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Toggleटोना टोटका – Update 19
रुपा के ससुराल जाने के लिये रुपा व राजु दोपहर का खाना खाने के बाद ही घर से निकले थे इसलिये उन्हे रुपा की ससुराल पहुँचते पहुँचते अन्धेरा हो गया। रुपा के ससुरालमे बस रुपा का पति व सास ही थे। रुपा के ससुर का बहुत पहले ही देहान्त हो गया था, बाकी रुपा की एक बङी ननद थी जिसकी रुपा से पहले ही शादी हो गयी थी इसलिये घर मे बस अब रुपा का पति और सास ही रहते थे। रुपा व राजु जब घर पहुँचते तो उस समय रुपा की सास रात के खाने के लिये चारपाई पर बैठे बैठे सब्जी काट रही थी.. अब रुपा ने उसके पैर छुये तो..
“अब क्या लेने आई है महारानी…? गयी तो ऐसे थी जैसे कभी वापस नही आयेगी..!, रहती अब वही… मै भी तो देखती तेरी माँ कब तक बिठा के रखती है..?” रुपा की सास ने अब एक बार तो रुपा को देखते ही बकना शुरु कर दिया.. मगर उसके साथ जब उसने राजु को भी देखा तो वो चुप हो गयी, तब तक राजु ने भी सामान के थैले को वही रख दिया और हाथ जोङकर ..
“राम राम मौसी जी..!” कहते हुवे उसके पैर छु लिये जिससे….
“राम राम… जीते रहो..!” उसकी सास ने भी अब राजु के सिर पर हाथ रखते हुवे कहा और वापस सब्जी काटने मे लग गयी।
रुपा भी अब चुपचाप सामान के थैले को उठाकर कमरे मे रख दिया और….
“लाओ मै करती हुँ…!” ये कहते हुवे अपनी सास से सब्जी की थाली लेकर खाना बनाने के लिये रशोई मे घुस गयी, जब तक रुपा ने खाना बनाया तब तक रुपा का पति भी दुकान से आ गया इसलिये हल्के फुल्के मन मुटाव भरी बातो के बाद सबने खाना खा लिया, मगर रात मे अब रशोई के सारे काम निपटाकर रुपा ने राजु के लिये तो अपनी सास के कमरे मे चारपाई लगा दी और खुद सोने के लिये अपने पति के कमरे मे चली गयी। राजु सोच रहा था की उसकी जीज्जी उसे अपने साथ ही सुलायेगी और आज भी उसे अपनी जीज्जी के लेने का मौका मिलेगा, मगर उसके सारे अरमान जैसे धरे के धरे रह गये थे। अब वो कर भी क्या सकता था इसलिये मन मसोसकर चुपचाप सो गया।
इधर रुपा के पति व रुपा मे अभी भी नाराजगी तो थी, मगर अपनी माँ के कहे अनुसार रुपा ने अब खुद ही आगे से पहल की तो वो भी रुपा पर चढ गया। रुपा की चुत मे उसने अब अपने लण्ड से पाँच सात धक्के तो लगाये, फिर अपनी आदत अनुसार जब तक रुपा को मझा आने लगा वो ढेर हो गया। रुपा अब प्यासी की प्यासी ही रह गयी थी जिससे अब एक बार तो उसका दिल किया की वो किसी ना किसी बहाने राजु को बुला कर उसके कुँवारे लण्ड से अपनी चुत की आग को ठण्डा करवा ले, मगर ऐसा करना भी खतरे खाली नही था, क्योंकि अगर इस बारे मे किसी को भनक तल लग जाये बेईज्जती के साथ साथ घर से भी निकाली जायेगी,इसलिये मन ही मन वो अब कुछ सोचकर रह गयी….
