मेरे मन की यह इच्छा पूरी करने के लिए जो सहजता और साहस की जरुरत है, वह अभी भी आने में थोडी झिझक है.
हम पति पत्नी बन गए है पर हमारे इतने दिन का माँ बेटे का रिश्ता था और वह अभी भी हमारे मन के एक दम डीप में है.
इस लिए न माँ , न में, कोई भी अभी भी सही तरह से एक दूसरे से फ्री नहीं हो पाए
एक दूसरे के पास मन की चाहत पूरी करने के लिए आगे नहीं बढ़ पारहे है.
मन चाह रहा है दोनों का.
बस एक सूक्ष्म लाइन इस वास्तव और उस चाहत को अलग करके रखी है.
हमे मालूम है, वक़्त ही सब कुछ ठीक करेंगा.
और हम दोनों उस वक़्त के बेसब्री से इंतज़ार में है.
मेरा गला सुख रहा था. अन्दर का छट पटाहट और बाहर उसको दबाकर रखना और फिर ऐसी परिस्थिति में आकर प्यास लग रही थी.
मैं वहां से किचन की तरफ गया.
अहमदाबाद जाने से पहले अक्वागार्ड का एक वाटर पूरिफिएर लगाया था. उसको स्टार्ट करके में सब खाली बोटल्स में पानी भर्ने लगा.
मैं सोच रहा था की क्या अद्भुत हमारा नसीब.
मैं २० साल में शादीशुधा बन गया.
हमारी शादी में न कोई गेस्ट, न कोई गिफ्ट, न कुछ गाना बजाना, कुछ भी नही हो पाया.
पर हम एक दूसरे को सच्चे दिल से प्यार करके इस रिश्ते में जुड़ गये दुनिया में सब से अलग यह शादी और अलग यह पहली शाम, पहली रात
मैं पाणी पिकर एक बोतल लेकर बैडरूम के तरफ चला. मैं जैसे ही रूम के डोर की तरफ पहुंचा, दूर से डोर के दोनों परदे की गैप से देखा की माँ खुली हुई अलमारी के दोनो दरवाजे पकड़ के चुप चाप खड़ी है. उनके बॉडी टेक्चर और प्रोफाइल फेस पे वह एक्सप्रेशन से मालूम पड़ रहा है की वह बहुत सरप्राइसड हुई है और साथ में एक ख़ुशी उनको छा रही है.
मैं वहां रुक गया और माँ को ऐसे देख के मेरे दिल में एक अनुभुति आया.
माँ ज़िन्दगी में पति के साथ संसार करने की असली ख़ुशी, सुख, कभी ठीक से पाई नहि. ज़िन्दगी में छोटी छोटी चीज़ें जो हमे ख़ुशी देती है, वह कभी पाई नहि.
आज ज़िन्दगी के इस मोड़ पे आकर अचानक सब कुछ नये तरह से पाकर खुद के अंदर ही सरप्रीसड हो रही है.
एक पुराने जीवन को अब एक नये जीवन के रूप में डालकर उसको फिर से जीने का जो मौका नसीब ने दिया है,
उसमे वह सच मच खुद को भाग्याशाली समझ रही है.
इस लिए अब छोटी छोटी चीज़ों से भी उनके अंदर का इमोशन उभार के बाहर आरहा है.
मैं खड़े खड़े मन में बोलते रहा की में ज़िन्दगी भर माँ को ऐसे ही ख़ुशी और आनंद देना चाहता हु.
ज़िन्दगी के ऐसे ही रंग में उनको रंगाकर रखना चाहता हु. मैं आगे बढ़ के रूम की तरफ गया. माँ विस्मय के साथ अलमारी के अंदर देख रही थी और जैसे ही मेरी प्रेजेंट घर के अंदर महसुस कि वह धीरे धीरे मुड़कर मुझे देखि.
मैं जानता हु की अलमारी के अंदर में उनके लिए बहुत सारी सारीज, ज्वेल्लरी वगेरा सारी चीज़ों को जो खरीदके रखा है,
माँ कभी कल्पना नहीं कि होगी की में ऐसा करूँगा उनके लिये.
शादी से पहले यहाँ घर में जो कुछ किया था सब फ़ोन पे बताया था.
पर में यह सब उनसे छुपके किया था.
