं रही है, तो उन्होंने मुझसे कहा…”तू हट बेटा…मैं उठाता हूँ…” और उन्होंने अपने फोलादी हाथ मम्मी की गर्दन में और दूसरा टांगों में लगाया और उन्हें किसी छोटे बच्चे की तरह गोद में उठा लिया…
मम्मी ने अपने बाहें उनकी गर्दन में फंसा ली, ताकि वो गिर ना जाये…और उनके चुचों की पैनी नोक, दादाजी की छाती से टकरा कर उन्हें गुदगुदाने लगी..
मैं तो बस खड़ा हुआ उन्हें देख रहा था..
वो मम्मी को लेकर बेड तक गए और उन्हें नंगी ऋतू के बाजू में लिटा दिया..
मम्मी अब दादाजी के सामने नंगी लेटी हुई , वो मोच की वजह से हुए दर्द का बहाना करके, मचल सी रही थी..और दादाजी असहाय से खड़े होकर अपने खड़े लंड को हाथ से छुपाने की चेष्ठा कर रहे थे..उनका मन मम्मी का झूठा दर्द देखकर पसीज रहा था.. उन्होंने ऊपर कैमरे की तरफ देखकर कहा की डॉक्टर को बुलाओ..पर कोई जवाब नहीं आया वहां से..फिर उन्होंने मेरी तरफ देखकर कहा “बेटा…बहु के पैर की मालिश करनी होगी..तू जरा देख, कोई तेल की शीशी है क्या यहाँ…”
मैं ढूंढने लगा, और सरसों के तेल की शीशी, जिसे चुदाई के काम के लिए ही रखा था मैंने कमरे में, उठा लाया..
दादाजी : “बहु….मुझे माफ़ करना, पर हालात ही ऐसे है की मुझे तेरे शरीर को हाथ लगाना पड़ेगा..तुम्हे आराम मिलेगा मालिश से…तुम बुरा मत मानना …”
और ये कहकर उन्होंने हाथ में तेल डाला और उन्हें हथेलियों से मलकर मम्मी के दहकते हुए बदन पर अपने मोटे हाथ रख दिए.. जैसे दादाजी के कठोर हाथ मम्मी ने नर्म शरीर पर पड़े उनकी चीख ही निकल गयी (आनंद के मारे) अह्ह्हह्ह्ह्हह्ह ह्ह्हह्ह्ह्ह ओह्ह्ह्हह्ह्ह्ह पिताजी…….अह्ह्हह्ह्ह्हह्ह …..म्मम्मम्मम
मम्मी तो ऐसे आवाजें निकलने लगी की जैसे पिताजी उनकी चुदाई कर रहे है…मैंने मम्मी को घूर के देखा तो वो समझी और झट से अपनी सिस्कारियों को दर्द भरी आवाज में बदल दिया..
“अयीईईईईईईईइ पिताजी…..बड़ा दर्द हो रहा है…..अह्ह्हह्ह्ह्ह….थोड़ा धीरे…..करो.”
दादाजी जो मम्मी के पैरों के पास बैठे थे, उन्होंने सर ऊपर करके मम्मी को देखा, जो कोहनी के बल बेड पर लेती हुई दादाजी को ही देख रही थी, उनकी फैली हुई टांगो के बीच से मम्मी की चूत की फांके फ़ैल कर बड़ी ही दिलकश लग रही थी, उसमे से निकलती चाशनी की भीनी खुशबू मुझे साफ़ महसूस हो रही थी, दादाजी को भी हो रही थी या नहीं…मुझे नहीं मालुम.
दादाजी : “अरे बहु, लगता है तुम्हे मोच आई है, नस पे नस चढ़ गयी है कोई…मुझे मालिश करने दो, जल्दी ही ठीक हो जायेगी..”
मम्मी : “ठीक है पिताजी…पर थोडा आराम से करना.”
मैंने देखा की दादाजी का लंड बैठने की वजह से उनके कच्छे में से निकल कर मम्मी को साफ़-२ दिखाई दे रहा है…मम्मी ने जैसे ही दादाजी के नाग को अपनी तरफ घूरते देखा उनका तो कलेजा मुंह को आ गया, उसकी शक्ल ही इतनी भयानक थी की उनकी चूत में हलचल सी मच गयी उसके विकराल रूप के बारे में सोचकर..और वो थोडा और सट कर बैठ गयी दादाजी के पास..
मैंने देखा की दादाजी का लंड बैठने की वजह से उनके कच्छे में से निकल कर मम्मी को साफ़-२ दिखाई दे रहा है…मम्मी ने जैसे ही दादाजी के नाग को अपनी तरफ घूरते देखा उनका तो कलेजा मुंह को आ गया, उसकी शक्ल ही इतनी भयानक थी की उनकी चूत में हलचल सी मच गयी उसके विकराल रूप के बारे में सोचकर..और वो थोडा और सट कर बैठ गयी दादाजी के पास..