अगले दिन सुबह रुपा अब जल्दी ही उठ गयी। उसका पति सुबह ही दोपहर का खाना लेकर दुकान चला जाता था, जिससे रुपा भी पशुओं के व घर की साफ सफाई से लेकर कपङे आदि धोने के सारे काम दस ग्यारह बजे तक निपटाकर खेत मे जाने के लिये तैयार हो गयी। रुपा की सास को देर से खाना खाने की आदत थी इसलिये..
“माँ जी आपका खाना रशोई मे रखा है, मै अब खेत मे जा रही हुँ…!” रुपा ने अब पहले तो अपनी सास से कहा,फिर..
” चल राजु तु भी मेरे साथ चल..तुझे भी हमारे खेत दिखा देती हुँ..!” राजु रुपा की सास के पास ही बैठा हुवा था जिससे रुपा ने अब राजु की ओर देखते हुवे कहा तो वो भी उसके साथ हो लिया जिससे रुपा उसे अब साथ मे लेकर खेत मे आ गयी।
रुपा के पति के पास पाँच खेत थे जिनके बीच ही एक पक्का कुवा था व कुवे के पास ही एक छोटा सा कमरा बना रखा था जिसमे कुवे के पम्प को चलाने के लिये बिजली के फिटीँग व बोर्ड आदि लगे हुवे थे तो साथ ही छोटा मोटा खेती का सामान भी रखा रहता था। अब खेत मे कोई काम तो था नही, फसल पकने को आ गयी थी इसलिये बस आँवारा पशुओ से फसल की रखवाली ही करनी होती थी जिसके लिये दिन मे कभी कभी रुपा खेतो मे आ जाती थी।
खेत मे आकर उसने राजु के साथ अब सभी खेतो के चारो ओर एक चक्कर सा तो लगाया फिर थोङा सा एक खेत के अन्दर घुसते हुवे… “तु कुवे पर चल तब तक मै पिशाब करके आती हुँ..!” रुपा ने अब राजु के चेहरे को ओर देखते हुवे कहा जिससे रुपा के चेहरे पर शरम हया की मुस्कान सी तैर गयी तो वही राजु का चेहरा सुर्ख सा हो गया…
रुपा को पिशाब नही लगी थी उसने बस ये बहना बनाया था क्योंकि रात मे जब से उसके पति ने उसे अधुरे मे छोङा था तब से ही उसकी चुत मे राजु के लण्ड को खाने की आग सी लगी हुई थी। अब घर मे उसकी सास के होते तो राजु के साथ वो कुछ कर नही सकती थी इसलिये फसल की रखवाली के बहाने वो राजु को खेत मे लेकर आयी थी, मगर नारी लज्जा के वश वो सीधे सीधे तो राजु से ये कह नही सकती थी इसलिये राजु के साथ पहल करने के लिये ये उसने पिशाब जाने का बहाना बनाया था।
रुपा को मालुम था की जिस तरह वहाँ गाँव मे पिछली रात राजु उसे पिशाब करते देखने के लिये टाॅर्च लेकर आ गया था, अभी भी उसके पिशाब करने की बात सुनकर वो उसे पिशाब करते देखने जरुर आयेगा इसलिये उसने ये पहल करने का बहाना बनाया था जो की एकदम सही भी ठहरा, क्योंकि अपनी जीज्जी के पिशाब जाने की बात सुनते ही राजु के पुरे बदन मे उत्तेजना की लहर सी दौङ गयी थी जिससे उसका चेहरा एकदम सुर्ख सा हो गया।
राजु भी अब रुपा के पीछे पीछे हो लिया था जिससे…
“तु कहा आ रहा है…?, मैने बोला ना तु कुवे पर चल तब तक मै पिशाब करके आती हुँ..!” रुपा ने चलते चलते ही कहा और खेत मे अन्दर घुसती रही मगर राजु कहाँ मानने वाला था, वो भी उसके पीछे पीछे ही चलता रहा जिससे रुपा अब खेत के आधे से मे एक पेङ के पास थोङी खुली सी जगह मे आकर रुक गयी और…
“अरे..! तु यहाँ क्या लेने आया है…? मैने बोला ना तु कुवे पर चल कर बैठ, मै पिशाब करके आ रही हुँ…!” रुपा ने अब राजु के चेहरे की ओर देखते हुवे कहा जिससे…
“व्.व्.वो्.. मुझे भी पिशाब करना है…!” राजु अभी भी थोङा सँकोच सा रहा था इसलिये उसने डरते डरते ही कहा।
“तो.. उधर ही कर लेता ना, बेशर्म..!यहाँ मेरे पीछे पीछे क्यो आ गया..?” रुपा ने उसके चेहरे की ओर ही देखते हुवे कहा जिससे…
राजु: व्.व्.वो्.वो्. अ्.आपको द्.देखना है..!