और आज माँ वह सब देख के उनके प्रति मेरा जो प्यार है, उसमे वह धीरे धीरे बह जाने लगी.
और में आज उनको इस तरह खुश देख के मेरे अंदर और प्यार आने लगा.
माँ मुझे बिना पलक झपका के कुछ पल ऐसे देखि और फिर एक मिठी मुस्कान देकर मुझे उनके दिल की सारी अनुभुति को मेरे अंदर संचरित कर दि.
मै पाणी की बोतल को वहि टेबल पे रख के धीर कदमो से माँ की तरफ बढ्ने लगा.
माँ अलमारी के दोनों दरवाजे को दोनों हाथ से पकड़के मेरी तरफ सर घुमा के मुझे देखते हुए खड़ी है.
मैं उनके उस प्यार भरी मुस्कान का जवाब एक चौड़ी स्माइल से देते हुए उनके पास पहुंचा. उनको यह सरप्राइज देना चाहता था और वह सच हो गया.
मैं उनके पास पहुँचके उनके एकदम नज़्दीक खड़ा हो गया.
माँ अपने विस्मय को अपने खुद की मन की ख़ुशी से और शर्म से धक के एक अद्भुत प्यार भरी स्माइल देकर और दिल में तीर लगानेवाली एक नज़र देकर उनका चेहरा थोड़ा झुका ली.
मैं उनके पास एकदम नज़्दीक खड़ा हु.
हम कोई कुछ नहीं बोल रहे है. केवल इस पल को मेहसुस कर रहे है.
कुछ पल बाद मैंने उनके कान के पास मुह ले जाकर फुसफुसाकर पुछा
“तुम्हेँ पसंद नहीं आई”
वह धीरे धीरे मेरी तरफ नज़र घुमाकर आँखों में आंख डालकर होंटों पे ख़ुशी की मुस्कराहट रख के उनका सर एक अद्भुत प्यारे तरीके से हिलाकर धीरे से बोली
“बहुत”
फिर नज़र को थोड़ा दूसरी तरफ करके एक हल्की उदास आवाज़ से बॉली
“मैंने सपने में भी नहीं सोचा की…..मुझे ज़िन्दगी में कभी ऐसा प्यार मिलेंगा”
माँ यह बोलकर उनके अंदर के इमोशन को कण्ट्रोल करते हुए रुक गयी.
फिर खुद ही हस के वहि चुप होकर खड़ी रहि.
मैं मेहसुस किया की माँ इस तरह प्यार को ज़िन्दगी में फिर से पा कर, मेहसुस करके अंदर से पिघल रही है.
मैं देख रहा हु की माँ के लेफ्ट हैंड की इंडेक्स फिंगर अलमारी के डोर के ऊपर रब कर रही है.
मैं समझ गया माँ के अंदर एक अनजानी अनुभुति उनके शरीर में दौड रही है.
मैंने उनके पास रहकर मेरे सर को धीरे से थोड़ा आगे ले जाकर उनके सर को टच करवाया. माँ मेरे टच से अचानक काँप उठि. वह कम्पन उनके शरीर में इतनी प्रोमिनेंटली था की में अपनी ऑखों से वह देख पाया. मेरे अंदर वह चाहत , वह उत्तेजना फिर से आगया. मैं अपने सांस की गर्मी खुद मेहसुस कर रहा हु. अपने शरीर में जो खलबली मची है वह महसुस कर रहा हु.
मेरे पेनिस के शख्त होने का ताज़ा इशारा में मेहसुस कर रहा हु. मैं धीरे धीरे उनके बालों में मेरा नाक टच करवाया और उनके बालों की खुशबु स्वास भरके लेने लगा. मैंने दोनों हाथ धीरे धीरे उठाके उनकी कमर को पकड़ा और मेरा लेफ्ट हैंड उनके पेट् की मुलायम स्किन के ऊपर टच हो गयी. माँ की सांस तेज हो रही है.
मैं मेरे पैर को थोड़ा आगे ले जाकर उनके शरीर के साइड से मेरा शरीर टच करवा दिया.
मैं उनके बालों में दो तीन बार नाक रगड के धीरे धीरे उनके लेफ्ट शोल्डर के ऊपर मेरे मुह को लेकर आया.
