जिम्मेदारी (कुछ नयी कुछ पुरानी) – Incest Story | Update 57

जिम्मेदारी (कुछ नयी कुछ पुरानी) – Incest Story Written by ‘Chutiyadr’

अध्याय 57

केशरगड़ की खबर जंगल में आग की तरह फैली और कुछ ही घंटे में पुरातत्व के बड़े अधिकारियो का जमावड़ा वहां हो गया,अजय की तरफ से वहां के कुछ बंदों ने सिफारिश भी करदी,और अजय के ब्लड का सेम्पल भी लिया गया,ये भी एक न्यूज़ बन गई की अजय ठाकुर नाम के शख्स ने केसरगढ़ के राजपरिवार का होने का दावा किया,डीएनए टेस्ट के बाद असलियत का खुलासा होगा,,लेकिन उस शख्स का चहरा वहां मिले मूर्ति से हूबहू मिलती है,

बंसल को भी समझ आ चुका था कि उसने देरी कर दी है और अब कुछ भी कर पाना मुश्किल है,अजय को उसका नाम तो मिल ही जाएगा,बस उसे अब राजनीति में उसे आगे बढ़ने से रोकना था,और साथ ही अपने को ज्यादा मज़बूत करना था,

इधर अभिषेक से मिस्टर x (पुनिया ) ने संबंध ही काट लिया क्योकि उसे पता चल गया था की उसे पकड़ लिया गया है,उसे इस बात का भी पता चल गया था की अजय राजनीति में आना चाहता था,उसने बंसल से बात करने की ठानी…

वो अपने दोस्त जग्गू जो की एक तांत्रिक था,के पास बैठा अपने मन की बात कर रहा था,

“तुम्हे क्या लगता है बंसल से बात करना ठीक होगा,”

“तू चुतिया है ,बंसल तो तुझे ही अजय के सामने पेश कर देगा की तू ही उसके मा बाप का कातिल है ,और भूल मत वो राजनीतिज्ञ है कोई चुतिया नही जो तेरी मदद करेगा,अजय के लिये तुझसे बड़ा गिफ्ट क्या होगा,और बंसल बदले में उसे अपने पार्टी में मिला ले तो क्या अजय मना कर पायेगा,नही …….बंसल को इतनी समझ तो होगी ना ..”

“हा यार जग्गू तू ठीक कहता है,लेकिन अब क्या एक मोहरा इतने दिनों की मेहनत से जुटाया था वो भी गया,”

“कुछ तो जल्दी करना होगा,मेरा भी लंड अब सब्र नही कर रहा जबसे इन कमसिन हसीनाओं को देखा है”

पुनिया का तो माथा ठनक जाता हैं,

“साले तुझे बस चुद दिखाई दे रहा है,इतने सालो का बदला भूल गया तू “

जग्गू ने अपने पीले और बेहद ही बेकार दांत निकले और हँसने लगा

“भाई सालो हो गए है ना ,तू क्या समझे गा,मेरे गुरु तो हाथ से भी हिलाने नही देते थे,बस जब कोई लड़की की बलि दो तब ही उसे कर सकते हो,जल्दी दिला यार …”

पुनिया गहरे सोच में पड़ गया था,की आखिर किया क्या जाय ,की अचानक उसे एक आईडिया आया ,

“क्योना तिवारियो के हवेली में सेंध डाली जाय ?????”

“कैसे “

पुनिया ने चहरे पर एक कातिल मुस्कान आ गई ….

