भाभी और मेरे बीच ख़ामोशी छाई हुई थी , पर दिल में तूफान आया हुआ था .
भाभी- जानती हूँ तुझे यकीन नहीं आयेगा पर तेरी दोस्ती के आगे भी दुनिया है कबीर.
मैं- ऐसी क्या वजह थी जिसके लिए मंगू ने परकाश को मारा
भाभी- वजह है कबीर, वजह है राय साहब है वो वजह. प्रकाश राय साहब को ब्लैकमेल कर रहा था. बाद जब हद से आगे बढ़ गयी तो राय साहब ने अपना काँटा निकाल लिया
मैं- और आपको कैसे पता चला ये .
भाभी- मैंने राय साहब और मंगू को बात करते समय सुना था .
मैं- पिताजी के टुकडो पर पलने वाले नौकर ने ही पिताजी को ब्लेकमेल किया पर क्यों
भाभी- इसकी तह तो नहीं निकाल पाई पर प्रकाश श्याद वसीयत के चौथे पन्ने के हक़ की मांग कर रहा था .
मैं- पर चौथे पन्ने में कुछ भी तो नहीं था .
भाभी- कबीर मैं कभी नहीं चाहती थी की तुम इस परिवार के अतीत को देखो पर मैं रोक नहीं पाई. आज मैं बेचैन हूँ , मैं आने वाले कल को देख रही हूँ . और उस कल को मैं देखना नहीं चाहती.
मैं- आने वाला कल खूबसूरत होगा भाभी
भाभी- राय साहब को अपना गुरुर सबसे प्यारा है वो कभी नहीं झुकेंगे
मैं- आसमान भी झुकता है , झुकाने वाला चाहिए.
भाभी- इसी बात से तो मैं डरती हूँ.
मैं- मंगू से आज ही बात करूँगा मैं
भाभी- ये ठीक समय नहीं
मैं- बात करना बेहद जरुरी है , अंजू को मालूम हुआ तो आग लग जाएगी और जलना मुझे पड़ेगा. मंगू की क्या मज़बूरी है की वो राय साहब का पालतू बन गया है ये जानना ही होगा. राय साहब के पापो में उसका भी हाथ है .
मैं- त्रिदेव की कहानी बता क्यों नहीं देती भाभी मुझे तुम
भाभी- तू अपने जीवन की नयी शुरात करने जा रहा है कबीर. मैं एक बार फिर कहूँगी इन बातो को जानने की जिद छोड़ और आगे बढ़. वो चार दीवारे जिन्हें तुम घर कहते हो, वो घर मर चूका है कबीर. उसके जनाजे के बोझ को तुम उठा नहीं पाओगे . सपना देखा है तुमने, उसे पूरा करो. अंजू आदमखोर नहीं है विश्वास करना मेरी बात पर.
भाभी के जाने के बाद भी बहुत देर तक मैं उनकी कही बाते समझने की कोशिश करता रहा . वसीयत का चौथा पन्ना जिसे मैं देख नहीं पाया था राय साहब ने जो बताया वो मैंने मान लिया था .
“तुम अकेले नहीं हो जिसने अपने राज यहाँ छिपाए है , तुमसे पहले और भी थे जिन्होंने अपनी जिन्दगी इस जंगल में जी है ”
“तेरे हिस्से का सच तेरी दहलीज में है ”
मेरा सर इतना भारी हो गया था की मैं पागल ही हो जाता अगर वहां से नहीं चलता तो. जेब में पड़ी चाबी मेरे घर का हिस्सा ही तो थी . चाचा की अमानत जिसका न जाने क्या मोल था . घर आने के बाद मैं नहाया और आंच के पास बैठ गया . अंजू से दो चार बार नजरे मिली तो सही पर बात नहीं हो पाई.
