रात के 2:30 बजे , जगदीश राय , नंगा होकर, थक कर सो गया था। कमरे में लाइट चालु थी । और कमरे के लाइट में जगदीश राय का लंड निशा के चूत-रस से चमक रहा था।
तभी उसे महसूस हुआ की कोई कमरे में आ चूका है। और देखा तो वहां आशा खड़ी थी।
आशा: क्यों पापा…सो गए क्या…
जगदीश राय: अरे बेटी …तुम यहाँ क्या कर रही हो…इस वक़्त।
आशा: आपकी प्रॉमिस भूल गए…
जगदीश राय: नहीं बेटी…आज तो नहीं होगा…प्लीज…जाओ सो जाओ…
आशा: यह अच्छी बात नहीं है…पापा…आप ने हमे सिखाया था की “प्रोमिस शुड बी केपट”। और आप ही मुकर रहे हो…
जगदीश राय: अरे बेटी…सॉरी…पर आज नहीं होगा कुछ…
आशा (ग़ुस्से में): मैं इतना रात तक उल्लु की तरह जागी…और आप…ह्म्मम।। मैं निशा दीदी को कल सब बता दूँगी…।
जगदीश राय: क्या? नहीं…?
आशा: हाँ… और सशा को भी…?
जगदीश राय: बिलकुल नहीं…चूप।।।…
आशा:नहीं…तो ठीक है…फिर यह लो…चाटो
यह कहकर आशा खड़े खड़े अपनी स्कर्ट ऊपर कर दी। और गांड जगदीश राय के तरफ कर दी।
गाँड , गोलदार सावली और उसमें से चिरती हुई सफ़ेद पूँछ। न चाहते हुए भी लंड पर ज़ोर आ गया। लंड दर्द करने लगा।
जगदीश राय, थका हुआ शरीर लेकर आशा की गांड की पूँछ को धीरे से उठाया। और पूँछ से छिपी सांवली मुलायम चूत नज़र आ गयी।
जगदीश राय यह उम्मीद में था की कहीं उसने आशा की चूत को चाटकर उसका पानी निकाल दिया, तो वह शायद उसे आज रात के लिए छोड दे।
वह आशा की चूत पर टूट पडा। आशा अपना गांड पीछे कर , पीछे से चूत चटवा रही थी।
आशा:मम…हाहह… पापा…जीभ अंदर तक डालो न…।।लो…मैं पैर ऊपर कर देती हूँ…।।अब लो…।।चाटो खुलकर चाटो…।।हाँ…।ऐसे ही…।और चाटो……।और ।।और…।आह…
करीब १५ मिनट तक आशा खुद को रोककर खड़ी रही और फिर खड़े खड़े ही ज़ोर से झड़ने लगी। उसका सारा शरीर ज़ोर से हिलने लगा।
जगदीश राय को लगा मानो वह ज़मीन पर गिर जाएगी। पर आशा बेड पर गिर पडी।
जगदीश राय ने राहत की सास ली…
जगदीश राय: बहुत ज़ोरो से झडी तुम बेटी…थक गयी हो सो जाओ अब…
आशा: क्या…नही…यह तो मैं दीदी की चुदाई देखकर हॉट हो गयी थी…इसलिए…अपना लंड खड़ा कीजिये…मेरे गांड में बहुत ज़ोरो की खुजली मची है…
आशा बेशरमी से अपने पापा को उनपर होने वाले ज़ुल्म का घोषणा दी।
जगदीश राय , चौकते हुए… अरे नहीं बेटी…मैं न कहा न…आज तो…
आशा ने तुरंत ज़ोरो से जगदीश राय का लंड मुठी में थाम लिया और उसे बेदरदी से पकड़कर कहने लगी
आशा: आज तो मैं इससे इत्तनी चुदवाऊंगी…सारी प्यास बुझा दूँगी…निचोड लूँगी इसे…
जगदीश राय: ओके
…बेटी…। तुम क्या निचोड़ेगी…पहले से तेरे दीदी ने निचोड लिया है इसे…।
आशा: पापा…बहुत रस बचा है इसमे…अभी दिखाती हु…
और आशा तेज़ी से लंड चूसने लगी। पूरे गले तक लेने लगी। जगदीश राय आँखे बंद किये अपने लंड के दर्द को बर्दाष्त कर रहा था। और देखेते ही देखते जगदीश राय का लंड , १० मिनट के भयंकर चूसाई के बाद ,बिलकुल रॉड की तरह खड़ा हो गया।
टट्टो में बहोत दर्द हो रहा था, पर न जाने क्यू, इस दर्द से लंड पर और प्रभाव पड़ रहा था और लंड और कड़क हो चला था। इसके बीच आशा ने गांड में से पूँछ को “फोक” की आवाज से बाहर खीच लिया।
