अध्याय 22
इधर सभी लोग जंगल में पहुच जाते है ,वो पहाड़ी इलाका है जिसमे घने तो नहीं पर मध्यम और आबादी वाले जंगल है ,कही कही कुछ बस्तिया मिल जाती है पर जादा आबादी नहीं है ,निधि बार बार गाड़ी से झाककर बाहर की ओर देख रही थी ,बाहर का मौसम और नजारा बहुत ही सुहाना था,छोटे छोटे पहाड़ जो की निधि ने अपने घर से देखे थे ,लेकिन कभी उसे इनके पास जाने का मौका ही नहीं मिला गाड़ी पहसो को कटते हुए बने सडक पर चल रही थी ,ये अटल बिहारी की प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना का परिणाम था की देश के सुदूर इलाको में भी पक्की सड़के बन गयी है ,ऐसे यहाँ आवाजाही कम ही होती है पर जरुरत तो है ,ये जगह नक्साली और खतरनाक जंगली जानवरों के प्रकोप से बची हुई थी ,इसलिए यहाँ घुमना भी बहुत अच्छा सौदा था,उनके घर से कुछ 5-6 किलोमीटर दूर ही एक पहाड़ो में चदते हुए वो एक पहाड़ी के पास रुके ,जो लोग ऐसे इलाको में जा चुके है उन्हें ये पता होगा की सडको के किनारे पर से निचे की खाई को देखना कितना अद्बुत नजारा होता है, पहाड़ी तक बस गाड़ी जाती थी आगे उन्हें खुद ही चढ़ाई करनी थी बार बार चलने और दुपहिया वाहनों की आवाजाही के कारन एक पगडण्डी सी पेड़ो के बीच से बनी थी ,बाली ने सभी को पहाड़ी के ऊपर बने एक मंदिरनुमा जगह को दिखाया ,
“वो देखो वहा मिलेगा कलवा “सभी के चहरे पर एक ख़ुशी के भाव तैर गए,
“लेकिन चाचू वहा तक जायेंगे कैसे ,वो तो बहुत ऊपर दिख रहा है ,”निधि ने स्वाभाविक सा प्रश्न दागा,क्योकि वो कभी इस इलाके में नहीं आई थी उसका ये प्रश्न स्वाभाविक था
“अरे रास्ता है ना ,सीढि नहीं है पर चढ़ जाओगे फिकर मत करो ,जादा दूर नहीं है ,”सभी वहा चड़ने लगे पास में ही एक मनमोहक सा झरना था जिसके कलकल की आवाजे सभी के कानो तक पहुच रही थी ,निधि ने ये झरना देखने की जिद की पर अजय ने उसे मना लिया पहले चाचा से मिलकर आते है ,
जैसे तैसे सभी ऊपर पहुचे डॉ और लडकियों की हालत ही ख़राब हो चुकी थी ,बाली और अजय तो मेहनत करके ही बड़े हुए थे और उनका रहना बसना भी इसी इलाके में हुआ था ,उनके लिए तो ये बच्चो का खेल था ,पर बाकियों की सांसे फुल गयी थी ,वो थककर चूर हो जाते,और आराम करने बैठ जाते ,कोई सीढि नहीं होने के कारन उनके लिए ये और भी मुस्किल हो रहा था ,
लेकिन वहा पहुचने के बाद प्रकृति का नजारा और वहा बहती ताज़ी और ठंडी हवा ने सबकी थकान मिटा दि ,एक छोटा सा मंदिरनुमा ईमारत थी ,वो एक आश्रम की तरह लग रहा था ,कुछ स्थानीय गाव वाले भी वहा दिखाई दे रहे थे ये वही लोग होंगे जिनकी गाड़िया निचे खड़ी थी ,वो वह प्रवेश किये देखा की वहा एक साधू जैसा दिखने वाला शख्स बैठा है और उसके आसपास कुछ लोगो की भीड़ लगी हुई है ,बाली आगे बढकर उसे प्रणाम करता है जिसका अनुसरण सभी लोग करते है ,सभी वैसे ही वह बैठ जाते है जैसे की बाकि सभी बैठे थे ,वहा कोई मूर्ति नहीं थी बस ये साधू ही थे ,बढ़ी हुई दाढ़ी विशाल सीना जिसमे बालो का जंगल था ,बड़े बड़े बाल जो फैले हुए थे माथे पर चन्दन का टिका और बस एक धोती पहने हुए ,चहरे का तेज ही उनकी सिद्दी का बयान कर रहा था,आँखे अधमुंदी सी थी मानो गहरे ध्यान की अवस्था में बैठे हो ,तेज ऐसा था की वहा पहुचने पर ही सभी के मन में शांति के भाव आ गए ,वो वहा बैठे ही थे की एक वक्ती आकर बाली के सामने हाथ जोड़कर उसे प्रणाम करता है बाली उसे देखकर मुस्कुराता है पर किसी में कोई बात नहीं होती बाली सबको इशारा कर वही बैठने को कहता है और उसके साथ बहार आ जाता है,
“नमस्कार ठाकुर साहब बड़े दिनों बाद पधारे आप ”
“हा यार कलवा से मिलने आये है सभी कहा है वो ”
“अरे वो तो पता नहीं धयान में बैठा होगा कही पर आप यहाँ महाराज के पास बैठिये मैं लड़के भेज देता हु उसे बुलाने के लिए “वो उस आश्रम का एक सेवक था जैसे कलवा भी वहा एक सेवक की तरह ही रहता था ,बाली फिर जाकर अपने स्थान में बैठ गया ,अजय और डॉ की आँखे बंद हो चुकी थी इतनी शांति इतना गहरा अनुभव दे रही थी जैसे दुनिया में कुछ और ना हो बस बस बस सांसे हो ,धड़कने हो ,एक भाव हो और आप हो ……………..