दादाजी का ध्यान मम्मी की बगल में लेती हुई ऋतू की उभरी हुई गांड के ऊपर भी जा रहा था. वो अपना ध्यान एक जगह केन्द्रित ही नहीं कर पा रहे थे..कभी मम्मी के लटकते हुए खरबूजे देखते तो कभी उनकी चूत का झरना और कभी ऋतू के पीछे के तरबूज… उनकी हालत देखकर मुझे उनपर बड़ा तरस आ रहा था.
दादाजी : “देख बहु, घबराने की कोई जरुरत नहीं है…मैं अब पैर को हल्का सा झटका देता हूँ, इससे तुम्हारी मोच ठीक हो जायेगी…”
मम्मी ने हाँ में सर हिलाया.
दादाजी ने जब फिर से मम्मी के पैर को पकड़ा तो मम्मी ने दादाजी के बाजु को पकड़ लिया, जैसे उन्हें डर लग रहा हो..
दादाजी ने मम्मी के पैर को हल्का सा झटका दिया..मम्मी तो दर्द के मारे दोहरी सी हो गयी..और उन्होंने कब दादाजी के पुरे शरीर को दबोच लिया, मैं भी नहीं समझ पाया…
मम्मी के दोनों मुम्मे दादाजी की बाजुओं के चारों तरफ पिस से रहे थे और उन्होंने अपनी टाँगे दादाजी के टांगो के दोनों तरफ लपेट ली, वो चीख भी रही थी और अपने शरीर को दादाजी के ऊपर रगड़ भी रही थी…
दादाजी की तो हालत ही पतली हो गयी, वो वैसे भी अपनी बहु के नंगे बदन को अपनी आँखों के इतने करीब पाकर काबू रखने की असफल कोशिश कर रहे थे …और ये उनकी बहु है की उन्हें भड़काने में कोई कसर नहीं छोड़ रही थी …
दादाजी : “बहु….अपने आप पर काबू रखो…थोडा दर्द तो होगा ही न….अब यहाँ ऐसी जगह पर तो यही एक उपाय है तुम्हारी मोच को ठीक करने का…थोडा धीरज रखो..”
मैंने मन ही मन सोचा, दादाजी धीरज तो आप रखे हुए है अपने आप पर….उसे छोड़ो और मजे लो…
दादाजी ने मम्मी के पैर की हलकी -२ मालिश करनी शुरू की, मम्मी के मुंह से अब आनंद भरी सिस्कारियां फूटने लगी..
“अह्ह्ह्हह्ह ओह्ह्हह्ह्ह्ह म्मम्मम्म……ह्न्न्नन्न …..ऐसी ही….पिताजी……अह्ह्हह्ह …..थोडा ऊपर….हा….और ऊपर……..बस यही…….न न….यहाँ….”
मम्मी तो दादाजी से पैर को छोड़कर और ऊपर की तरफ आने को कह रही थी…और दादाजी के हाथ मम्मी के आदेशो का पीछा करते हुए उनकी पिंडलियों फिर घुटनों और फिर जैसे ही उनकी मोटी जाँघों के ऊपर आया…मम्मी ने उनके हाथ के ऊपर अपना हाथ रखकर जोर से दबा दिया… दादाजी के हाथ पर मम्मी की चूत से निकलती गर्म हवा की लपटे पड़ी तो उन्हें लगा की हाथ झुलस ना जाए…उन्होंने अपने हाथ वहां से हटा लिए…और फिर से उनके पैरों की तरफ लोट गए..
मम्मी : “पिताजी…आप बुरा मत मानो…पर मुझे यहाँ जाँघों में भी काफी दर्द हो रहा है….अगर आप यहाँ भी….” और उन्होंने बात बीच में ही छोड़ दी.. मुझे मालुम था की दादाजी मन ही मन खुश हो रहे होंगे मम्मी की ये बात सुनकर, पर फिर भी उन्होंने अनमने मन का भाव अपने चेहरे पर लाते हुए मम्मी की जाँघों पर फिर से हाथ रख दिए और उन्हें अपनी खुरदुरी उँगलियों से मसाज करने लगे..
“अह्ह्हह्ह्ह्ह पिताजी….म्मम्मम्म अब ठीक है…. अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह……. याआअ… ओह्ह्हह्ह्ह्ह…… म्मम्मम्मम…….”
