पापी परिवार की पापी वासना – Update 65 | Incest Story

पापी परिवार की पापी वासना – Dirty Incest Sex Story

65 एक आह्वाहन

इस दौरान, जैकूजी में जय रजनी जी के डोलते स्तनों को चूसने में व्यस्त था। उनके कोमल दूधिया थनों को अपने मुँह में लेकर चूसता हुआ जय उस कामोत्तेजीत स्त्री के मुख से अनेक आनंदभरी कराहें निकलती सुन रहा था। जय रजनी जी के अकड़े निप्पलों को एक एक कर के अपने तप्त आतुर होठों के बीच खींच रहा था। रजनी जी ने उसके लिंग को उसकी ट्रेक के भीतर से बाहर निकाल लिया था, और उसकी भीकर लम्बाई पर अपनी मुष्टि को ऊपर नीचे रगड़ रही थीं। उनका अन्य हाथ स्वयं उनकी बिकीनी की जाँघिया के अंदर था, और अपनी शीग्रता से नम होती योनि के द्वार को मल रहा था।

“ऊ ऊ ऊहह, जय! कैसा मादरचोद लन्ड पाया है बे! ::: मोटा और मजबूत !” जय ने रजनी जी के हाथों को अपने अण्डकोष पर लिपटते हुए अनुभव किया, जिसपर उन्होंने हलके से दबाव डला, तो वो उनके वक्षस्थल में मुंह लगाकर कराह पड़ा। * • • • और इन गोल-गोल नाटे टट्टों में भी खूब माल जमा कर रखा है! बोल बे , जब इन टट्टों से अपनी माँ की चूत में वीर्य उडेलता है तो तेरी मम्मी को तो खूब मजा आता होगा, है ना जय ?”

जय ने दबी आवाज में स्वीकृति भरी, जिस प्रकार से उसके सामने खड़ी यह सौंदर्यवती महिला उससे वार्तालाप कर रही थी, उसके कारणवश जय का लिंग आक्रामक शैली में फड़क रहा था। उसके लिंग का कठोर सिरा उनके नग्न पेट पर तत्परता से दबाव डाल रहा था। रजनी जी ने उसके सर को अपने पसीने से चमचमाते स्तनों पर से उठाकर अलग किया। उन्होंने जैकूजी के किनारे पर पीठ टेकी और अपने कूल्हों को इस प्रकार ऊपर उठाया कि उनका बिकीनी से ढका पेड़ पानी की सतह से बस जरा सा ऊपर रह गया था।

उतार दे इसे, जानेमन !”, वे फंकार कर बोलीं, ८ … और हाँ, अपने दाँतों से उतारना !” जय बुलबुलाते पानी में घुटनों के बल बैठ गया और अपने हाथों को रजनी जी की बिकीनी की जाँघिया के इलास्टिक के दोनो सिरों के अंदर अटका दिया। रजनी जी ने उसके सर को अपने उठे हुए पेड़ पर नीचे दबाया,

और वासना के मारे कराहते कंपकंपाते हुए उसकी जवान ठोड़ी के स्पर्श को अपने प्रजननांगों पर अनुभव किया। जय ने अपने दाँतों के भीतर उनकी जाँघिया को दबोचकर खींचा :: : उसके दाँत और उंगलिया रजनी जी के बलिष्ठ कूल्हों पर से उस भीगे सूक्ष्माकार वस्त्र को हौले-हौले सरका कर उतारने लगे।

जैसे ही उसकी फटी रोमांचित आँखों के समक्ष रजनी जी की योनि प्रकट हुई, जय ने उनके यौनांगों से निकलती सुगन्धि का एक झोंका सुंघा, उनके कामोत्तेजित जवलन्त योनि मार्ग की सुगन्ध जय के नथुनों में फैल गयी। उसने लम्बा श्वास लेकर रजनी जी की मादक सुरभि को अंदर लिया, और बिकीनी की जाँघिया को उनकी लम्बी छरहरी टाँगों पर से नीचे उतार खींचा और वस्त्र के उस छोटे से टुकड़े को अपने कन्धों के ऊपर से पीछे फेंक दिया, जिसके बाद उसके मुख के ऐन सामने उनकी अनावृत योनि प्रस्तुत रूप में ताक रही थी।

“ओहहह, जय! तेरी गरम-गरम साँसे मेरी चूत पर बड़ी अच्छी लगती हैं, बेटा !”, रजनी जी ने आह भरी, और अपनी जाँघों को उसके स्वागतात्मक मुद्रा में चौड़ा फैला दिया। जय ने नीचे देखकर अपनी सुन्दर पड़ोसन की नग्न योनि को अपनी आँखों के सामने खुलता हुआ देखा। कैसा विलक्षण दृष्य था, एक खिलते पुष्प के समान, उनकी फली – फूली, रोम मण्डित योनि कोपलें खुलकर अपने अंदर की चमचमाती लालिम लिसलिसाहट की झांकी प्रस्तुत की।