आधे घंटे कैसे बीते किसी को कुछ पता ही नहीं चला ,बाबा आँखे खोल चुके थे पर अभी भी गहरे ध्यान से उठाने के कारन उनकी आँखे अधखुली ही थी बड़ी मुस्किल से वो अपनी आँखों को खोल पा रहे थे ,जैसे संसार को देखना उनकी मज़बूरी हो वरना बस समधी में चले जाते ,वह मौजूद लोग बारी बारी से उनसे मिलाने लगे किसी ने कोई प्रश्न किया कोई अपना दुखड़ा रो रहा था ,किसी की कोई मांग थी बाबा सभी की बातो को ध्यान से सुनते और आराम से उत्तर देते थे ,लगभग आधे धंटे और निकल चुके थे बाबा की आँखे भी अब पूरी तरह से खुल चुकी थी और उनके बोलने में एक तीव्रता भी आ चुकी थी ,सभी के जाने के बाद बस ठाकुर परिवार ही वहा बचा था बाली ने जाकर उनके चरण स्पर्श किये सभी ने फिर उसका अनुकरण किया ,
“कहो बाली कैसे हो ”
“सब आपकी कृपा है बाबा कालवा से मिलाने आये थे ,”बाबा के चहरे पर एक मुस्कान आ गई
“ह्म्म्म और तुम कैसे हो अजय ”
“अच्छा हु बाबा ”
“बहुत दिन हुए इधर आये हुए ,”अजय ने अपना सर झुका लिया
“हा बाबा बहुत दिन हो गए “बाली ने डॉ और बाकियों का परिचय दिया उन्होंने सभी का अभिवंदन किया ,डॉ आज बहुत प्रसन्न दिख रहे थे ,किसी महात्मा से मिलाना और आजकल तो महात्मा मिलना ही बहुत बड़ा सौभाग्य होता है ,
“आप कुछ कहना चाहते है डॉ साहब “बाबा ने धयन से डॉ को देखा
“आपसे मिलने के बाद सारे प्रश्न खत्म हो गए प्रभु “डॉ ने अनुग्रह के भाव से बाबा को देखा बाबा के आँखों में भी एक स्नेह डॉ के लिए छलक पड़ा ,तभी कलवा भी आ चूका था वो सभी को देख बहुत खुश हुआ ,सभी उससे मिलाने बहार आये और एक बरगद के पेड़ के निचे बने चबूतरे में बैठे बाते हरने लगे पर डॉ अब भी वही बैठे थे ,
“तो तुम कलवा को ले जाने आये हो ”
“हा बाबा आज उसके परिवार को उसकी जरुरत है ,कोई तो है जो इस परिवार को बहुत ही नुकसान पहुचना चाहता है ,और मैं जनता हु जब तक कलवा रहेगा इस परिवार को कोई हाथ नहीं लगा पायेगा ,”बाबा जोरो से हस पड़े
“डॉ जो होना है वो तो हो कर रहेगा ,कलवा के रहते भी तो वीर और उसकी पत्नी की मौत हो गयी ना ,उन्हें तो वो नहीं बचा पाया ,ना ही अपने भाभी और उसके बच्चो को आजतक ढूंढ पाया और देखो आज उसके दुःख ने उसे प्रभु के शरण में ला दिया ,और तुम कितने सालो बाद आये यहाँ ”
दोनों के चहरे पर एक रहस्यमयी मुस्कान आ गयी मतलब साफ़ था की डॉ यहाँ पहले भी कई बार आ चुके थे ,
“हा बाबा आपसे दूर रहने का तो मन मुझे भी नहीं करता ,मैं भी चाहता हु की आपके शरण में आकर अपने को ध्यान की गहराईयो में डूबा हु पर क्या करू ,ध्यान मजबूर होकर तो नहीं किया जा सकता ना जैसे आज कलवा कर रहा है ”
“बेटा जो ध्यान करता है उसके लिए कोई मज़बूरी होती ही नहीं है “बाबा ने एक मनमोहक मुस्कान दि ,