रुपा: रात मे तो देखा ही था अब क्या रह गया..? बहुत बेशर्म हो गया है तु…!
राजु: वो् रात मे ठीक से नही दिखा..!
रुपा: क्या नही दिखा..? चल अभी नही.. तु चल कर कुवे पर बैठ मै वही आती हुँ..!
राजु: नही वो मुझे देखना है..!
रुपा: बेशर्म..मैनै बोला ना मै वही आ रही हुँ तु कुवे पर चलकर बैठ, मै वही आ रही हुँ फिर दिखा दुँगी…!
राजु: नही अभी देखना है..!
रुपा: तु मानेगा नही ऐसे ना.. बहुत बेशर्म हो गया है तु…!, चल उधर मुँह कर, पहले मुझे मुतने तो दे…
राजु: नही.. ऐसे ही कर लो…!” राजु ने भी हठ सा करते हुवे कहा जिससे…
“बेशर्म तु मानेगा नही ना ऐसे..!” ये कहते हुवे रुपा ने अब घुमकर दुसरी ओर मुँह कर लिया और एक हाथ से अपने सुट को उठाकर पहले तो उसके किनारे को अपनी ठुडी के नीचे दबा लिया, फिर दोनो हाथो से शलवार का नाङा खोलने लग गयी…
नाङे के खुलते ही रुपा की शलवार अब थोङा ढीली हुई तो वो पीछे उसके उसके कुल्हो पर से थोङा नीचे खिसक गयी। रुपा घर से ही पुरी तैयारी करके आई थी और इसके लिये चेहरे पर क्रीम पाॅवडर से लेकर टीकी बिन्दी व होठो की लाली तक लगाकर वो उपर से तो एकदम सजी धजी हुई थी, मगर नहाने के बाद सहुलियत के लिये उसने जानबुझकर नीचे ना तो ब्रा पहनी थी और ना ही पेन्टी… इसलिये अब शलवार के पीछे से नीचे खिसकते ही राजु को उसके कुल्हो की
दरार साफ नजर आने लगी जिसे देख राजु की आँखे बङी हो गयी तो, वही राजु के सामने इस तरह पिशाब करने के बारे मे सोच सोचकर ही रुपा शरम से अब एकदम दोहरी हो गयी..