“पसन्द आयी, जय बेटा ?”, वे कराहीं और अपनी उंगली को गुलाबी, दवलिप्त मांद पर फेरा। लड़के ने केवल मूक होकर सर हिलाया, उसकी आँखें रजनी जी की चूती योनि से केवल कुछ इन्च की दूरी पर ही थीं। रजनी जी ने अपने कोमल योनि रोमों को मांद से हटा कर अलग किया और उंगलियों से पाट कर योनि कोपलों को चौड़ा खोल दिया। उनका चोंचला बाहर को निकला हुआ था, और वे कामुकतापूर्वक मुस्कुराती हुई उसके किनारों पर अपनी उंगलियाँ फेर रही थीं।

“देख खानदानी चूत ,”, वे कामुक शैली में बोलीं, “कैसी लिसलिसी चिकनी चूत है मेरी, जिस लन्ड के नसीब हो जाये, उसे जन्नत का लुफ्त देती है, समझा मेरे काफ़िर आशिक़ !”

जय ने अब उनके नितम्बों को पकड़ कर ऊपर उठा रखा था, जबकि उनकी टाँगें अत्यंत चौड़ी होकर फैली हई थीं, और उनके कामतत्पर प्रजननांगों को उसकी उतावली निगाओं की दिशा में ऊपर उठाये हुए थीं। अपनी नाक से कुछ ही इन्च नीचे वो उनकी सुलगती योनि की उष्मा का आभास कर पा सकता था। रजनी जी ने उसके आकर्षक नवयुवा मुख पर भूख के भाव को देखा और निश्चय किया कि अब और प्रतीक्षा उनके बस में नहीं थी। वासना भरी आकांक्षा से भरी कराह निकाल कर उन्होंने नीचे को हाथ बढ़ाया और लड़के के सर को दोनो हाथों के बीच दबोच लिया और अपनी खुली योनि पर खींच कर दबा लिया।

“चाट मुझे !”, वे अपने कामाग्नि से उत्पीड़ित योनि स्थल पर उसके होठों के स्पर्श को पाकर कराहीं।

“प्लीज, मेरी चूत को चाट! …. देख तो मेरा हरामजादा बदन कैसा तप रहा! … मेरी चूत को तेरी जीभ की जरूरत है बेटा!”

जय का मुख उनकी तप्त योनि मांद पर दबा पड़ा था, और उसकी पहले की बौखलाहट अब असीम आनन्द में परिवर्तित हो चुकी थी। जैसे रजनी जी ने अपने योनि स्थल को उसके मुख पर मसलना प्रारम्भ किया, जय के होंठ खुल गये, और वो अपनी जिह्वा को उनके स्वादिष्ट गुलाबी योनि के भीतर घुमा-घुमा कर चाटने लगा। जैसे लड़के का मुँह उनकी रिसती, रोमयुक्त योनि के चटखारे लेने लगा, वे चीख पड़ी, उन्माद के मारे चीख-चीख कर अपनी सूजी हुई योनि-कोपलों और अकड़े चोंचले पर उसकी निपुणता से घिसती जिह्वा द्वारा आनन्दप्राप्ति करने लगीं।

ऊह ऊहह, हाँ बेटा! :: चाट मेरी चूत , जय! :… चोद मेरी चूत को अपनी जीभ से मेरे बड़वे आशिक़ !”
हाय रे बेरहम, इस प्रेम से चूत चाटेगा तो मुझे तो लत ही पड़ जायेगी! आह अँह अँह :: : आँह :: : अँह फिर तेरी रखैल बनकर यहीं पड़ी रहूंगी जिंदगी भर ! अँह • अँह ::अँहहह • अँहह …• आँह”

जय भी उनके पेड़ में घुसकर कराह रहा था, और अपने खुले हुए, चूसते मुख को कस के उनकी टपकती मांद पर लगाये हुए, जीह्मा को बड़ी तीव्र गती से अंदर और बाहर फेर रहा था; उसका ऊपरी होंठ लगातार उनके उदिक्त चोंचले को मसलता जा रहा था। रजनी जी की कंपकंपाती देह पाश्विकता से फुदकती जाती थी, वे उसके सर को अपनी फैली योनि पर बार-बार मारती हुई, उसके चेहरे को अपनी योनि से प्रचुरता से प्रवाहित होते द्रवों पर लथेड़ती जा रही थीं। बेजोड़ स्वाद था उनकी योनि का, लगभग उसकी माँ और बहन जैसा ही, लेकिन एक अनूठे रूप से अलग सा कुछ और भी था। उन मादक द्रवों को वो चाट कर पूरा साफ़ कर गया, ‘सुड़प्प – सड़ाप्प’ की अश्लील आवाजें निकालता हुआ वो उनकी योनि से उत्पन्न होती अन्तिम बून्द को चूस गया … और जिस उत्साह से वो चूसता जाता, उसी प्रबलता से उस कामुक स्त्री की योनि से यौन-द्रवों का प्रवाह होता रहता।

Please complete the required fields.




Leave a Reply