तेरे प्यार मे …. – Adultery Story by FrankanstienTheKount

#62

कुछ देर बीती , फिर और देर हुई और होती ही गयी . राय साहब का कहें कोई पता नहीं था. इंतज़ार करते हुए मैं थकने लगा था.इतने बड़े जंगल में मैं तलाश करू तो कहाँ करू न जाने किस दिशा में गए होंगे वो. मेरी आँखे नींद के मारे झूलने लगी थी की तभी जंगल एक चिंघाड़ से गूंज उठा . आवाज इतने करीब से आई थी की मैं बुरी तरह से हिल गया.

आज जंगल शांत नहीं था और मुझे तुरंत समझ आ गया की शिकारी निकल पड़ा है शिकार में पर वो ये नहीं जानता था की मैं भी हूँ यहाँ .मैं आवाज की दिशा में दौड़ा. झुरमुट पार करके मैं खुली जगह में पहुंचा तो देखा की एक बड़े से पत्थर पर वो ही आदमखोर बैठा है . उसकी पीठ मेरी तरफ थी पर न जाने कैसे उसे मेरी उपस्तिथि का भान हो गया था .

गर्दन पीछे घुमा कर उसने अपनी सुलगती आँखों से मुझे देखा . मैं भी खुल कर उसके सामने आ गया. अँधेरी रात में भी हम दोनों एक दुसरे को घूर रहे थे . समय को बस इतंजार था की पहला वार कौन करे .क्योंकि आज मौका भी था दस्तूर भी था और ये मैदान भी . आज या तो उसकी कहानी खत्म होती या फिर मेरी. एक छलांग में ही वो तुरंत पत्थर से मेरे सामने आकर खड़ा हो गया.

मैंने अपना घुटना उसके पेट में मारा और उछलते हुए उसके सर पर वार किया. ऐसा लगा की जैसे पत्थर पर हाथ दे मारा हो मैंने. उसने प्रतिकार किया और मुझे धक्का दिया मैं थोड़ी दूर एक सूखे लट्ठे पर जाकर गिरा. इस से पहले की मैं उठ पाता उसने अपने पैर के पंजे से मेरे पेट पर मारा.

दुसरे वार को मैंने हाथो से रोका और उसे हवा में उछाल दिया. न जाने क्यों मुझे वो कमजोर सा लग रहा था . तबेले वाली मुठभेड़ में भी मैंने ऐसा ही महसूस किया था .मेरे हाथ में एक पत्थर आ गया जो मैंने उसके सर पर दे मारा . वो चिंघाड़ उठा और अगले ही पल उसने मुझे कंधो से पकड़ कर उठा लिया मैं हवा में हाथ पैर मारने लगा. कंधो से होते हुए उसकी लम्बी उंगलिया मेरी गर्दन पर कसने लगी . मेरी साँसे फूलने लगी पर तभी उसने अपनी पकड़ ढीली कर दी और मुझे फेंक दिया .

मै हैरान हो गया ये दूसरी बार था जब वो चाहता तो मुझे मार सकता था पर उसने ऐसा नहीं किया . अपने आप को संभाल ही रहा था मैं की तभी मुझे गाड़ी चालू होने की आवाज सुनाई दी .मैं तुरंत उस दिशा में दौड़ा पर मुझे थोड़ी देर हो गयी गाड़ी जा चुकी थी . मैंने अपनी साइकिल उठाई और तुरंत गाँव की तरफ मोड़ दी. जितना तेज मैं उसे चला सकता था उतनी तेज मैंने कोशिश की . घर पहुंचा , सांस फूली हुई थी . मैं तुरंत पिताजी के कमरे के पास पहुंचा और दरवाजे को धक्का दिया. दरवाजा अन्दर से बंद था .

“पिताजी दरवाजा खोलिए ” मैंने किवाड़ पिटा

“हम व्यस्त है अभी ” अन्दर से आवाज आई

मैं- पिताजी दरवाजा खोलिए अभी के अभी

कुछ देर ख़ामोशी छाई रही इस से पहले की मैं आज दरवाजे को तोड़ देता अन्दर से दरवाजा खुला . मैं कमरे में घुस गया .पिताजी के हाथ में जाम था . टेबल पर एक किताब खुली थी .