शलवार का नाङा खोलकर उसने अब एक बार तो गर्दन घुमाकर पीछे राजु की ओर देखा, फिर शरम हया से मुस्कुराकर… “बेशर्म..!” कहते हुवे उसने दोनो हाथो से शलवार के किनारो को पकङ लिया। अब मुतने के लिये नीचे बैठने से पहले वो शलवार अपनी जाँघो तक नीचे खिसका कर थोङा झुकी ही थी की, उसकी गोरी चिकनी जाँघो व माँसल कुल्हो को देख राजु को ना जाने क्या सुझी की, उसने तुरन्त आगे बढकर उसे अपनी बाँहो मे भर लिया जिससे…
“ईईश्श्श्. क्.क्या कर रह है..? बेशर्म.. छ्.छ्ओ्ङ… छोङ तो मुझे..!” कहते हुवे रुपा ने अब अपना एक हाथ पीछे ले जाकर राजु से अपने आपको छुङाने की कोशिश की तो उसकी शलवार भी अब हाथ से छुटकर नीचे उसके पैरो मे गीर गयी…
तब तक राजु उसकी नँगी जाँघो को अपनी बाँहो मे लपेटकर घुटने जमीन मे टिकाकर खङा हो गया और पीछे से उसके कुल्हो व जाँघो पर यहाँ वहाँ चुमना चाटने सा लगा जिससे रुपा अब घुमकर राजु की ओर ही मुँह करके खङी हो गयी और…
“ईईश्श्श्…य्.ये् क्या कर रहा है..? एक बार. छ्.छो्.ङ..तो सही.., चल कुवे पर चल वहाँ दे दुँगी, बेशर्म..! मुझे पिशाब तो कर लेने दे..!” ये कहते हुवे रुपा दोनो हाथो से उसके सिर को पकङकर उससे अपने आप को छुङाने कोशिश करने लगी, मगर राजु अब कहाँ मानने वाला था।
उसका सिर पहले ही रुपा की जाँघो से चिपका हुवा था, अब रुपा के घुमकर उसकी ओर मुँह करके खङी हो जाने से उसके नथुनो मे रुपा की चुत की मादक गन्ध भरती सी चली गयी जिससे वो अब और भी बावरा सा हो उठा…
रुपा की चुत राजु के लण्ड को खाने के लिये सुबह से ही लार सी टपका रही थी जिससे भीगकर उसकी चुत की गन्ध इतनी तीखी तेज व मादक हो गयी थी की रुपा के अब राजु की ओर मुँह करते ही दुर से राजु के नथुनो मे भरती चली गयी थी जिसने राजु को एकदम बावरा सा बना दिया था.. इसलिये रुपा के उसे अपनी जाँघो पर से हटाने पर राजु ने अपने हाथो को उपर ले जाकर दोनो हाथो से उसके नँगे कुल्हो को पकङ लिया और उसकी चुत की गन्ध का पीछा करते हुवे एकदम किसी बच्चे की तरह मुँह सा मारकर सीधे ही अपने होठो को उसकी चुत के होठो से जोङ दिया जिससे रुपा भी अब सिसक सी उठी और…
“ईईईश्श्श्…ये क्या कर रहा है..? बोला ना तुझे कुवे पर चल वहाँ दे दुँगी..! पहले मुझे पिशाब तो कर लेने दे, बेशर्म..!” रुपा ने अब सिसकते हुवे से कहा, मगर राजु कहाँ मानने वाला… उसकी चुत व जाँघो के पास लगे उसके चुतरश को वो चुशने सा लगा जिससे रुपा की टाँगे भी कँपकँपा सा गयी…
वैसे तो वो घर से राजु से चुदाने के लिये ही उसे खेत मे लेकर आई थी, और इसके लिये ही उसने पिशाब करके आने के बहाने बस पहल करनी चाही थी, मगर उसे क्या मालुम था की राजु अब यही खेत मे ही उसकी लेने के लिये पीछे पङ जायेगा इसलिये…
“ईईश्श्श्..ओ्ह्य्..क्.क्या कर रहा है.. एक बार मुझे पिशाब तो कर लेने दे… फिर कर लेना बेउसकी..!” रुपा ने अब सिसकते हुवे से कहा और दोनो हाथो से उसके सिर को अपनी चुत पर से हटाकर पीछ हटने की कोशिश करने की, मगर राजु ने पीछे से उसके कुल्हो को इतनी जोरो से पकङ रखा था की रुपा उसे हिला भी नही पा रही थी इसलिये…