रात का अन्धकार मुझे लील ही जाने वाला था की , सामने खड़ी उसे देख कर बस देखता ही रह गया. डाकन एक बार फिर से मेरी दहलीज पर खड़ी निहार रही थी मुझे. मैंने एक नजर बाप के कमरे पर डाली एक नजर ऊपर चौबारे पर और उसकी तरफ चल दिया. उसने पीठ मोड़ी और बाहर की तरफ चली की मैंने उसका हाथ पकड़ लिया .
“अपने घर आई है तू , कब तक बचेगी ” मैंने कहा
निशा-बचना तो तुझे है मेरे सनम . ये जिन्दगी जो तू दांव पर लगाये हुए है ये मेरी अमानत है .
मैं- तो फिर अपनी अमानत को थाम ले बाँहों में , चोरी छिपे क्यों मिलना फिर ज़माने को बता दे की इश्क किया है इस डाकन ने .
निशा- बस तुझे देखना चाहती थी .
मैं- थाम ले फिर इस रात को और देख जी भर के मुझे . आ मेरे साथ इन खुशियों में शामिल हो .
निशा- तू जानता है न मुझे खुशिया रास नहीं आती
मैं- आदत डाल ले तू अब
मैंने निशा को अपनी तरफ खींचा और आगोश में भर लिया. उसकी सांसे मेरी साँसों में उलझने लगी.
निशा- क्या चाहते हो
मैं- तुमसे प्यार करना
निशा- करती तो हूँ तुमसे प्यार
मैं- जताती क्यों नहीं फिर
निशा- आ चल फिर साथ मेरे, यहाँ की हवा ठीक नहीं
मैं- चल फिर.
उसका हाथ थामे मैं उसके साथ चलते हुए खेतो पर आ गया.
निशा- मुझे मालुम हुआ की कल फिर तू भिड़ा उस आदमखोर से
मैं- हाथ लगते लगते रह गया .
निशा- कबीर, अब जब हम दोनों जिन्दगी के ऐसे मोड़ पर है,तुझे ये समझना होगा की तुझ को अगर कुछ हो गया तो फिर मेरा क्या होगा. पहले कभी मेरा हाल ऐसा ना हुआ पर कुछ दिनों से मैं डरती हूँ तुझे खोने से.
मैं- तू मेरे साथ है तो फिर क्या हो सकता है मुझे . पर मुझे तुझसे कुछ बताना है .
निशा- सुन रही हूँ
मैंने उसे तमाम बाते बताई, वसीयत के चौथे पन्ने का जिक्र भी किया . बहुत देर तक वो सोच में डूबी रही फिर बोली- चल, देखते है सुनैना की समाधी को .
मैं- इस वक्त
निशा- हाँ अभी इसी वक्त.
हम दोनों चल दिए. जंगल में अन्दर घुसते गए. और फिर एक जगह आकर निशा ने गलत राह पकड़ ली.
मैं- इधर कहा जा रही है.
निशा- सुनैना की समाधी नहीं देखनी क्या
मैं- पर वो तो उस रस्ते पर है न
निशा ने अजीब नजरो से देखा मुझे और बोली- कल के हमले के बाद शायद हिल गए हो तुम या फिर अँधेरे का असर है . आ जल्दी से .
मैं कुछ नही बोला बस उसके पीछे चलता गया . कुछ देर बाद वो एक जगह रुकी जहाँ पर बड़े पत्थरों से एक समाधी बनाई गयी थी जिसे चिना नहीं गया था . कच्चे पत्थर रखे थे एक के ऊपर एक .
निशा- तो आ गए हम
मैं- निशा ये सुनैना की समाधी नहीं है
निशा- क्या बोल रहा है तू कबीर. बंजारों की समाधी का नहीं मालूम क्या तुझे कच्ची चिनाई वो ही तो करते है . और फिर मुझे नहीं मालूम होगा क्या इस जगह के बारे में
मैं- अगर ये सुनैना की समाधी है तो फिर वो जगह क्या है .
निशा- कौन सी जगह
मैं- वसीयत के चौथे पन्ने का सच वही छिपा है निशा, हमें अभी के अभी वहां पर जाना होगा.
