तेरे प्यार मे …. – Adultery Story by FrankanstienTheKount

#32

गाँव से बाहर आकर मैं बहुत रोया जिन्दगी ने आज ऐसे दोराहे पर लाकर खड़ा कर दिया की समझ नहीं आया हुआ तो क्या हुआ. कुंवर कबीर का सारा गुरुर एक झटके में बिखर गया था. कुवे की मुंडेर पर बैठे बैठे मैं सोचता रहा मैंने तो किसी का भी बुरा नहीं किया आजतक फिर मेरे साथ ये क्यों हुआ. शाम को भैया आये मेरे पास.

भैया- घर चल छोटे

मैंने कुछ जवाब नहीं दिया

भैया- सुना नहीं तूने मैंने क्या कहा

मैं- मैंने यही रहने का सोचा है भाई , आपको तो पता ही है की मजदूरो की कमी है तो मैंने सोचा की मेरा यहाँ रहना ही ठीक होगा वैसे भी घर ये यहाँ आने जाने में ही काफी समय बर्बाद हो जाता है.

भैया- इतना बड़ा नहीं हुआ है तू की अपने भाई से झूठ बोल सके. तेरी हिम्मत कैसे हुई घर से बाहर कदम रखने की इंतज़ार नहीं कर सकता था तू, कैसे भूल गया तू की तेरे ऊपर तेरे भाई है और मेरे होते हुए किसकी इतनी मजाल जो तुझे घर से निकालने की हिम्मत कर सके. तू चल मेरे साथ तेरे सामने ही तेरी भाभी की खाल खींच लूँगा मैं.

मैं- ख़बरदार भैया जो भाभी के बारे में उल्टा-सीधा कुछ भी बोला तो . वो मेरी भाभी ही नहीं भाभी माँ है .

भैया- फिर कैसे उसकी नजरो में फर्क आ गया . वो इतना भी नहीं समझ पायी अपने दिल के टुकड़े को अपने ही आँचल से दूर कर दिया उस निर्मोही ने .

मैं- ये भी उनका प्यार ही है . और फिर किस घर में छोटी-मोटी बात नहीं होते रहती . उन्होंने दूर किया है जब उनका गुस्सा शांत होगा देखना खुद आ जाएगी. कोई बात ही नहीं है मैं जानता हूँ ज्यादा देर वो भी नाराज नहीं रह पाएंगी.

भैया- और मैं क्या करू फिर तुम दोनों के बीच मरना तो मेरा हो गया न . तू यहाँ पड़ा रहेगा मैं वहां कैसे रह पाउँगा तेरे बिना मेरे भाई.जिस भाई का चेहरा देखे बिना मैंने जल नहीं पिया उसके बिना मैं कैसे एक पल भी जी सकूँगा.

मैं- उंगलियों से नाख़ून कभी दूर नहीं होते भैया, कौन सा आपसे दूर हूँ मैं जब जी करेगा आपसे मिलने आ जाऊंगा.

भैया ने एक मुक्का हताशा में गाड़ी के बोनट पर मारा. मैंने देखा बोनट तिडक गया.

भैया- न जाने ये अन्याय हो गया छोटे, न जाने वो कौन सी घडी थी जिसने परिवार को बिखरने की नींव रख दी. मेरे भाई तू समझ तेरे बिना क्या ही है उस घर में . कोई नहीं, तू देखना मैं अभी तेरी भाभी को यहाँ लाता हूँ तेरे पाँव पकड़ कर माफ़ी मांगेगी वो

मैं- भैया आपने भाभी से कुछ भी कहा, उनसे जरा भी मारपीट की तो मैं आपकी कसम खाकर कहता हूँ मैं जहर खा लूँगा.

भैया- क्यों बान्धता है मुझे इस कसम की डोर में मेरे भाई. बता फिर मैं क्या करू कल को दुनिया कहेगी अभिमानु ने छोटे भाई को घर से निकाल दिया पिताजी आयेंगे तो मैं कहूँगा , कैसे बताऊंगा उन्हें की उनके पीछे से मैं परिवार को साथ लेकर चलने की जिम्मेदारी नहीं निभा पाया.