“जाओ कलवा से मिल लो “डॉ उठकर बाबा के चरणों को स्पर्श करते है और बहार कलवा से मिलने चले जाते है ,कलवा डॉ को देखकर आगे बढता है और उसके गले लग जाता है ,कलवा के चहरे पर एक अदुतीय तेज दिखाई दे रही थी जो उसके साधना के कारन उसके चहरे पर खिली थी ,शारीर से वो किसी पौरुष की मूर्ति लगता ही था ,डॉ ने अजय और बाली को इशारे से कुछ कहा दोनों ही समझ गए की ये अकेले हे कलवा से कुछ बात करना चाहते है ,अजय ने सभी को झरना दिखने के बहाने निचे ले गया साथ ही बाली भी हो लिया ,
“कहिये डॉ साहब बहुत दिनों बाद याद किया लगता है कुछ काम आ पड़ा है ,”डॉ के चहरे पर एक मुस्कान आ गयी
“हा काम तो आ पड़ा है ,ऐसे भी अब मैं अकेला सा हो गया हु ,तुन्हें मेरे साथ चलना चाहिए ”
“भूल जाओ डॉ बस अब और नहीं ऐसे भी दुनिया में मेरा अब है ही कौन और किसके लिए करू मैं ये सब ,एक माँ है जो उस परिवार में है जहा उसे इतना प्यार और सम्मान मिलता है और एक भाई है (बजरंगी )जो मुझे देखना भी पसंद नहीं करता अब बचा ही क्या है ,और मेरी काबिलियत ही क्या है डॉ देखो ना ,ना ही मैं वीर भईया और भाभी को बचा पाया और ना ही अपनी भाभी और उनके मासूम बच्चो को ढूंड पाया ,”डॉ थोडा गंभीर हो जाते है
“कलवा ये तुम्हारी गलती नहीं थी ,वीर का एक्सीडेंट का तो मैंने भी पता नहीं लगा पाया और तुम्हारी भाभी और उसके बच्चे वो तुम्हारी गलती नहीं थे ,बजरंगी ने उनके साथ क्या किया ये किसी को नहीं पता वो बेचारे तो तिवारियो के साजिस का शिकार हो गए ,”
“साजिश कोई भी रचे पर मैं तो अपने भाई को नहीं समझा पाया ना की मेरी भाभी पवित्र है ,नहीं डॉ अब मुझसे ये नहीं हो पायेगा अब मैं नहीं कर सकता ये सब ,अब आप ही सम्हालो इन समस्याओ को मुझे यहाँ बहुत शुकून है मैं यहाँ ध्यान करता हु अपने आप के पास रहता हु ,खुश हु और मेरी मनो तो आप भी यहाँ आ जाओ शांति से बढकर कोई चीज नहीं है दुनिया में “डॉ के चहरे पर एक मुस्कान आ गयी
“किस शांति की बात कर रहे हो कलवा अच्छा ये बताओ की आँखे बंद करने पर क्या तुझे वीर और सुशीला (बजरंगी की बीवी और कलवा की भाभी ) का चहरा नहीं दीखता ”
कलवा एक गहरे सोच में पड़ जाता है ,मानो डॉ ने जो कहा वो सच ही था ,
“अभी तुम्हारी जरुरत है इस परिवार को ,अजय पर बहुत खतरा है ,और मुझे कुछ अनहोनी की भी आशंका दिख रही है ,पता नहीं दिल क्यों कहता है की तुम्हे इनके साथ होना चाहिए ,”
कलवा अब भी गहरे सोच में पड़ा था ,
“डॉ बजरंगी कैसा है “डॉ के चहरे पर एक मुस्कान आ गयी
“आज भी उससे प्यार करते हो ”
“भाई है डॉ वो मेरा “कलवा के आँखों में आंसू आ जाते है और डॉ उसके कंधे पर हाथ रखता है कलवा के आँखों के सामने बिता हुआ कल घुमने लगता है ,