मम्मी की आँखें बंद थी, दादाजी ने मेरी तरफ देखा तो मैंने झट से दूसरी तरफ सर घुमा लिया , उन्हें लगा की मैं उनकी तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहा हूँ….तो उन्होंने अपनी नजरें मम्मी के शरीर पर फिर से जमा दी..और उनकी जांघो की मालिश करने लगे…
अचानक मम्मी जो लेटी हुई थी, उन्होंने अपने कुल्हे उठाये और नीचे की तरफ खिसक गयी..दादाजी ने उनके खिसकने पर कोई ख़ास ध्यान नहीं दिया, उनका पूरा ध्यान तो मम्मी के हिलते हुए चुचों पर था..
मम्मी ने एक-एक इंच करके नीचे की तरफ खिसकना शुरू कर दिया, फलस्वरूप दादाजी के हाथ उनकी जाँघों से होते हुए उनकी चूत के और नजदीक होते चले गए.. और जैसे ही दादाजी के हाथ मम्मी की चूत से टकराए उन दोनों के शरीर में झुरझुरी सी दौड़ गयी..
दादाजी : “माफ़ करना बहु….मेरा ध्यान कहीं और था..” पर उन्होंने देखा की आँखें बंद करके लेटी हुई मम्मी पर उनके हाथ और बात का कोई असर नहीं हुआ है, बल्कि मम्मी के कुल्हे हवा में उठकर दादाजी के हाथों का स्पर्श पाने को बेताब से दिखे…अब मुझे लगा की दादाजी की हिम्मत शायद जवाब दे जाए.
दादाजी के मोटे हाथों ने अब सीधा मम्मी की चूत के ऊपर हाथ रख दिया..
“अह्ह्हह्ह्ह्हह्ह ……ओह्ह्ह्हह्ह्ह्ह…..ऊऊओ गोड……….अह्ह्हह्ह्ह्ह म्मम्मम्मम …..”
दादाजी समझ गए की मम्मी भी शायद यही चाहती है…उन्होंने उनकी गीली चूत को मसलना शुरू कर दिया. दादाजी के हाथों पर लगे तेल और मम्मी की चूत से निकलते तेल से दादाजी के हाथ पूरी तरह से गीले हो गए.. उन्होंने अपने पारखी हाथों से मम्मी की चूत के ऊपर मसाज करी शुरू कर दी, मम्मी तो दादाजी के इस हमले से बुरी तरह से छटपटाने लगी… “ओह्ह्ह्हह्ह पिताजी……म्मम्मम……मजा आ रहा है…..आह्ह……ओह्ह्ह्हह्ह्ह्ह……म्मम्मम …..अन्दर…..और अन्दर….से करो….अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह…”. पिताजी समझ गए की उनकी बहु क्या चाहती है..
उन्होंने अपने बीच वाली मोटी ऊँगली मम्मी के चूत के छेद पर टिकाई और उसे अन्दर घुसेड दिया.. “अह्ह्हह्ह्ह्हह्ह …..मर्र्र …..गयी……अह्ह्हह्ह्ह्ह …..”
उनकी ऊँगली भी किसी छोटे-मोटे लंड से कम नहीं थी….लगभग चार इंच लम्बी और काफी मोटी….मम्मी को तो ऐसे लग रहा था की कोई उनकी लंड से चुदाई कर रहा है…. उन्होंने अपनी आँखें खोली और दादाजी के हाथ को कस के पकड़ लिया…और उसे अपनी चूत में तेजी से अन्दर बाहर करने लगी..
मम्मी अपनी सुध बुध खो बैठी थी..वो शायद नहीं जानती थी की उन्हें अपनी तरफ से कोई पहल नहीं करनी थी… पर चूत की आग के आगे किसका बस चला है..उन्होंने किसी भी बात की परवाह किये बिना अपने ससुर के हाथों की उँगलियों को अपनी रसीली चूत के अन्दर बाहर करना शुरू कर दिया…दादाजी भी किसी रोबोट की तरह मम्मी की आँखों में देखकर अपने हाथ को उन्हें सौपकर, किसी आज्ञाकारी नौकर की तरह उनकी तीमारदारी कर रहे थे.
अचानक मम्मी ने अपना एक हाथ आगे करके दादाजी के लंड के ऊपर रख दिया… दादाजी का लंड उनके कच्छे को फाड़कर बाहर आने को तैयार था, जैसे ही मम्मी ने उस पाईप को पकड़ा, दादाजी भोचक्के रह गए.. उन्होंने अपना हाथ मम्मी की चूत के अन्दर से वापिस बाहर खींच लिया…और गहरी साँसे लेते हुए दूसरी तरफ मुंह करके बैठ गए. मम्मी और मुझे लगा की अब तो सारा खेल गड़बड़ हो गया..मम्मी को इतनी जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए थी..वैसे भी दादाजी लाइन पर आ ही रहे थे.. वो अपनी आँखें बंद करे अपने ऊपर काबू पाने की एक और कोशिश कर रहे थे..