इधर तिवारियो की हवेली में ,

राकेश महेंद्र का बेटा अपने कमरे में मोबाइल पर कुछ देख रहा था की उसके कमरे का दरवाजा हल्के से खुला ,उसने नजर उठाकर देखा तो सामने आरती(वीरेंद्र रामचंद्र के सबसे छोटे बेटे की पत्नी ) खड़ी थी ,उसके हाथ में दूध का ग्लास था,वो सफेद साड़ी में भी किसी अप्सरा से कम नही लग रही थी,उसकी उबलती हुई प्यासी जवानी मर्द के स्पर्श को लगभग भूल सी गई थी,उसके स्तन मलवाले से उसके तने हुए ब्लाउज़ को फाड़ने को तैयार थे,उनके बीच की घाटी की गहराई भी उसके चमकदार और मांसल स्तनों का आभास दे रहे थे,उसे देखकर ही राकेश के चहरे पर एक मुस्कान आ गई ,

वो कमरे के अंदर आयी और अपने पीछे ही कमरे का दरवाजा बन्द कर दिया,सफेद साड़ी जो की इतनी पतली थी की उसके उजोरो की घाटी साफ दिख रही थी,उसके बड़े नितम्भ और पतले कमर की वो लचक ,किसी काम की देवी सी वो लचकते हुए राकेश के पास पहुची और उसके बिस्तर पर बैठ गई ,

“तुम्हारे लिए दूध लायी हु “

उसके हर शब्द से वासना की महक आ रही थी,

“आप तो जानती हो चाची की मुझे दूध कैसे पीना पसंद है,”

राकेश का लिंग उसके पतले निकर को फाड़ रहा था,आरती की नजर उसके अकड़े लिंग में गयी और उसके योनि से भी कुछ रस काम का टपक पड़ा,वो एक खुजली के अहसास से मचल गई,

“पहले ग्लास से तो पी लो ,साथ ही शिलाजीत भी लायी हु “

वो दो गोलिया शिलाजीत की दूध में मिला देती है जो की आसानी से घुल जाता है,राकेश उस दूध को पकड़ता है वो केशर की महक से महक रहा था,राकेश के चहरे पर एक मुस्कान आ गई ,और वो जल्दी से उसे पी गया ,आरती उसके पास आई उसकी सांसे तेज थी ,राकेश की भी सांसे कुछ तेज हो रही थी,

राकेस ने अपने हाथ उसके कमर पर लगाया और वो मचल गई

“आह बेटा “

राकेश फिर से मुस्कुराया और उसे फिर से अपने पास खिंचा उसका जिस्म किसी गर्मी से पसीना छोड़ रहा था ,जिससे आरती एक शरीर गिला हो गया था,उसके नरम त्वचा के अहसास से राकेश के जिस्म पर भी एक झुंझुरी सी दौड़ गई ,

पसीने के गीले पतले साड़ी के कारण जिस्म का कटाव उभर कर आ रहा था,आरती की खुसबू से राकेश के अंगों में अकड़ान बढ़ रही थी,

वासना की आग उम्र और रिस्तो के बंधन को नही मानती वो हर दीवार तोड़ कर उस आग को शांत करना चाहती थी,एक विधवा औरत अपने बच्चे की उम्र के लड़के के साथ आज सबकुछ करने को तैयार थी,शायद ये उनका पहले बार भी नही था,लेकिन आरती करती भी क्या,उसकी शादी नई नई थी की बेचारी का पति पारिवारिक झगड़े के कारण मारा गया,एक अच्छे घर की लड़की जो एक जमीदार खानदान की बहु थी,पढ़ी लिखी थी,समाज के सामने शालीन थी,मर्यादित थी,लेकिन जिस्म की आग जो उसके पति ने उसे लगाई थी लेकिन उम्र के उस दौर में जब ये आग सबसे ज्यादा होती है उसके पति की मौत हो गई,आरती की ये मजबूरी थी की वो अपने को किसी ऐसे के हाथो में सौपे जो की उसकी इज्जत के ना उछाले ,राकेश जब जवान हुआ तब से ही आरती ने उसे सम्हाल लिया,राकेश सबसे ज्यादा प्यार अब आरती को ही करता था,वो उसके लिए पहले मा थी ,बाद में उसकी सबसे अच्छी दोस्त और उसके बाद उसकी गर्लफ्रैंड बन गई,आज भी राकेश के दिल में उसके लिए बहुत प्यार और सम्मान था,लेकिन शायद राकेश को भी उसकी मजबूरी समझ आती थी और वो उससे जिस्म का रिश्ता निभाने में संकोच नही करता ……..