आशा बिना चेतावनी दिए, घूम गयी और सीधे अपनी गांड के छेद में लंड घुसेड दिया। बिना तेल लगाये हुआ गाँड का छेद,में जगदीश राय का दर्दनाक लंड चीरता हुआ घूस गया।
जगदीश राय के आखों से आसूँ निकल गया, पर उसने अपनी चीख़ को रोका।
आशा को भी दर्द हुआ, पर आशा को दर्द से मजा आ रहा था।
आशा : अब दिखाती हु आपके इस लंड को…बहुत चोद रहा था दीदी की चूत को…अब इसका सामना मेरे गांड से है…
जगदीश राय: आह…धीरे बेटी धीरे…
यह कहना मुश्किल हो गया था की कौन मरद और कौन औरत।
आशा एक हाथ से अपने चूत को सहला रही थी और अपनी सूखी गांड लंड पर पटक रही थी। क़रीब चुदाई डेढ़ घन्टे तक चली। आशा 3 बार झड चुकी थी,
जगदीश राय का लंड पूरा लाल हो चूका था। और जो जगदीश राय को डर था वह होने वाला था। उसका लंड झडने के कगार पर था। और झडते वक़्त टट्टो का दर्द वह सह नहीं सकता था।
जगदीश राय: बेटी…रुक…जा…में झडने वाला हु…।मुझे…।दरद…होगा…रुक रुक…।आह…नहीं…आह…ओह।
झगीश राय , इतना ज़ोरो से चीख़ पड़ा के टट्टो-से दर्द का जैसा बम फटा हो। वह पागलो की तरह कापने लगा।। और लंड आशा की गांड के अंदर पिचकारी मारता गया। हर पिचकरी का दर्द एक चीख़ ले आता।
आशा, अपने पापा के ऊपर हंसती जा रही थी। उसे अपने पापा के इस दुर्दशा पर मजा आ रहा था।
जगदीश राय , अभी झड़ना , ख़तम कर ही रहा था की अचानक से दरवाज़ा खूल गया।
दोनो चौक पडे। झडते हुए पापा के ऑंखों के सामने रूम के उजाले में , पतली मैक्सी पहने निशा खड़ी थी।
निशा गुस्से से जगदीश राय और आशा को घूरे जा रही थी।
निशा बिना कुछ कहें १० सेकेंड तक दोनों को घूरकर, बिना कुछ कहे अपने कमरे में चली गयी।
जगदीश राय तुरंत लंड बाहर खीच लिया, लंड अभी भी वीर्य उगल रहा था।
जगदीश राय: हे भगवन…निशा सब देख चुकी है…अब खुश हो गयी…मैंने कहाँ था…निकल जा यहाँ से…
आशा , पहले डरी हुई थी पर अब वह मुस्कुरा दी।
आशा: अच्छा हुआ…दीदी ने…सब देख लिया…अब तो मैं यहाँ पूरी रात गुज़ार सकती हुँ।।क्यूं…?
जगदीश राय (धीमे आवाज में, समझाते हुए) : चुप कर…अपने कमरे में चली जा।।
आशा: अच्छा बाबा जाती हूँ…
और वह , फर्श पर से स्कर्ट उठाकर…गांड मटका के चल दी।
जगदीश राय , मन में, निशा को कल किस मुँह से देखे। इस विचार में टेंशन के साथ सोने की कोशिश करने लगा।
अगले दिन सुबह जगदीश राय, बिना किसी से कुछ कहें , जल्द ऑफिस चला गया। वह निशा को फेस नहीं करना चाहता था।
हालांकी वह जानता था की रात को उसे निशा से मुलाकात करनी पडेगी।
अगले तीन दिन तक घर पर सन्नाटा बना रहा। जो भी बात होती वह बस सशा ही करती। निशा अपने पापा से मुह तक नहीं मिला रही थी।
आशा का बरताव ऐसा था जैसे कुछ हुआ ही न हो। पर निशा और आशा भी नहीं बोल रहे थे।
चौथे दिन, जगदीश राय ने फैसला किया की जो भी हो उसे इस उलझन हो सुलझाना पडेगा, नहीं तो उसका परिवार बिखर भी सकता है।
वह सुबह जाने से पहले आशा से कहा।
जगदीश राय: आशा आज स्कूल से सीधे घर आना…एक्स्ट्रा क्लास में मत बैठना।
आशा: क्यों…।आज क्या है…
जगदीश राय (ग़ुस्से से): जो बोला है वह करो…।और ज़बान को लगाम दो…गॉट इट।
आशा, पापा के इस रूप से थोड़ी डर गयी और हामी में सर हिला दी।