पर मम्मी भी हार मानने वालों में से नहीं थी..वो उठी और दादाजी के बिलकुल पास जाकर धीमी आवाज में बोली
मम्मी : “पिताजी…मैं जानती हूँ की आप क्या सोच रहे हैं…पर मैं भी क्या करूँ, हालात ही ऐसे हैं…और आप को इतने पास पाकर मैं अपने आप पर काबू नहीं रख पा रही हूँ….आप …आप समझ रहे हैं ना….प्लीस पिताजी…आप….आप मेरे पास आइये..”
पर दादाजी कुछ ना बोले.
मम्मी : “मैंने हमेशा आपका आदर किया है…और आपकी सेवा की है…आज भी मैं आपकी सेवा करना चाहती हूँ…प्लीस मुझे करने दीजिये..आप मना मत करना.. और आप भी जानते है, की यही एक रास्ता है इस साईको की कैद से निकलने का…..मुझे कोई ऐतराज नहीं है…आप को जो करना चाहते हैं ..कर सकते हैं..”
मम्मी ने तो अपनी स्वीकृति दे दी..पर दादाजी शायद अभी भी अपनी हद्द को पार करने में हिचकिचा रहे थे… मम्मी ने आगे बढकर उनके कच्छे का नाड़ा पकड़ा और उसे खींच दिया..वो कुछ ना बोले..मम्मी ने किसी आज्ञाकारी नौकरानी की तरह उनका कच्चा उतार दिया…और अगले ही पल उनका लम्बा और मोटा लिंग फिर से सभी के सामने आ गया… मम्मी ने उसे अपने हाथ में पकड़ा और उसे ऊपर नीचे करने लगी…दादाजी ने मम्मी की तरफ देखा..दोनों की नजरें मिली…और अगले ही पल मम्मी ने उनके लम्बे और मोटे लंड को अपने मुंह में भर लिया…
दादाजी तो गाँव के रहने वाले थे, उनकी पूरी जिन्दगी में किसी ने भी उनके लिंग को मुंह में नहीं लिया था… आज पहला मौका था जब मम्मी ने उसे चूसा था…उनकी आँखें बंद सी होने लगी और उन्होंने आखिर समर्पण कर ही दिया अपनी गर्म बहु के सामने… मम्मी अब उठ कर उनके क़दमों के पास बैठ गयी…और पूरी तन्मन्यता से उनके लंड को चूसने लगी…पूरा लंड तो जा नहीं पा रहा था उनके मुंह में…इसलिए…उन्होंने अपनी जीभ निकाल कर नीचे के हिस्से को चाटना और कुरेदना शुरू कर दिया…दादाजी के मुंह से मजेदार सिसकियाँ निकल रही थी…
“अह्ह्हह्ह्ह्ह ऊऊओ बहु……अह्ह्ह्हह्ह ….रीईइ…….अह्ह्हह्ह……अह्ह्हह्ह……मेरा पहली बार चूसा है……किसी ने…..अह्ह्ह…….म्मम्मम्मम……”
और तभी ऋतू की आँख खुल गयी, उसने जब देखा की मम्मी तो दादाजी का लंड चूस रही है तो वो समझ गयी की अब तो खेल ख़त्म ही समझो….
ऋतू : “अरे वह …मम्मी….दादाजी….आपने हम सभी को यहाँ से निकालने की खातिर…ये कर ही लिया…”
दादाजी और मम्मी ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया, ऋतू उठकर मेरे पास आकर बैठ गयी और हम दोनों उनका खेल देखने लगे.. अचानक दादाजी ने मम्मी को ऊपर खींचा और उनके होंठ चूसने शुरू कर दिए, मम्मी ने भी उस अधीर बुढ्ढे का साथ देते हुए अपने होंठ उन्हें समर्पित कर दिए…दादाजी के हाथ मम्मी के मुम्मे दबाने लगे…ये सब देखकर ऋतू भी मेरे लंड को अपने हाथों से मसलने लगी… दादाजी ने मम्मी को किसी गुड्डी की तरह उठाया और उन्हें बेड पर पटक दिया.. उन्होंने अपना लंड हाथ में पकड़ा और उसे मम्मी की चूत से सटाया ही था की ऊपर से स्पीकर से फिर से तेज आवाज गूंजी…
आवाज : “रुको……..”
दादाजी के साथ-२ सभी सकते में आ गए..
आवाज : “मैंने तुमसे कहा था की चुदाई करने से पहले तुम्हे बताना होगा की तुमने अपना इरादा क्यों बदला…क्या ये सही है…तुम्हारे हिसाब से…तभी तुम चुदाई कर सकते हो..”