मैं- दुनिया की हमें कब से फ़िक्र होने लगी भैया, हम दुनिया के हिसाब से नहीं दुनिया हमारे हिसाब से चलती है . और फिर मेरे सर पर हमेशा मेरा भाई छत बन कर खड़ा है मुझे भला क्या तकलीफ हो सकती है .

भैया- इस शरीर को लेकर जा रहा हूँ छोटे मेरा दिल तो यही रह जायेगा .

भैया कुछ दूर चल कर रुके और मैं खुद को रोक नहीं पाया दौड़ कर लिपट गया अपने भाई से और आंसुओ के सैलाब में हम दोनों भाई बह गए. उस छोटे से लम्हे में मैंने समझा था की बड़े भाई का सर पर होना कितनी बड़ी खुस्किस्मती होती है . वो रात बड़ी मुश्किल से बीती मेरी . दो दिन मेरे बड़ी मुश्किल से बीते. खाने पीने की भी समस्या खड़ी हो गयी थी . मुझे तो कुछ बनाना आता नहीं था . तीसरे दिन चंपा खेतो पर आई.

“बड़ा खुदगर्ज है तू निर्मोही इतनी बड़ी बात हो गयी तूने मुझे भी बताना जरुरी नहीं समझा. अरे एक घर छोड़ा तूने, ये कैसे भूल गया हमारा घर भी तो तेरा ही है ” चंपा ने मुझे उलाहना दिया.

मैं- मेरे हालत ठीक नहीं है चंपा.

चम्पा- रोटी लाई हूँ खा ले पहले बातो के लिए तो दिन पड़ा है .

चंपा ने खाना परोसा .

चंपा- सुन खुद को ऐसे सजा नहीं देगा तू . घर तेरा भी है और अपने घर में आने के लिए किसी को कहा नहीं जाता है . तू भूखा नहीं रहेगा ऐसे. जब भी तेरा दिल करे या जब भी रोटियों का समय हो तू पहुँच जाना

मैं- तुम लोगो को तकलीफ होगी मेरी वजह से

चंपा- हमें तकलीफ होगी तेरे लिए . एक बार फिर कहके दिखा तेरा मुह न तोड़ दू मैं. अरे कमीने बचपन से एक थाली में खाया है हम तीनो ने और तू आज हमें ही पराया कर रहा है , निर्मोही मेरी नहीं तो कम से कम इस दोस्ती की ही लाज रख लेता तू . तेरे हिस्से की दो रोटियों का भला कौन सा बोझ पड़ेगा मुझ पर. इतना तो हक़ दे मुझे इतना हक़ तो है मेरा तुझ पर .

चंपा रो पड़ी . मैंने उसे अपने सीने से लगा लिया . दिल का बोझ थोडा कम हो गया .

मैं- भाभी कैसी है

चंपा- ठीक है अपने कमरे में ही रहती है निचे कम आती है

मैं- चाची

चंपा- चाची नाराज है तुमसे और भाभी दोनों से

मैं- थोड़े दिन में सब ठीक हो जायेगा

चंपा- पर क्या हुआ ऐसा जो भाभी ने इतना बड़ा निर्णय ले लिया

मैं- समय बलवान चंपा खैर छोड़ इन बातो को तू मंगू से कहना की दिन में तो खेतो में आ जाया करे एक दो दिन में मैं शहर जाऊंगा सब्जियों की गाडी लेकर .

चंपा- रात को खाना खाने आयेगा तो तू खुद ही कह देना. और तुझे यहाँ रहने की क्या ही जरुरत है तू हमारे पर भी तो रह सकता है न

मैं- खेतो की रखवाली का कारण भी है चंपा. ये काम भी जरुरी है

चंपा के जाने के बाद मैंने बाकि समय खेतो पर काम किया . रात को मैंने समय से ही रजाई ओढ़ ली. क्योंकि खेतो में ठण्ड बहुत जायदा लगती थी . आँख लगी ही थी की कमरे के दरवाजे पर आवाज हुई . मेरा दिल जोर जोर से धडकने लगा. मैंने पास रखी लाठी उठाई और कहा “कौन, कौन है बाहर ”

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