मैं- जंगल में क्या कर रहे थे आप

पिताजी ने किताब बंद करके रखी और बोली- जंगल में जाना कोई गुनाह तो नहीं . हमें लगता है की इतनी आजादी तो है हमें की अपनी मर्जी से कही भी आ सके जा सके.

मैं- ये मेरे सवाल का जवाब नहीं है पिताजी

पिताजी- हम जरुरी नहीं समझते तुम्हारे सवालो का जवाब देना . रात बहुत हुई है सो जाओ जाकर

मैं- आपको जवाब देना होगा. आप अभी जवाब देंगे मुझे .

पिताजी ने अजीब नजरो से देखा मुझे और बोले- अभी तुम इतने बड़े नहीं हुए हो की हमसे नजरे मिला कर बात कर सको

मैं-नजरे छिपा कर तो आप भागे थे जंगल से . मैंने आपको पहचान लिया है आपके अन्दर छुपे उस शैतान को पहचान लिया है मैं जान चूका हूँ की वो हमलावर आदमखोर कोई और नहीं मेरा बाप है .

जिन्दगी में ये दूसरा अवसर था जब मैंने राय साहब के सामने ऊँची आवाज की थी .

राय साहब ने अपनी ऐनक उतारी उसे साफ़ किया और दुबारा पहनते हुए बोले- माना की हौंसला बहुत है तुममे बरखुरदार पर ये इल्जाम लगाते हुए तुम्हे सोचना चाहिए था क्योंकि हम चाहे तो इसी समय तुम्हारी जीभ खींच ली जाएगी.

मैं- ये ढकोसले, ये शान ओ शोकत ये झूठी नवाबी का चोला उतार कर फेंक दीजिये राय साहब .मैं जानता हूँ वो हमलावर आप ही है .

पिताजी ने जाम दुबारा उठा लिया और बोले- इस यकीन की वजह जानने में दिलचश्पी है हमें

मैं-क्योंकि मैं भी उसी जगह मोजूद था मेरी मुठभेड़ हुई उसी हमलावर से और जब मैं उसके पीछे था ठीक उसी समय आप की गाडी वहां से निकली . क्या ये महज इतेफाक है .

पिताजी ने शराब का एक घूँट गले के निचे उतारा और बोले-इत्तेफाक तू जनता ही क्या है इत्तेफाक के बारे में . समस्या ये नहीं है की हमारी गाड़ी वहां क्या कर रही थी समस्या ये है की जमीनों के साथ साथ जंगल को भी तुमने अपनी मिलकियत समझ लिया है किसी और का जंगल में जाना गवारा नहीं तुम्हे

मैं- कितना कमजोर बहाना है ये . चलो मान लिया की मुझ पर हमला होना और हमलावर का उसी समय भागना और आपका भी वही से एक साथ निकलना संयोग ही था पर इतनी रातको ऐसा क्या काम हुआ जो राय साहब को जंगल में जाना पड़ा.

पिताजी- हमने कहा न तुम्हे ये जानने की जरुरत नहीं

मैं- जरुरत है मुझे. गाँव के लोग मारे जा रहे है . गाँव की सुरक्षा मेरी जिम्मेदारी है

पिताजी- बेशक तुम्हारी जिम्मेदारी है पर तुम्हे यहाँ मेरी रात ख़राब करने की जगह कातिल को तलाशना चाहिए

मैं- उसे तो मैं तलाश लूँगा और जिस दिन ऐसा होगा मैं हर लिहाज भूल जाऊंगा.

गुस्से से दनदनाते हुए मैं कमरे से बाहर निकला . पहले चंपा के साथ सम्बन्ध और फिर ये घटना मैंने सोच लिया राय सहाब के चेहरे पर चढ़े मुखोटे को उसी पंचायत में उतारूंगा जहाँ लाली को फांसी दी गयी थी .

सुबह होते ही मैं उसी जगह पर पहुँच गया और वहां की भोगोलिक स्तिथि को समझने की कोशिश करने लगा. चारो दिशाओ में मैंने खूब छानबीन की तीन दिशाओ में मुझे कुछ नहीं मिला पर चौथी दिशा में काफी चलने के बाद मैं संकरी झाड़ियो से होते हुए उस जगह पर पहुँच गया जो मुझे हैरान कर गयी . मैं काले खंडहर के सामने खड़ा था .

Please complete the required fields.




Leave a Reply