और जैसे ही मेरे होठो का उनकी गर्दन की मुलायम स्किन पे टच हुआ, वह एक गुदगुदी सी फील करने लगी.
और में मेरी नाक और होठ को उनके गोरी गोरी सुडौल गर्दन में एकबार रब करते ही वह झट से अपने शोल्डर को खीच लिया और जोर से हस् पडी. मैं उनकी कमर में दोनों हाथ का बंध लगाकर दोनों हाथ को लॉक करके कसके पकड़ा हुआ है. इस लिए वह मेरे से दूर जा तो नहीं पाई पर हस्ते हस्ते गुदगुदी फील करते करते बोली
“आरे..क्या कर रहे है…छोड़िये….मुझे बहुत काम करना है अभी”
मै मेरे होठ और नाक से उनकी स्किन के ऊपर रब करना बंद करके बस उनको चुपचाप पकड़के खड़ा हु.
वह भी अब शांत हो गयी.
पर हमारे दोनों की सांस तेज बह रही है. मेरे जीन्स के अंदर का पेनिस जीन्स फाड़ के बाहर आना चाह रहा है.
फिर भी में उनकी इच्छा को सम्मान देते हुए उनके साथ और बदमाशी नहि किया.
हम ऐसे कुछ पल एक दूसरे से लिपट के खड़े रहने के बाद माँ धीरे से बोली
“छोडिये ना…मुहे अब काम करने दिजिये”
मै समझ गया माँ अभी यह सब करना नहीं चाह रही है. लेकिन वह चाहती है.
मैं अंदर ख़ुशी से भर गया.
मैं उनको मेरी बाँहों से मुक्त करके उनके पास में ही खड़ा हु.
माँ मेरे हाथ के बंधन से मुक्त होकर तुरंत वहां से जाने लगी और जाते जाते मेरे तरफ देख के बोली की
“चलिये फ़टाफ़ट जाइये…और मार्किट से सामान वगेरा लेकर आइये”
बोलकर माँ फिर से खुली हुई सूटकेस के पास पहुच गयी और कपडा वैगेरा समेट्ने लगी.
मैं समझ नहीं पाया माँ क्या लाने को कहि. मैंने माँ को पुछा
“क्या लेकर आऊँ?”
माँ मेरी तरफ देख के मेरे न समझने की हालत देख के खुद हस् पडी. और मुझे देखते हुए बोली
“रात को डिनर नहीं करना है”
मै बोला “तोह उनके लिए मार्किट से क्या लाना,मैं होटल से खाना मँगवाता हु”
माँ काम करते करते रुक गयी और मुझे देखते रहि. फिर नज़र हटके काम करना सुरु करती है और वैसे काम करते करते बोली ”ओह.. मैं बनाउ तो मेरे हाथ का खाना पसंद नहीं आयेगा”
माँ के गले में एक ऐसा टच था की में अंदर से काँप गया.
मैं उनको हर पल खुश देखना चाहता हु,
उनकी हर इच्छा को में आदेश मानकर पूरा करना चाहता हु,
में इस परिस्थिति को सहज करने के लिए हस पड़ा और तुरंत बोला
“दुनियाके सारे ५ स्टार होटल का खाना भी तुम्हारे हाथ का बना हुआ खाने के पास फिका है”
माँ झट से मुड़के मुझे देखि और हस् पडी.
फिर बोली
“तोह जाईये. सामान लेकर आइये और में तब तक यह सब समेट के रख देती हु”.
मै उनकी तरफ देख के स्माइल कर रहा हु
और वह मुझे देख के हासके फिर से काम पे ध्यान दी. मैं उनको इस तरह एक नये रूप में, नयी दुल्हन के रूप में,
मेरी बीवी की रूप में देख के मन ही मन एक ख़ुशी के सागर में बह गया
और फिर याद आया की अरे आज रात तो हमारी सुहाग रात है.
यहाँ कोई नहीं जो इस सुहागरात में नये दूल्हा दुल्हन के लिए सब कुछ सजाकर के देंगे.
यहाँ केवल हम दोनों है.
मैं तुरंत सोच लिया की हमारी सुहागरात को और सुन्दर और खूबसूरत तरीके से सजाकर मनाने के लिए मुझे बहुत कुछ लाना भी है.
मैं तुरंत माँ को एक झलक देखकर वहां से निकल गया मार्किट जाने के लिये.