बचपन में ही कलवा को उसकी माँ सीता उसके नाना के पास ले आई और कलवा और बजरंगी अलग हो गए कलवा वीर और बाली के साथ बड़ा हुआ,लेकिन दोनों भाइयो में गजब का प्रेम था जो सभी को पता था ,कलवा कभी कभी छुप कर बजरंगी से मिलने जाता था और बजरंगी भी उससे मिलने ठाकुरों के गाव आया करता था ,समय बिता और ठाकुरों और तिवारियो में दुश्मनी बढती गयी बजरंगी तिवारियो का तो कलवा ठाकुरों के सेनापति की हैसियत में आ चुके थे दोनों भाइयो का सामना अकसर होता रहता था लेकिन सभी को पता था की ये एक दुसरे पर हाथ नहीं उठा सकते दोनों अपने अपने खेमे के वफादार थे और इसपर किसी को कोई भी संदेह नहीं था ,दोनों अपने जिम्मेदारियों से हटकर शहर में मिला करते थे वीर के खास दोस्त डॉ चुतिया भी थे ,वीर डॉ कलवा और बजरंगी सभी अपनी जिम्मेदारियों और आपसी रंजिश से दूर शहर आकर मौज मस्ती करते थे ,वक़्त ने करवट ली और वीर ने सुलेखा से शादी कर ली दोनों परिवारों में तनाव इतना बढ़ गया की कलवा और बजरंगी का मिलना लगभग बंद ही हो गया पर ,पर दोनों कभी कभी छुपकर शहर में जाकर मिल ही लिया करते थे ,वही वक अनाथ लड़की से बजरंगी को प्यार हो गया और उसने वही उससे शादी भी कर ली ,ये बात सिर्फ उसे और कलवा को ही पता था ,लड़की का नाम था सुशीला ,सुसीला और बजरंगी एक दुसरे से बहुत प्यार करते थे और सुशीला ने दो बच्चो को जन्म दिया ,लेकिन ये बात तिवारियो तक पहुच गयी वो सीधे तो बजरंगी को कुछ नहीं बोल सकते थे पर उन्होंने एक साजिस रची ये ही एक ऐसा मौका था जिससे कलवा और बजरंगी में दुश्मनी करा कर वो ठाकुरों को तबाह करने के लिए बजरंगी का उपयोग कर सकते थे ,उन्होंने बजरंगी के दिमाग में शक का कीड़ा डाला और अपनी साजिस के तहत बहुत ही आराम से इसे पनपने दिया ,एक दिन जब बजरंगी शहर पहुचा तो वहा कलवा को देखकर भड़क गया कलवा उसे समझाता रहा की सुशीला उसके लिए माँ के समान है पर ……..बजरंगी अपने बीवी बच्चो के साथ वहा से चला गया उसके बाद उनका कुछ भी पता कलवा को नहीं चल पाया ,बजरंगी ने सुशीला से भी सम्बन्ध खत्म कर लिया ,और ऐसा बोखलाया की ठाकुरों और कलवा के खिलाफ एक जंग सी छेड़ दि ,और इसी का नतीजा हुआ की एक बार लड़ाई में उसने वीर पर गोली चला दि वो गोली कलवा ने अपने सीने में खाई और दोनों भाइयो का रिश्ता हमेशा के लिए खत्म हो गया वो कभी मिलते नहीं थे ,और अगर किसी काम से मिलते भी तो बात नहीं करते ,कलवा ने बाली और वीर को सभी बाते बताई डॉ के साथ मिलकर उसने अपने भाभी को ढूंढने की भी बहुत कोसिस की पर कोई नहीं मिला ,उन्हें लगा की बजरंगी ने उन्हें मार दिया हो उसका गुस्सा था ही ऐसा ,पर कलवा आज भी अपने बड़े भाई से बहुत प्यार करता था और वीर की मौत के बाद से ही वो सब कुछ छोड़कर आश्रम में आ गया था,
कलवा की आँखे नम थी और वो शून्य आकाश को देखे जा रहा था,डॉ ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा
“जो हो चूका है उसे याद करने से क्या मतलब है ,घर चलो अपने परिवार के साथ रहो अजय में मुझे वीर की छबि दिखाती है सायद तुम भी उसमे वीर को ढूंड पाओ “कलवा डॉ के गले से लग गया ,थोड़ी देर में ही उसने मनो कुछ फैसला कर लिया था ,
“आऊंगा डॉ घर भी आऊंगा पर अभी नहीं कुछ दिनों के बाद “कलवा के चहरे पर एक मुस्कान खिल गयी थी ,
