अध्याय 40
सभी अंदर गए काव्या सभी को देख कर खड़े हो गई, विजय की आंखें जैसे ही काव्य के ऊपर गई उसके होठों पर एक मुस्कुराहट आ गई, दोनों की नजरें मिली लेकिन काव्या बहुत डरी हुई थी, ठाकुरों और तिवारियो की लड़ाई के बारे में उसे पता था जिसके कारण वह घबराई हुई थी घबराती भी कैसे नहीं इस इलाके में उनके जितना दमदार ताकतवर दूसरा कोई नहीं था काव्या ने ऐसे तो ठाकुरों का रुतबा भी देखा था, काव्या को देखते ही सभी लोगों ने उसे नमस्ते किया काव्या घबराई हुई अपनी जगह से उठकर आगे को आ गई, दोनों परिवारों के सदस्यों को एक साथ देख कर काव्य को ऐसे तो कुछ समझ नहीं आया इस पर विजय ने हल्की सी हंसी के साथ आंखों ही आंखों में उसे समझाया,
“ अरे मैडम आप खड़ी क्यों हो गई बैठीये बैठिए”
महेंद्र ने तत्परता से कहा,
“ हम अपने बच्चों का एडमिशन कराने लाए हैं अब इनका भविष्य आपके हाथों में मैंने आपके बारे में बहुत सुना है आप बहुत ही स्ट्रिक्ट और मेहनती शिक्षक हैं ऐसा मुझे बताया गया है, आशा करता हूं कि आप हमें निराश नहीं करेंगे,”
काव्य जैसे-तैसे अपने को संभाल रही थी, विजय ने आगे बढ़कर सब का परिचय दिया और काव्य से निधि सुमन और धनुष का परिचय कराया, एडमिशन की सारी फॉर्मेलिटी पूरी होने के बाद सभी वहां से वापस चले गए बाहर जाकर सभी फिर से एक बार इमोशनल से हो गए,
“ मामाजी अभी आप हमारे घर आइए साथ में नानाजी को भी लाइए हम बच्चे आपका प्यार पाने के लिए तरस रहे हैं,”
अजय ने फिर भरी हुई आंखों से कहां,
मैंने अजय के कंधों को कसकर पकड़ा और अपने गले से लगा लिया,
“ बेटा बात तो तुम्हारी ठीक है लेकिन बाली इस बात से कभी सहमत नहीं होगा मैं उसे जानता हूं वह अपने भाई के लिए जान छिड़कने वाला था शायद वह हमें कभी माफ न करें, वह कभी यह मानने को तैयार नहीं होगा उसके भाई का कत्ल हमने नहीं करवाया है,”
“ मामा जी मैं चाचा को समझाऊंगा वह मेरी बात समझ जाएंगे मैं चाहता हूं कि हम दोनों परिवार साथ साथ रहें हम परिवार हैं और हमें परिवार की तरह रहना है,”
सभी ने इस बात पर हामी भरी और अजय को यह समझ आ गया था कि अगर बाली को कोई समझा सकता है तो वह सिर्फ और सिर्फ डॉक्टर ही है,
सभी ने एक दूसरे से विदा मांगा और वहां से चले गए लेकिन दो आंखें यह सब देख रही थी शायद अनजान सी वह दो आंखें किसी के आकर्षण में आए बिना ही सभी के हाव-भाव को पढ़ रही थी, वह शक्स इनका प्यार देखकर अंदर ही अंदर जल गया उसकी आंखें लाल सुर्ख लाल हो गई थी बदन तपने लगा, जैसे कुछ अनचाहा सा हो गया हो,
“ दोनों परिवार मिलकर ऐसा नहीं हो सकता मेरे जीते जी ऐसा बिल्कुल नहीं हो सकता मैं नहीं मिलने नहीं दूंगा मैं कभी एक नहीं होने दूंगा, इन्हें इनके कर्मों की सजा मिलेगी मैं उनके परिवार की एक एक शख्स को तड़पा तड़पा के मारूंगा जैसे मैंने वीर को मारा और उसकी पत्नी को मारा, आज सभी अनजान है कि मैं कौन हूं लेकिन एक दिन आएगा जब यह लोग अपने किए हुए कामों पर पछताएंगे बाली महेंद्र कलवा बजरंगी तुम सभी पछताओगे मैं किसी को नहीं छोडूंगा, तुम्हारे घर की हर एक लड़की को नंगा करके रहूंगा और हर लड़के को जान से मार दूंगा जैसा तुमने मेरे साथ किया वैसा ही मैं तुम्हारे साथ करूंगा, आज मैं तुम्हारे घर में घुस गया हूं कल मैं तुम्हारे दिमाग में घुसूंगा, तिल तिल कर तड़पऊंगा, देखता हूं कब तक बचोगे, यह अजय यह विजय यह नितिन कब तक बचाएगा तुम्हे देखता हूं *तुम खुद ही लड़ोगे खुद ही मरोगे और मैं तमाशा देखूंगा,”
एक शैतानी सी हंसी पूरे माहौल में गूंज गई……