“ईईईश्श्श्.. क्या कर रहा है.! एक बार छोङ तो सही… पहले मुझे पिशाब तो कर लेने दे बेशर्म..!” उसने अब फिर से कहा, मगर राजु तो जैसे उसकी सुन ही नही रहा था…
वो वैसे ही उसकी चुत को चुमे चाटे जा रहा था। वैसे भी राजु अपने घुटनो के बल होकर नीचे से उसकी चुत को चुश रहा था जिससे रुपा के सुट से उसका मुँह ढका हुवा था। रुपा ने अब एक हाथ से अपने सुट को उपर उठाया तो उसकी नजरे राजु की नजरो से मिल गयी। राजु जिस तरह नीचे घुटनो के बल बैठकर उसकी चुत को चुश रहा था उससे रुपा को उससे नजरे मिलाने मे अब शरम तो आई, क्योंकि उसके व राजु के बीच जो कुछ भी हुवा था वो रात के अन्धेरे मे हुवा था इसलिये उन्हे ये सब करते समय एक दुसरे की ओर देखने का मौका ही नही मिला था।
अब दिन के उजाले मे व ऐसे खुले खेत मे उसके साथ ऐसा कुछ करने के बारे मे ही सोचकर ही रुपा को शरम सी महसूस हो रही थी, उपर से राजु जिस तरह से उसकी चुत को चुश चाट रहा था उससे रुपा को उसकी ओर देखने मे भी शरम सी आ रही थी, मगर फिर भी…
“ओ्य्..! ये क्या कर रहा है..? छ् छोङ.. छोङ मुझे पिशाब करने दे, नही तो तेरे उपर ही कर दुँगी बेशर्म..!” रुपा ने अब शरम हया से मुस्कुराते हुवे कहा जिससे..
“कर दो..!” ये कहने के लिये राजु ने अब एक बार तो अपने मुँह को उसकी चुत पर से हटाया और फिर वापस अपने होठो को उसकी चुत की फाँको से जोङ दिया..
रुपा ने भी अपने सुट को अब उपर अपने पेट के पास ही पकङकर रख लिया और…
रुपा: छोङ तो सही एक बार..!
उसने अब फिर से कहा, मगर राजु ने कोई जवाब नही दिया इसलिये…
रुपा: छोङ दे.. नही तो मै सच मे तेरे उपर मूत दुँगी..!”
राजु: मूत दो..!
रुपा: मै बोल रही हुँ मै सच मे कर दुँगी..!
रुपा ने अब धमकी सी देते हुवे कहा जिससे..
राजु: मूत दो..!
राजु ने भी अब हठ सा करते हुवे कहा जिससे रुपा ने भी अब पहले तो अपने पेट को थोङा अन्दर सा अन्दर खीँचा, फिर नीचे अपने पेशाब की थैली से चुत की मांसपेशियों पर जोर सा लगाया तो उसकी चुत की फाँके थोङा फैल सा गयी, अब कुछ तो राजु उसकी उसकी चुत को चुश सा रहा था और कुछ रुपा ने जोर लगाया जिससे उसकी चुत की फाँको के बीच से पिशाब की छोटी सी पिचकारी निकलकर सीधे राजु के नाक से जा टकराई…
राजु को ये कतैयी अन्दाजा नही था की उसकी जीज्जी सही मे उस पर मूत देगी। वो बस अपनी ही धुन मे उसकी चुत को चुशे चाटे जा रहा था इसलिये गर्म गर्म पिशाब के उसके चेहरे पर गीरते ही वो एकदम हङबङा सा गया और अपनी गर्दन को इधर उधर हिलाकर तुरन्त रुपा की जाँघो के बीच से अपना सिर को निकाल लिया जिससे रुपा अब को जोरो की हँशी आ गयी और…
“अब बोल ऐसे नही मानेगा ना तु..!” रुपा ने अब हँशते हुवे ही कहा जिससे राजु ने एक बार तो उपर रुपा के चेहरे की ओर देखा फिर वापस उसने रुपा की जाँघो के बीच अपना सिर घुसाकर उसकी चुत के होठो से अपने होठो को जोङ दिया जिससे रुपा ने भी अपनी चुत से पिशाब की छोटी सी पिचकारी उसके मुँह पर और छोङ दी मगर इस बार राजु ने अपना मुँह उसकी चुत पर से हटाया नही, पिशाब के साथही वो उसकी चुत को चुशते रहा..