आरती आज बड़े दिनों के बाद फिर से राकेश के साथ थी,आज वो अपनी सभी जलन मिटाना चाहती थी,वो राकेश के होठो के पास आकर उसके आंखों में झांकती है,राकेश की आंखे उससे टकराती और वो अपने होठो को आरती के होठो में मिला देता है,

दोनो एक दूजे के जिस्म से खेलने लगते है और राकेश उसके पल्लू को सरकाकर उसके बड़े बड़े आमो के रस को पीने की कोशिस उनके ब्लाउज़ के ऊपर से ही करने लगता है….

उसकी जीभ का स्पर्श पाकर आरती की आहे निकलने लगती है,

“आह बेटा थोड़ा आराम से ,नही दांत मत गड़ा ना “

“आज तो पूरे मन की करूँगा चाची आप को नही छोडूंगा,इतने दिनों के बाद मिली हो “

राकेश उतेजित था और उसके दन्तो के निशान आरती के उजोरो पर पड़ रहे थे वो उसके बालो को अपने हाथो से कसकर पकड़े हुए थी ,राकेश अपने दांतो को गड़ाता और थूक से उसके ब्लाउज़ को भिगोने लगा,आरती को मजबूरन ब्लाउज़ के बटन खोलने पड़े ,अंदर अंतःवस्तो की कमी के कारण उसके उजाले स्तनों की चोटी के दर्शन राकेश को आसानी से हो गए,और वो अपनी आदत के अनुसार अपने दन्तो और लार से उसे भिगोने लगा,उसके निप्पलों को अपने मुह से भरकर वो उसे पूरी तकत से चूसने लगा,आरती के लिये सहन से बाहर हो रहा था,उसका शरीर मादकता से भरा हुआ था और किसी मर्द के ना छूने के कारण वो जलते तवे सा हो गया था,थोड़े से पानी के छीटे भी धुवा उठा देते थे,

राकेश का इतना सा खेल ही उसे झड़ने को काफी था,वो पागलो की तरह मतवाली से झूमि और एक धार उसके पेंटी को भिगो दी ,राकेश उसकी हालत पर मुस्कुराया ,और आरती उसे झूठे गुस्से से देखने लगी,

“शैतान कही का “और उसके गालो को पकड़ कर उसके होठो को अपने होठो से भिगोने लगी…

माहौल की गर्मी बढ़ रही थी,और दोनो की उत्तेजना भी,और राकेश से और नही सहा गया वो अपनी प्यारी चाची को बिस्तर में लिटा कर सीधे उसके साड़ी को पकड़कर उठाने लगा,एक ही झटके में उसे कमर से ऊपर खिंच दिया राकेश का हाथ पेंटी पर गया ही था,

“अरे इतनी क्या उतावली है मैं उतार देती हु,’

लेकिन खड़ा लिंग किसकी सुनता है,वो उसे उतारा जैसे की वो इसे फाड़ ही देगा,आरती को उसके उतावले स्वभाव को देखकर हँसी भी आ गई,लेकिन उसकी हँसी ज्यादा समय तक नही रही ,क्योकि राकेश ने सीधे ही उसके योनि में अपना लिंग धसा दिया,वो बेचारी एक आह भरकर रह गई,और अपने बांहो के घेरे से राकेश को घेर लिया,वो उसे अपनी पूरी ताकत से धक्के लगाए जा रहा था……..

कमरे में छप छप छप की आवाजे आ रही थी ,आरती ने पहले ही अपना पानी निकल दिया था और वो फिर से उतेजित हो चुकी थी,और राकेश का लिंग पूरी तरह से भीगा हुआ अंदर बाहर हो रहा था,कमर चलता रहा आहे निकलती रही ,और दिल धड़कते रहे ,और वो लावा राकेश के अंदर से निकल कर सीधा आरती के अंदर समा गया….

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