रुपा को पिशाब तो लगी नही थी उसने पिशाब करने का बस बहाना बनाया था इसलिये उसने अब अपनी चुत से पिशाब की तीन चार छोटी छोटी पिचकारिया सी तो राजु के मुँह पर छोङी फिर उसके पिशाब की थैली खाली हो गयी। राजु ने भी जितना पिशाब उसके मु्ह मे आया उसने उसे अपने मुँह मे भर लिया और बाकी का पिशाब उसके चेहरे को भीगोकर नीचे उसकी कमीज पर गीर गया। जो थोङा बहुत पिशाब रुपा की जाँघो व चुत की फाँको पर लगा था उसे भी राजु ने अपनी जुबान से चाट मारा था जिससे..
“हट्… छीईईई.. गन्दे ये क्या कर रहा है..!” कहते हुवे रुपा ने अब राजु को उसके सिर के बालो से पकङकर उपर की ओर खीँच लिया। अब बालो के खीँचने से राजु को दर्द हुवा तो वो भी खीँचता हुवा उठकर खङा हो गया। रुपा की चुत को चाटने से राजु का पुरा चेहरा तर बत्तर हो रखा था। उसके नाक मुँह व गालो पर रुपा के पिशाब व चुत रश एकदम भीगे हुवे थे जिसे देख..
रुपा: छीईः…गन्दे…! ये क्या कर रहा है..?
रुपा ने अब उसकी ओर देखकर हँशते हुवे कहा जिससे…
राजु: गन्दा नही जीज्जी… बहुत अच्छा है..!
रुपा: हट्.. गन्दे…! कोई पिशाब को भी पीता है क्या बेशर्म…?
राजु: पिशाब नही जीज्जी…! मेरा तो जी कर रहा है इसे पुरी ही खा जाऊ..?
रुपा: अच्छा..! खा जायेगा तो फिर इसका क्या करेगा…?
रुपा ने अब एक बार तो मुस्कुराकर राजु की पेन्ट मे बने उसके लण्ड के उभार की ओर इशारा करते हुवे कहा, मगर फिर वो कुछ सोच मे सा पङ गयी, क्योंकि रुपा के पति ने उसकी चुत को कभी मुँह तक नही लगाया था और राजु उसके पिशाब तक को पी गया था। उसकी अपनी चुत के प्रति ये दिवानगी देखकर कुछ देर तो रुपा कुछ सोचती सी रही, फिर ना जाने उसके दिल मे क्या आया की शरम हया से उसका चेहरा एकदम लाल हो गया जिससे वो मन ही मन मुस्कुरा सी उठी।
शरम हया से मुस्कुराते हुवे उसने अब एक बार तो राजु की ओर देखा फिर पैरो को घुटनो से मोङकर वो अपनी जाँघो को फैलाकर खङी हो गयी और…
“ले तो..! खा ले फिर…!” उसने अब एक हाथ से राजु के सिर को नीचे अपनी चुत की ओर झुकाते हुवे कहा। राजु भी तुरन्त एक बार फिर से नीचे अपने घुटनो के बल बैठ गया और दोनो हाथो से अपनी जीज्जी के नँगे कुल्हो को थामकर जितना उसका मुँह खुला उसने रुपा की चुत को उतना अपने मुँह मे भर लिया जिससे रुपा भी अब… “ईईईश्श्श्.. आ्.ह्ह्.ओ्.य्.य्…!” कहकर सुबक सी उठी और उसने दोनो हाथो से राजु के सिर को पकङकर कसकर उसके मुँह को अपनी चुत पर दबा लिया।
राजु भी अब अपनी पुरी जीभ निकालकर उसकी चुत को जोरो से चुशने चाटने लगा जिससे रुपा के मुँह से भी सिसकारिया सी फुटना शुरु हो गयी, तो वही उसकी कमर भी हल्के हल्के राजु की जुबान के साथ मचलने सा लग गयी और दोनो हाथो से राजु के सिर को पकङकर…
ईईश्श्.. आ्ह..
ईईईश्श्श्… आ्आ्ह्ह्…
ईईईईश्श्श्श्… आ्आ्आ्ह्ह्ह्… की सिसकारियाँ सी भरते हुवे वो अब खुद भी राजु के मुँह व नाक से अपनी चुत को घीसने लगी।
वो अब कुछ देर तो ऐसे ही राजु से अपनी चुत चटवाती रही, मगर धीरे धीरे जब उसकी उत्तेजना का ज्वार चढने लगा तो उसने अपने पैरो मे फँसी शलवार से एक पैर निकालकर टाँग को राजु के कन्धे पर चढा दिया और दोनो हाथो से उसके सिर को पकङकर खङी हो गयी। राजु के कन्धे पर पैर रख लेने से रुपा की जाँघे अब और भी चौङी हो गयी जिससे राजु की जुबान अब अन्दर तक जाकर उसकी चुत की मालिस करने लगी, तो वही उत्तेजना के वश रुपा भी उसकी जुबान की हरकत के साथ साथ अब कुकने सा लग गयी…
राजु की जुबान के साथ साथ रुपा अब खुद भी राजु के सिर को पकङकर उसके मुँह व नाक से एकदम कस कसकर व जल्दी जल्दी अपनी चुत को घीसने लगी थी जिसका परिणाम अब ये निकला की कुछ ही देर बाद रुपा का बदन ऐँठ सा गया। उसके गर्भ की गहराई मे उत्तेजना का एक विस्फोट सा हुव जिससे उसने राजु के सिर को पकङकर उसके मुँह को कस कर अपनी चुत पर दबा लिया और…
“ईईईश्श्श्… र्.रा्आ्.जुऊ्ऊ्….आ्ह्ह्..
ईईश्श्.. आ्ह..
ईईईश्श्श्… आ्आ्ह्ह्…
ईईईईश्श्श्श्… आ्आ्आ्ह्ह्ह्…” की हिचकीया सी लेते हुवे अपनी चुत से रह रह कर राजु के मुँह पर कामरश की पिचकारीया से छोङनी शुरु कर दी। उसके रशखलन का खुमार इतना उग्र था की काफी देर तक उसकी कमर झटके से खाती खाती रही और उसकी चुत राजु के मुँह पर कामरश की पिचकारीयाँ सी छोङती रही जिसे राजु भी अब पुरा गटकता चला गया…
अपनी चुत का सारा ज्वार राजु के मुँह पर उगलकर रुपा एकदम निढाल सी हो गयी थी, अगर राजु ने उसे थामे नही रखा होता तो शायद वो राजु पर ही गीर जाती। अब कुछ देर तो वो ऐसे ही राजु पर अपना भार लादे रही, मगर
जब वो थोङा होश मे सा आई तो उसे खुद पर ही जोरो की शरम सी आई, क्योंकि इस तरह जुबान से वो कभी भी रशखलित नही हुई थी। उत्तेजना व आनन्द के वश वो अभी भी हाँफ सी रही थी मगर फिर भी लङखङाते हुवे राजु के कन्धे पर से अपनी टाँग उतारकर खङी हो गयी और..
बेशर्म..! यही करने आया था क्या यहाँ मेरे पीछे…?” राजु की ओर देखकर रुपा ने शरम हया से मुस्कुराते हुवे कहा जिससे राजु भी उसकी ओर देखकर हँशने लगा..
